पूरा देश कोरोना महामारी के बुरे दौर से गुजर रहा है। देश में कोरोना की दूसरी लहर ने कहर बरपाया है। इस विकट और भयानक समय में दयालुता, निस्वार्थता और बलिदान की कहानियाँ लोगों के जीवन में आशा की किरण लेकर आती है।
ऐसी ही एक घटना में, एक आरएसएस सेविका, शिवानी वाखरे, ने नागपुर के 85 वर्षीय आरएसएस कार्यकर्ता नारायण दाभदकर द्वारा किए गए अनोखे बलिदान की कहानी साझा की। इसके बाद स्वयंसेवक राहुल कौशिक ने भी इस घटना को ओरिजिनल पोस्ट की तस्वीर के साथ ट्विटर पर शेयर किया।
Among so much negativity everywhere, I found this post of Shivani Wakhare on facebook. A story that will fill your heart with warmth, compassion and so much positivity.
— Rahul Kaushik (@kaushkrahul) April 26, 2021
This is one such story of immense courage, compassion and sacrifice which will surely inspire you! pic.twitter.com/3RcGSuWwSd
आरएसएस कार्यकर्ता नारायण दाभदकर की यह कहानी फेसबुक पर मूल रूप से मराठी में बताई गई है। इसमें बताया गया है कि नारायण दाभदकर आरएसएस के एक कार्यकर्ता हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज की सेवा करने में बिताया, वो कोरोना महामारी की दूसरी लहर से संक्रमित थे। जैसे ही उनका SPO2 स्तर गिरा, उनकी बेटी ने उन्हें शहर के अस्पताल में ए़डमिट कराने की कोशिश की।
काफी प्रयासों के बाद वह इंदिरा गाँधी अस्पताल में उनके लिए बेड रिजर्व कराने में कामयाब रहीं। वाखरे ने लिखा कि दाभदकर को साँस लेने में तकलीफ होने लगी, जिसके बाद उन्हें उनके पोते अस्पताल लेकर आए। अस्पताल की औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए दोनों इंतजार कर रहे थे कि तभी दाभदकर काका ने 40 की उम्र की एक महिला को अपने बच्चों के साथ रोते हुए देखा और अस्पताल के अधिकारियों से अपने पति को एडमिट के लिए बेड की भीख माँगते हुए देखा, जिसकी स्थिति काफी गंभीर थी।
बिना कुछ सोचे-समझे दाभदकर काका ने आराम से मेडिकल टीम को सूचित किया कि उनका बिस्तर महिला के पति को दे दिया जाए। उन्होंने कहा, “मैं अब 85 वर्ष का हो चुका हूँ, मैंने अपना जीवन जी लिया है। आपको मेरे बदले इस आदमी को बेड ऑफर करना चाहिए, क्योंकि उसके बच्चों को उसकी जरूरत है।”
इसके बाद उन्होंने अपने पोते से फोन करके उनकी बेटी को इस फैसले के बारे में बताने के लिए कहा। उनकी बेटी यह फैसला सुनकर हैरान रह गई, हालाँकि कुछ देर बाद वह भी इस पर सहमत हो गई। दाभदकर काका ने तुरंत सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि वह युवक के लिए अपना बिस्तर छोड़ रहे हैं और उसने अपने पोते को वापस घर ले जाने के लिए कहा। अगले तीन दिनों तक बहादुरी से वायरस से लड़ने के बाद उनका स्वर्गवास हो गया।
हमने किसी को बेहतर जीवन देने के लिए समय और आर्थिक बलिदानों को देते हुए देखा है, लेकिन दूसरे के लिए लंबा जीवन सुनिश्चित करने के लिए अपने स्वयं के जीवन का बलिदान करना निश्चित रूप से एक ऐसा कार्य है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। इसके साथ ही हमें अपने फ्रंटलाइन वर्कर्स, मेडिकल स्टाफ और ऐसे व्यक्तियों को धन्यवाद देना चाहिए जो महामारी के इस दौर में समाज की निस्वार्थ और अथक सेवा कर रहे हैं।