मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु के मदुरै में थिरुपरनकुन्द्रम पहाड़ी पर मौजूद सिकंदर बदहुशा अवुलिया दरगाह में पशु बलि की प्रथा और पहाड़ी का नाम बदलने की माँग वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया। इस मामले को सुनने वाली मद्रास हाई कोर्ट में जस्टिस जे. निशा बानु और जस्टिस एस. श्रीमती की बेंच ने पहाड़ी का नाम बदलने की माँग को एकमत से खारिज कर दिया।
हालाँकि पशु बलि के मुद्दे पर दोनों जजों की राय अलग-अलग रही, यानी उन्होंने इस पर एकराय नहीं दिखाई। इस थिरुपरनकुन्द्रम पहाड़ी पर एक दरगाह, दो हिंदू मंदिर (अरुलमिगु सुब्रमणिया स्वामी मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर) और प्राचीन जैन गुफाएँ हैं, जिसके चलते यह मामला काफी चर्चा में रहा है।
पहाड़ी का नाम नहीं बदलेगा
जज जे. निशा बानु और जज एस. श्रीमती ने साफ-साफ कहा कि थिरुपरनकुन्द्रम पहाड़ी का नाम बदलकर ‘सिकंदर हिल्स‘ करने की कोई जरूरत नहीं है। दोनों जज इस बात पर सहमत थे कि पहाड़ी का मौजूदा नाम ही रहेगा।
पशु बलि पर दोनों जजों की राय अलग
मद्रास हाई कोर्ट में बुधवार (25 जून 2025) को आए फैसले में पशु बलि के मुद्दे पर दोनों जजों ने अलग-अलग तर्क दिए। जस्टिस जे. निशा बानु ने पशु बलि की प्रथा को सही ठहराया। उन्होंने कहा कि दरगाह और मंदिर पहाड़ी पर अलग-अलग जगहों पर हैं, इसलिए एक समुदाय की धार्मिक प्रथाएँ दूसरे समुदाय के पवित्र स्थानों पर असर नहीं डालतीं।
जस्टिस बानु ने अपने फैसले में कहा कि थिरुपरनकुन्द्रम पहाड़ी का मालिकाना हक अरुलमिगु सुब्रमणिया स्वामी मंदिर के पास है और इस बारे में कोई विवाद नहीं है। सिविल कोर्ट पहले ही मंदिर के हक को मान्यता दे चुके हैं।
जस्टिस बानु ने यह भी कहा कि पशु बलि की प्रथा न सिर्फ मुस्लिम समुदाय बल्कि हिंदू समुदाय में भी पुराने समय से चली आ रही है। उन्होंने बताया कि तमिलनाडु में 1950 का एक कानून था, जो पशु और पक्षी बलि पर रोक लगाता था, लेकिन इसे 2004 में तमिलनाडु एक्ट 20 के तहत हटा लिया गया। यानी अब तमिलनाडु में धार्मिक स्थानों पर पशु बलि की प्रथा पर कोई कानूनी रोक नहीं है। इसलिए जस्टिस बानु ने कहा कि दरगाह में पशु बलि की प्रथा को रोका नहीं जा सकता, क्योंकि यह एक पुरानी धार्मिक परंपरा है।
दूसरी तरफ जस्टिस एस. श्रीमती ने पशु बलि के खिलाफ फैसला दिया। उनका कहना था कि सिकंदर दरगाह में कँधूरी पशु बलि की प्रथा पुराने समय से चली आ रही है, इसका कोई ठोस सबूत नहीं है। उन्होंने कहा कि रीजनल डेवलपमेंट ऑफिसर (RDO) ने सही निष्कर्ष निकाला था कि इस प्रथा को साबित करने के लिए दोनों पक्षों को सिविल कोर्ट जाना चाहिए। जज श्रीमती ने अपने फैसले में कहा कि सिकंदर दरगाह में कँधूरी पशु बलि की प्रथा होने का कोई पक्का सबूत नहीं है। अगर दरगाह वाले इस प्रथा को सही साबित करना चाहते हैं, तो उन्हें सिविल कोर्ट में जाना होगा।
जस्टिस एस श्रीमती ने यह भी निर्देश दिया कि दरगाह को यह साबित करना होगा कि रमजान, बकरीद और अन्य इस्लामी त्योहारों के दौरान पशु बलि और प्रार्थना की प्रथा 1920 में दायर एक मुकदमे (O.S.No.4 of 1920) से पहले से चली आ रही थी। इसके लिए उन्हें सिविल कोर्ट का रास्ता अपनाना होगा।
कब से चल रहा ये विवाद?
