अयोध्या भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर मुस्लिम पक्षों का विभाजन नजर आने लगा है। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने साफ कर दिया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेगा। बाबरी मस्जिद के मुख्य पक्षकार रहे इकबाल अंसारी भी रिव्यू पिटिशन दाखिल नहीं करने की बात कह चुके हैं। हालॉंकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का फैसला किया है।
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जफर फारूक़ी ने कहा, “भले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का फैसला किया है, लेकिन हम ऐसा नहीं करने के अपने पुराने स्टैंड पर कायम हैं।” उन्होंने कहा कि फैसले से पहले एआईएमपीएलबी ने कहा था कि उसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंजूर होगा। फिर उसने पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का फैसला क्यों किया। यह पूछे जाने पर कि क्या बोर्ड मस्जिद निर्माण के लिए जमीन स्वीकार करेगा फारूकी ने कहा कि इस संबंध में वक्फ बोर्ड की 26 नवंबर को होने वाली बैठक में फैसला किया जाएगा।
https://platform.twitter.com/widgets.js” #AIMPLB may have decided to seek review of the court’s judgement in the #AyodhyaCase, but the stand of the #SunniWaqfBoard of not doing so, remains intact,” said its chairman Zufar Farooqui.https://t.co/1i9lKhOSrk
— The New Indian Express (@NewIndianXpress) November 17, 2019
बता दें कि राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड मुख्य याचिकाकर्ताओं में से एक था। इस मामले में 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। शीर्ष अदालत ने विवादित जमीन रामलला को सुपुर्द करते हुए वहॉं मंदिर निर्माण के लिए सरकार को तीन महीने में ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया है। साथ ही मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में कहीं और मस्जिद बनाने के लिए पॉंच एकड़ जमीन उपलब्ध कराने के भी निर्देश दिए थे।
Will not file review petition in Ayodhya case: UP Sunni Central Waqf Board https://t.co/WMREZvfjM2
— Devdiscourse (@dev_discourse) November 17, 2019
गौरतलब है कि रविवार (नवंबर 17, 2019) को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने न्यायालय के फैसले के ख़िलाफ़ पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कही थी। बोर्ड का कहना है कि मस्जिद की जमीन अल्लाह की है और शरई कानून के मुताबिक वह किसी और को नहीं दी जा सकती। उस जमीन के लिए आखिरी दम तक कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी।
बैठक में मुस्लिम पक्ष के 45 सदस्य शामिल हुए। सभी ने कहा कि वो किसी अन्य जगह पर मस्जिद लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट नहीं गए थे, बल्कि विवादित स्थल रहे ज़मीन पर ही मस्जिद की माँग लेकर गए थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को त्रुटिपूर्ण करार दिया।https://t.co/1wGy4noE3A
— ऑपइंडिया (@OpIndia_in) November 17, 2019
जमीयत के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी का भी कहना है कि मुस्लिम मस्जिद स्थानांतरित नहीं कर सकते, इसलिए दूसरी जमीन नहीं ली जा सकती। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मुस्लिम पक्ष के ज्यादातर तर्कों को स्वीकार किया है। लिहाजा मुस्लिमों के पास अब भी जमीन वापस पाने के कानूनी विकल्प मौजूद हैं।