Wednesday, April 23, 2025
Homeदेश-समाजजिस कानून के कारण बाल गंगाधर तिलक पर केस, अब वो खत्म: देश के...

जिस कानून के कारण बाल गंगाधर तिलक पर केस, अब वो खत्म: देश के खिलाफ युद्ध जैसे षड्यंत्रों पर सजा अब और भी कठोर

विधेयक में स्पष्ट किया गया है कि जो कोई भी देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की तैयारी या ऐसे इरादे से व्यक्तियों को एकत्र करता है, हथियार या गोला-बारूद इकट्ठा करता है, उसे न्यूनतम 10 साल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा होगी और उसे जुर्माना भी देना होगा।

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार (11 अगस्त 2023) को भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 को लोकसभा में पेश किया। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने राजद्रोह कानून को खत्म कर दिया है।

दरअसल, राजद्रोह कानून (Sedition Law) को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A में परिभाषित किया गया है। इस कानून को अंग्रेजों ने बनाया था। देश में विध्वंसक एवं अलगाववादी गतिविधियों पर इस कानून का इस्तेमाल किया जाता रहा है। हालाँकि, समय-समय पर इस कानून को लेकर सवाल भी उठते रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने उठाए थे सवाल

राजद्रोह कानून को विवादास्पद बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। दरअसल, राजद्रोह कानून को खत्म करने वाली कई याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थीं। इन याचिकाओं की सुनवाई तक इस कानून के तहत केस दर्ज करने पर कोर्ट ने रोक लगा दी थी।

तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एनवी रमन्ना के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा था, “आईपीसी की धारा 124A (राजद्रोह) की कठोरता मौजूदा सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं है। इस प्रावधान का पुन: परीक्षण पूरा होने तक सरकारों द्वारा कानून के उक्त प्रावधान का उपयोग जारी नहीं रखना उचित होगा।”

बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 1962 में राजद्रोह कानून की वैधता को बरकरार रखा था। इसके साथ ही इसका दायरा भी सीमित करने का प्रयास किया था, ताकि इसका दुरुपयोग नहीं किया सके। हालाँकि, जिस तरह देश में विभाजनकारी शक्तियाँ सक्रिय हैं, उसको देखते हुए केंद्र सरकार इसे खत्म करना नहीं चाहती थी।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के रिकॉर्ड के अनुसार, साल 2015 से 2020 के बीच देश में राजद्रोह के 356 मामले दर्ज हुए और 548 लोगों को गिरफ्तार किया गया। हालाँकि, इस अवधि में राजद्रोह के 7 मामलों में गिरफ्तार किए गए सिर्फ 12 लोगों को दोषी करार दिया गया।

क्या है राजद्रोह कानून

राजद्रोह एक अपराध है और इसका भारतीय दंड संहिता की धारा 124A में उल्लेख किया गया है। यह कानून कहता है कि अगर कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय चिह्नों या संविधान का अपमान करता है या फिर उसे नीचा दिखाने का प्रयास करता है या फिर सरकार विरोधी बातें बोलता-लिखता हैं या अन्य लोगों को इसके लिए उकसाता है तो उस पर खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज हो सकता है।

राजद्रोह संगीन और गैर-जमानती अपराध है। इसमें दोषी पाए जाने पर तीन साल तक के कारावास से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। कारावास के साथ-साथ कोर्ट द्वारा दोषी पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

इतना ही नहीं, राजद्रोह कानून के तहत आरोपित व्यक्ति को सरकारी नौकरी से प्रतिबंधित कर दिया जाता है। वह कभी भी सरकारी नौकरी नहीं कर सकता है। उस व्यक्ति को पासपोर्ट नहीं जारी किया जाता है। इसके साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उसे हर समय अदालत में पेश होना पड़ता है।

