कॉन्ग्रेस नेता को ED से राहत, खालिस्तानियों को जमानत… जानिए कौन हैं हिन्दुओं पर हमले के 18 इस्लामी आरोपितों को छोड़ने वाले HC जज फरजंद अली

राजस्थान उच्च न्यायालय के जस्टिस फरजंद अली और उनके विवादित फैसले

राजस्थान उच्च न्यायालय के जस्टिस फरजंद अली ने चित्तौड़गढ़ में मार्च 2024 में चारभुजा नाथ शोभा यात्रा पर हुए हमले के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने 18 मुस्लिमों को जमानत दे दी। इस घटना में एक हिन्दू की मौत हो गई थी और दर्जन भर घायल हुए थे। जज फरजंद अली ने कहा कि हो सकता है कि ये मौत हार्ट अटैक से हुई हो, क्योंकि उक्त शख्स के घुटने पर सिर्फ एक छोटा सा घाव था। उन्होंने कहा कि भीड़ का मजहब नहीं होता है, ऐसे में भीड़ में कौन अपराधी हैं और कौन निर्दोष ये तय करना मुश्किल होता है।

आइए, जानते हैं कि जस्टिस फरजंद अली हैं कौन। 15 दिसंबर, 1968 को जन्मे फरजंद अली ने BA और LLB कर रखा है। उनके पिता भी बड़े वकील थे। 6 सितंबर, 1992 से उन्होंने बतौर अधिवक्ता प्रैक्टिस शुरू की थी। 2005 तक वो चित्तौड़गढ़ और आसपास के क्षेत्रों की अदालतों में प्रैक्टिस करते रहे। इसके बाद वो जोधपुर शिफ्ट हो गए और हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे। हाईकोर्ट में केंद्र सरकार ने उन्हें स्टैंडिंग काउंसल बनाया। नेशनल हाइवे अथॉरिटी, म्युनिसिपल बोर्ड और वक्फ बोर्ड ने भी उन्हें अपना वकील नियुक्त किया।

जोधपुर स्थित राजस्थान हाईकोर्ट के मेडिएशन सेंटर में भी उन्होंने बतौर ट्रेंड मेडिएटर कार्य किया। जनवरी 2019 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस सरकार ने राज्य का एडवोकेट जनरल नियुक्त किया। आपराधिक, नागरिक और संवैधानिक मामलों में वो सरकार का पक्ष रखते रहे। PIL वगैरह के मामले में भी राजस्थान सरकार ने उन्हें अपना पक्ष रखने का काम दिया। 18 अक्टूबर, 2021 को वो राजस्थान हाईकोर्ट के जज बनाए गए।

सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्ष वाले कॉलेजियम पैनल ने उनके नाम पर मुहर लगाई। जज बनने के तुरंत बाद उन्होंने राजस्थान के अजमेर स्थिर ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाकर जियारत की। उन्होंने वहाँ मखमल की चादर चढ़ाई और अकीदत के फूल पेश किए। ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का शुक्रिया अदा करने के लिए वो वहाँ गए थे। जस्टिस फरजंद अली ED को भी फटकार लगा चुके हैं।

नवंबर 2023 में जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी चरम पर थी, जब जस्टिस फरजंद अली ने कॉन्ग्रेस उम्मीदवार मेवाराम जैन को राहत देते हुए ED द्वारा उन्हें भेजे गए समन को रद्द कर दिया था। तब उन्होंने फैसला दिया था कि याचिकाकर्ता के चुनाव लड़ने के अधिकार में प्रचार करने का अधिकार भी शामिल है। समन को 7 दिनों के लिए टालते हुए उन्होंने कहा था कि इससे ED की कार्यवाही पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

ED ने 20 नवंबर को उन्हें समन जारी किया था और 22 नवंबर को पेश होने के लिए कहा था, वहीं चुनाव 25 नवंबर को हुए थे। जज ने कहा था कि मेवाराम जैन को समन से पहले ये जानने का अधिकार है कि उन्हें क्यों बुलाया जा रहा है और मामला क्या है, ताकि वो पेशी से पहले सामग्रियाँ जुटा सकें। उन्होंने ED से कहा कि वो 3 दिसंबर को काउंटिंग के बाद उन्हें दोबारा समन जारी करे। इससे कॉन्ग्रेस उम्मीदवार को राहत मिली थी। मेवाराम जैन चुनाव हार गए थे, उनका अश्लील वीडियो भी एक महिला के साथ वायरल हुआ था।

वहीं जस्टिस फरजंद अली खालिस्तानियों को भी जमानत दे चुके हैं। उन्होंने खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू के प्रतिबंधित संगठन SFJ (सिख फॉर जस्टिस) के खालिस्तानियों को जमानत दी थी। इन दोनों ने एक सार्वजनिक दीवार पर ‘खालिस्तान ज़िंदाबाद’ लिखा था। इस दौरान जज फरजंद अली ने कहा था कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि इसमें UAPA क्यों लगाया गया है। उन्होंने कहा था कि अपराध इतना गंभीर नहीं है इसमें UAPA लगाया जाए।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया