Tuesday, October 8, 2024
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7000 वाली मस्जिद में सिर्फ 50 लोग नमाज पढ़ेंगे… प्लीज अनुमति दीजिए: बॉम्बे HC का फैसला – ‘नहीं’

"कोरोना बेकाबू हालात में है और इसके संक्रमण को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने अनिवार्य हैं। सरकार ने घर में किसी को उनके धार्मिक कार्य करने से नहीं रोका।"

रमजान के महीने में मस्जिदों में नमाज पढ़ने को लेकर बुधवार (अप्रैल 14, 2021) को बॉम्बे हाईकोर्ट ने जुमा मस्जिद ट्रस्ट की याचिका पर सुनवाई की। इस याचिका में ट्रस्ट ने 50 लोगों के साथ 5 वक्त नमाज पढ़ने की अनुमति मांँगी थी। हालाँकि कोर्ट ने मामले में सुनावई करते हुए कहा कि भले ही धार्मिक प्रथाओं को फॉलो करने का अधिकार महत्वपूर्ण है लेकिन कोविड महामारी के दौरान लोगों की सुरक्षा सबसे ज्यादा जरूरी है।

जुमा मस्जिद ट्रस्ट की इस याचिका पर न्यायमूर्ति आरडी धानुका और वीजी बिष्ट की डिविजन बेंच ने सुनवाई करते हुए याचिका में की गई माँग को स्वीकारने से मना कर दिया। कोर्ट में याचिकाकर्ता ने कहा कि मस्जिद एक एकड़ में फैली है और एक समय में 7 हजार से ज्यादा लोग इसमें एकट्ठा हो सकते हैं। लेकिन कोरोना संक्रमण को देखते हुए मस्जिद में एक समय में पचास लोगों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाए। 

याचिका में ये भी कहा गया था कि ट्रस्ट इस दौरान कोविड-19 प्रोटोकॉल और सावधानी का पूरी तरह पालन करेगा। अपनी माँग उठाते हुए याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट के 12 अप्रैल के फैसले का उदाहरण दिया था, जहाँ प्रोटोकॉल के साथ नमाज करने की अनुमति दी गई।

सरकारी वकील ने कहा- हम किसी धर्म के लिए अपवाद नहीं बना सकते

सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार की ओर से पेश हुई वकील ज्योति चव्हाण ने याचिका में उठाई गई माँग का विरोध किया। उन्होंने कहा कि कोरोना के बढ़ते केसों को देखते हुए ये अनमुति नहीं दी जानी चाहिए। वह बोलीं,

“हम किसी भी धर्म के लिए अपवाद नहीं बना सकते, खासकर इस 15-दिन की प्रतिबंध अवधि में। हम इस स्तर पर जोखिम नहीं उठा सकते हैं। सभी नागरिकों को इस समय सहयोग करना चाहिए।”

ज्योति चव्हाण ने कहा कि सरकार ने घर में किसी को उनके धार्मिक कार्य करने से नहीं रोका। राज्य इस समय वैक्सीन और ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा है। ऐसे में सामाजिक समारोहों की अनुमति देना उचित नहीं होगा। याचिका के विरोध में सरकारी वकील ने कहा कि दिल्ली और महाराष्ट्र की स्थिति अलग है। दिल्ली हाईकोर्ट का ऑर्डर इस राज्य में नहीं माना जा सकता।

कोर्ट का फैसला

दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि राज्य में कोरोना बेकाबू हालात में है और इसके संक्रमण को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने अनिवार्य हैं। कोर्ट ने स्थिति के मद्देनजर कहा,

“महाराष्ट्र में मौजूदा स्थिति और जमीनी हकीकत को देखते हुए, हम याचिकाकर्ता को मस्जिद में नमाज अदा करने की अनुमति नहीं दे सकते। राज्य सरकार का प्रतिबंध आदेश जनता के हित में और महाराष्ट्र के सभी निवासियों की सुरक्षा के लिए है।”

कोर्ट ने महामारी से पैदा हुई गंभीर स्थिति को देखते हुए कहा धार्मिक प्रथाओं को फॉलो करने और मनाने का अधिकार महत्वपूर्ण है लेकिन कोविड महामारी के दौरान नागरिकों की सुरक्षा ज्यादा जरूरी है।

महाराष्ट्र में लगे कर्फ्यू वाले प्रतिबंध

मालूम हो कि महाराष्ट्र में रिकॉर्ड तोड़ कोरोना वायरस के मामलों की पुष्टि के बाद राज्य सरकार ने कुछ क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर 13 अप्रैल से कड़े प्रतिबंध की घोषणा की है, जिसमें धार्मिक स्थल भी 15 दिन के लिए बंद किए गए हैं। साथ ही ये भी कहा गया है कि धार्मिक स्थल से जुड़े लोग अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकते हैं। मंगलवार को सीएम ठाकरे ने हालातों के मद्देनजर कर्फ्यू जैसे प्रतिबंधों की घोषणा करते हुए कहा कि ये नियम 14 अप्रैल की रात 8 बजे से शुरू होकर 1 मई तक रहेंगे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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