दिल्ली हाईकोर्ट ने पति-पत्नी के संबंधों में क्रूरता को लेकर अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि यह सोचना गलत है कि केवल महिलाएँ ही वैवाहिक क्रूरता की शिकार होती हैं। पुरुष भी पीड़ित हो सकते हैं और उन्हें भी कानून के तहत समान सुरक्षा का अधिकार है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस स्वर्ण कांत शर्मा ने ये टिप्पणी उस महिला की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दी, जिस पर अपने पति पर उबलते पानी और मिर्च पाउडर डालकर जलाने का आरोप है। घटना 1 जनवरी की है, जब पीड़ित पति सो रहा था। आरोपित महिला ने न सिर्फ उसे जलाने की कोशिश की, बल्कि कमरे को बाहर से बंद कर फरार हो गई। उसने पति का मोबाइल फोन भी साथ ले लिया, ताकि वह किसी से मदद न माँग सके। कमरे में उनकी तीन महीने की बच्ची भी मौजूद थी।
महिला ने कोर्ट में तर्क दिया कि वह एक महिला है, इसलिए नरम रुख अपनाया जाए। कोर्ट ने इसे लैंगिक पूर्वाग्रह मानते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यदि आरोपित महिला की जगह पुरुष होता, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती। ऐसे में केवल महिला होने के आधार पर नरमी बरतना न्याय के साथ अन्याय होगा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि पुरुष जो अपनी पत्नियों के हाथों हिंसा का शिकार होते हैं, अक्सर सामाजिक कलंक और लोगों के अविश्वास का सामना करते हैं। ऐसे मामलों में जेंडर आधारित पक्षपात न्याय के बुनियादी सिद्धांतों को कमजोर करता है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपित महिला के तीन महीने के बच्चे की देखभाल करने के तर्क को भी खारिज कर दिया। कोर्ट ने पाया कि महिला ने बच्चे को भी खतरे में डाल दिया था। जाँच में सहयोग न करने और पीड़ित का फोन बरामद होने की जरूरत को देखते हुए हाई कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया।