Thursday, May 2, 2024
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वक्फ प्रॉपर्टी नहीं है सूरत नगर निगम का मुख्य कार्यालय: वक्फ बोर्ड का आदेश ट्रिब्यूनल ने किया रद्द, बताया- अवैध, गलत और मनमाना

वक्फ ट्रिब्यूनल ने SMC की याचिका पर ध्यान देते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की। इसमें कहा गया, "इमारत बंदरगाह के कर और राजस्व के पैसे से बनाई गई थी, न कि शाहजहाँ या इशाक बेग की व्यक्तिगत आय से। इसलिए, यह संपत्ति मुगलों की स्व-अर्जित संपत्ति की परिभाषा में नहीं आती है। इसके चलते बंदरगाह के कर और राजस्व आय से बनी संपत्ति को वक्फ के नाम नहीं किया जा सकता।"

सूरत नगर निगम (SMC) के मुख्य कार्यालय को वक्फ संपत्ति घोषित करने का वक्फ बोर्ड का विवादास्पद निर्णय आखिरकार रद्द कर दिया गया है। ‘मुगलीसरा’ (मुगल सराय) के नाम से जाना जाता है। नवंबर 2021 में वक्फ बोर्ड ने एक आवेदन को आंशिक रूप से मंजूरी दे दी थी और SMC मुख्यालय को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया था। इसके बाद नगरपालिका ने इसे वक्फ ट्रिब्यूनल में चुनौती दी।

ट्रिब्यूनल ने आखिरकार 3 अप्रैल 2024 को वक्फ बोर्ड के दावे को खारिज कर दिया। ट्रिब्यूनल ने SMC को वक्फ संपत्ति घोषित करने के वक्फ बोर्ड के आदेश को कानून के स्थापित न्यायिक सिद्धांत के खिलाफ, गलत और मनमाना करार दिया। ट्रिब्यूनल के इस आदेश की एक प्रति ऑपइंडिया के पास उपलब्ध है।

दरअसल, साल 2016 में सूरत में एसएमसी की मुख्य इमारत का नाम ‘हुमायूँ सराय’ रखने की माँग करते हुए एक याचिका दायर की गई थी। याचिका सूरत के अब्दुल्ला जरुल्लाह नाम के एक व्यक्ति ने दायर की थी। उसने वक्फ अधिनियम की धारा 36 का हवाला देते हुए एसएमसी मुख्य कार्यालय भवन को वक्फ बोर्ड की संपत्ति के रूप में पंजीकृत करने की माँग की थी।

साल 2021 में कार्यालय भवन को ‘वक्फ बोर्ड संपत्ति’ के रूप में पंजीकृत कर दिया गया था। इसके साथ ही आदेश में इमारत को एसएमसी के अधीन करने के बजाय उसका प्रबंधन गुजरात राज्य वक्फ बोर्ड को करने का अधिकार दिया था। SMC मुख्य कार्यालय को वक्फ संपत्ति घोषित करने का वक्फ बोर्ड का विवादास्पद निर्णय आखिरकार रद्द कर दिया गया है।

याचिका में क्या था दावा?

याचिका में दावा किया गया था कि इमारत का निर्माण शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान किया गया था। इसके बाद इसे शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा बेगम को जागीर में दे दी गई थी। शाहजहाँ के भरोसेमंद व्यक्ति इशाक बेग यज़्दी उर्फ हकीकत खान ने इस इमारत को 1644 ईस्वी में 33,081 रुपए में बनवाया था। उस समय इसका नाम ‘हुमायूँ सराय’ था।

याचिका में आगे कहा गया था कि हकीकत खान ने इस इमारत को हज यात्रियों के लिए दान कर दी थी, क्योंकि सूरत एक प्रमुख बंदरगाह था और वहाँ से यात्रियों की बड़ी आवाजाही होती थी। याचिकाकर्ता अब्दुल्ला जारुल्लाह ने शरिया कानून का हवाला देते हुए माँग की कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर धार्मिक उद्देश्यों के लिए दान की गई संपत्ति पर वक्फ बोर्ड का अधिकार होना चाहिए।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक बार संपत्ति वक्फ के पास जाने के बाद वह वक्फ के पास ही रहेगी। इस दावे को लेकर याचिकाकर्ता ने 17 अलग-अलग दस्तावेज़ प्रस्तुत किए थे। इसमें कहा गया कि चार शताब्दी पुरानी इमारत का उपयोग 1867 तक तीर्थयात्रियों के लिए होता था। इसके बाद अंग्रेजों ने इसे नगरपालिका का कार्यालय बना दिया। बाद में यह इमारत SMC का मुख्य कार्यालय बन गई।