राजद्रोह कानून का इतिहास

इस कानून का मसौदा मूल रूप से 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार और राजनेता थॉमल मैकाले ने तैयार किया था। उस वक्त ब्रिटिश की औपनिवेशिक सरकार भारतीयों के आवाज को कुचलने के लिए इस कानून का प्रयोग करती थी। अंग्रेजों ने इस कानून का उपयोग कई स्वतंत्रता सेनानियों पर किया था।

भारतीय दंड संहिता-IPC को 1860 में औपनिवेशिक भारत में लागू किया गया था। हालाँकि, इसमें राजद्रोह से संबंधित कोई धारा नहीं थी। इसे 1870 में इस आधार पर पेश किया गया था कि इसे गलती से मूल IPC मसौदे से हटा दिया गया था।

इस कानून का सबसे पहला उपयोग स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ अंग्रेजों ने 1897 में किया था। इसके अलावा, 19 मार्च 1922 में महात्मा गाँधी के खिलाफ भी अंग्रेजों ने इस कानून का प्रयोग किया गया था। इसके साथ ही जवाहरलाल नेहरू और भगत सिंह के खिलाफ भी इस कानून का प्रयोग किया गया था।

आज़ादी के बाद 1948 में संविधान सभा की चर्चा के बाद ‘राजद्रोह’ को संविधान से हटा दिया गया। केएम मुंशी ने ‘राजद्रोह’ शब्द को हटाने के लिए एक संशोधन पेश किया, जिसे संविधान के मसौदे में शामिल किया गया था। उन्होंने तर्क दिया था कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की संवैधानिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाता है।

इस प्रकार 26 नवंबर 1949 को जब संविधान अपनाया गया तो उसमें से ‘राजद्रोह’ शब्द खत्म हो गया और अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की पूरी आजादी दी गई। हालाँकि, आईपीसी में धारा 124A बरकरार रही। यह समय-समय पर बहस का मुद्दा बना रहा।

राजद्रोह कानून की जगह नया कानून लेगा

गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि राजद्रोह कानून को खत्म कर दिया जाएगा। हालाँकि, सरकार IPC में 124A के तहत आने वाले इस कानून को कुछ बदलाव के साथ भारतीय न्याय संहिता की धारा 150 से रिप्लेस करेगी। वहीं, सरकार की आलोचना अब प्रस्तावित कानून का हिस्सा नहीं रहेगा।

यह कानून देश की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता के खिलाफ काम करने वाले अलगाववादियों, सशस्त्र विद्रोह और विध्वंसक गतिविधियों को शामिल किया गया है। इसके लिए सख्त दंड का प्रावधान किया गया है। प्रस्तावित कानून में इन गतिविधियों को सरकार की आलोचना और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों से अलग कर अंतर स्पष्ट किया गया है।

विधेयक में स्पष्ट किया गया है कि जो कोई भी देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की तैयारी या ऐसे इरादे से व्यक्तियों को एकत्र करता है, हथियार या गोला-बारूद इकट्ठा करता है, उसे न्यूनतम 10 साल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा होगी और उसे जुर्माना भी देना होगा।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
प्रकृति प्रेमी

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘ये PM को सन्देश – मुस्लिम कमजोर महसूस कर रहे’: रॉबर्ट वाड्रा ने 28 शवों के ऊपर सेंकी ‘हिंदुत्व’ से घृणा की रोटी, पहलगाम...

रॉबर्ट वाड्रा ने कहा कि आईडी देखना और उसके बाद लोगों को मार देना असल में प्रधानमंत्री को एक संदेश है कि मुस्लिम कमजोर महसूस कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय कोर्ट नहीं, पाकिस्तान की कुटाई है पहलगाम में हुए इस्लामी आतंकी हमले का जवाब: कपिल सिब्बल चाहते हैं कश्मीर पर नेहरू वाली भूल...

इससे पहले नेहरू ने एक बार कश्मीर का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की गलती की थी। इसके चलते 7 दशक के बाद भी कश्मीर का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के पास है।
- विज्ञापन -