यह विवाद पिछले साल 27 दिसंबर को शुरू हुआ, जब मलैयादीपट्टी के 53 साल के सैयद अबू दाहिर और उनके परिवार ने पशु बलि के लिए थिरुपरनकुन्द्रम पहाड़ी पर जानवर ले जाने की कोशिश की। पुलिस ने उन्हें रोक लिया, जिसके बाद 20 मुस्लिमों ने पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन किया। इसके बाद जनवरी में मुस्लिम समुदाय ने पहाड़ी पर खुली पहुँच और पशु बलि को पुरानी परंपरा बताते हुए इसकी अनुमति माँगी। उन्होंने पहाड़ी को ‘सिकंदर हिल्स’ नाम देना शुरू कर दिया।
इसी दौरान पुलिस ने सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) जैसे इस्लामी संगठनों को पहाड़ी पर पशु बलि (कुर्बानी) करने से रोक दिया। SDPI प्रतिबंधित आतंकी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) का राजनीतिक संगठन है। पुलिस ने मुस्लिम समुदाय को पका हुआ मांस दरगाह में ले जाकर खाने की इजाजत दी, लेकिन पशु बलि पर रोक लगा दी। ऐसा इसलिए क्योंकि इस पहाड़ी पर प्राचीन जैन गुफाएँ और भगवान मुरुगन का मंदिर भी है।
विवाद तब और बढ़ गया, जब कुछ अज्ञात लोगों ने पहाड़ी पर मौजूद प्राचीन जैन गुफाओं को हरे रंग से रंग दिया। इससे हिंदू समुदाय में भारी गुस्सा फैल गया। फरवरी में भारत हिंदू मुन्नानी जैसे कई हिंदू संगठनों ने थिरुपरनकुन्द्रम पहाड़ी पर पशु बलि के खिलाफ प्रदर्शन किए। मुस्लिम समुदाय का दावा है कि पूरी पहाड़ी वक्फ बोर्ड की संपत्ति है और पशु बलि उनकी पुरानी परंपरा है। वे पहाड़ी को ‘सिकंदर हिल्स’ कहकर बुला रहे हैं, जिससे यह विवाद और गहरा गया है।
गौरतलब है कि थिरुपरनकुन्द्रम पहाड़ी हिन्दुओं के लिए काफ़ी पवित्र है और भगवान मुरुगन के 6 निवास स्थलों में से एक है। हिन्दुओं का कहना है कि पहाड़ी पर कुर्बानी करना मतलब भगवन मुरुगन के शीर्ष पर कुर्बानी करना होगा क्योंकि उनका मंदिर पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। हिन्दुओं ने आरोप लगाया कि नाम बदलना और क़ुरबानी को लेकर झगड़े करना उन्हें मंदिर जाने से रोकने का प्रयास है। यहाँ पर सिर्फ प्राचीन मुरुगन मंदिर मंदिर ही नहीं, बल्कि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की जैन गुफाएँ भी हैं। इस पर ब्राह्मी लिपी में अभिलेख भी हैं।
हालाँकि अब हाई कोर्ट ने साफ कर दिया है कि न तो पहाड़ी का नाम बदलेगा और न ही पशुओं की बलि दी जा सकेगी, क्योंकि ऐसा करने से पहले मुस्लिमों को O.S.No.4 of 1920 मामले को लेकर सिविल कोर्ट में जाना होगा।