तेलंगाना के गट्टू मंडल में हिंदुओं ने भक्त संत कनक हरिदास की प्रतिमा स्थापित की थी, लेकिन मुस्लिमों ने उसे जबरन हटा दिया। भक्त संत कनक हरिदास की इस मूर्ति का 22 मई 2024 को अनावरण किया जाना था, लेकिन मुस्लिमों के विरोध की वजह से न सिर्फ मूर्ति को हटाना पड़ा, बल्कि इस कार्यक्रम को ही रद्द करना पड़ा। पीड़ितों का आरोप है कि तेलंगाना की कॉन्ग्रेस सरकार और पुलिस आरोपितों का ही साथ दे रही है और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही।
ऑर्गनाइजर की रिपोर्ट के मुताबिक, ये मामला जोगुलंबा गडवाल जिले के गट्टू मंडल में आने वाले गोरलाखंखोड्डी का है। जहाँ कुरुवा समुदाय के लोग संत कनकदास को अपने कुलदेवता के रूप में पूजते हैं। 22 मई 2024 की सुबह पूरा समुदाय सुबह 4 बजे से ही पूजा-पाठ कर रहा था, लेकिन सुबह 7 बजे के आसपास स्थानीय मुस्लिम मौके पर पहुँच गए और संत कनकदास की प्रतिमा को जबरन वहाँ से हटा दिया, जबकि जिस जगह पर संत कनकदास की मूर्ति स्थापित की जानी थी, वो जमीन निजी थी और हिंदुओं की ही है।
स्थानीय हिंदुओं का कहना है कि मूर्ति को एक निजी जमीन पर स्थापित किया गया था, जिसके सभी उचित दस्तावेज और स्वामित्व के कागजात मौजूद थे। लेकिन गाँव के कुछ मुस्लिम परिवारों ने इसका विरोध किया। मुस्लिमों ने कहा कि मूर्ति की वजह से रास्ते में रुकावट आएगी। हिंदुओं का कहना है कि मूस्लिमों के घरों के लिए जाने के लिए 2 तरफ से सड़क हैं, लेकिन वो मूर्ति नहीं लगाने दे रहे। बाद में मुस्लिमों ने ये कहा कि वो मूर्ति ही नहीं लगाने देंगे, क्योंकि उनके घर पास में ही हैं। इस मामले में हिंदुओं ने मोहम्मद, मबूसाब, इमाम, रंजू और नवाब को आरोपित बनाते हुए पुलिस को शिकायत दी है।
स्थानीय हिंदुओं ने यह भी आरोप लगाया है कि प्रशासन आश्चर्यजनक रूप से इस मुद्दे पर मुसलमानों का पक्ष ले रहा है। ऑर्गनाइजर की रिपोर्ट के अनुसार, गाँव में 20-25 मुस्लिम परिवार रहते हैं, साथ ही 800 अन्य परिवार भी रहते हैं।
तेलंगाना विहिप के संयुक्त सचिव डॉ शशिधर ने मुस्लिमों के इस काम की निंदा की है। उन्होंने कहा, ‘गोरलाखंखोड्डी में जो मुस्लिमों ने किया, वो बेहद गलत है। तेलंगाना पुलिस को उन्हें गिरफ्तार करना चाहिए। हिंदुओं के खिलाप अपराध लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन तेलंगाना की कॉन्ग्रेस सरकार मुस्लिम कट्टरपंथियों का समर्थन कर रही है।’
बता दें कि भक्त संत कनकदास को थिमप्पा नायक के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म कर्नाटक के विजयनगर साम्राज्य में हुए था। वो 16वीं शताब्दी में भक्ति आंदोलन के संतों में एक प्रमुख व्यक्ति थे। उन्हें दक्षिण के कई राज्यों में पूजा जाता है।