वक्फ बोर्ड ने SMC मुख्यालय भवन को अपनी संपत्ति घोषित किया

वक्फ बोर्ड ने जारुल्लाह के आवेदन को स्वीकार कर लिया और निर्देश दिया कि एसएमसी कार्यालय की मुख्य इमारत को वक्फ संपत्ति घोषित की जाए। सूरत नगर निगम की कानून समिति के अध्यक्ष और नगरसेवक नरेश राणा और नगर निगम के अधिकारियों ने वक्फ बोर्ड के इस फैसले का विरोध किया।

इस बीच जब इस मामले में दस्तावेजों की जाँच की गई तो उसमें कुछ खामियाँ नजर आईं। इसके बाद इस पूरे मामले को वक्फ ट्रिब्यूनल के सामने पेश किया गया। ट्रिब्यूनल में सुनवाई के दौरान एसएमसी की ओर से पेश वकील कौशिक पंड्या ने अपनी दलीलें पेश कीं।

वक्फ बोर्ड के खिलाफ ट्रिब्यूनल की कड़ी प्रतिक्रिया

वक्फ ट्रिब्यूनल ने SMC की याचिका पर ध्यान देते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की। इसमें कहा गया, “इमारत बंदरगाह के कर और राजस्व के पैसे से बनाई गई थी, न कि शाहजहाँ या इशाक बेग की व्यक्तिगत आय से। इसलिए, यह संपत्ति मुगलों की स्व-अर्जित संपत्ति की परिभाषा में नहीं आती है। इसके चलते बंदरगाह के कर और राजस्व आय से बनी संपत्ति को वक्फ के नाम नहीं किया जा सकता।”

ट्रिब्यूनल ने कहा कि मुगलसराय के निर्माण के इतिहास को देखते हुए इसका निर्माण सूरत बंदरगाह के कर और राजस्व धन की आय के साथ-साथ राज्य के कर धन से किया गया है। इसलिए इसे मुगल शासक की स्व-अर्जित संपत्ति से निर्मित नहीं माना जा सकता। एक मुस्लिम अपनी अर्जित संपत्ति को वक्फ कर सकता है, करों की आय और राज्य के बंदरगाह के राजस्व से बनी संपत्ति को नहीं।

ट्रिब्यूनल ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता ने वक्फ बोर्ड के समक्ष दस्तावेजों की केवल फोटो कॉपी जमा की थी। साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार फोटो कॉपी को स्वीकार्य नहीं माना जा सकता। ट्रिब्यूनल ने कहा कि याचिकाकर्ता ने दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियाँ गलत तरीके से पेश की थीं। उसे आदेश में गलत तरीके से दिखाया गया था, जो एक बोर्ड के लिए शर्म की बात है।

सूरत में इस नाम की कोई बिल्डिंग नहीं है: ट्रिब्यूनल

ट्रिब्यूनल ने कहा कि वक्फ बोर्ड द्वारा संपत्ति को ‘हुमायूँ सराय वक्फ संपत्ति’ के रूप में पंजीकृत करने का आदेश दिया गया था, जो कि अवैध है। इस संपत्ति को निर्माण के बाद से ‘मुगलसराय’ के नाम से जाना जाता है। सूरत शहर के वार्ड नंबर 11 में ‘हुमायूँ सराय’ नाम की कोई इमारत नहीं है। सिटी सर्वे नंबर 1504 की संपत्ति को अतीत में कभी भी ‘हुमायूँ सराय’ के नाम से नहीं जाना जाता था।

आदेश में आगे कहा गया है कि बोर्ड के सदस्यों और अधिकारियों को इस तथ्य को भली-भाँति जानते हैं कि संपत्ति ‘मुगल सराय’ है और यह 18वीं शताब्दी से इस नाम से जानी जाती है। इस संबंध में याचिकाकर्ता ने साक्ष्य प्रस्तुत किए। इसके बावजूद बोर्ड ने जाँच के नाम पर आवेदन को सत्यापित करने की कोशिश नहीं की।

ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में आगे कहा कि वक्फ बोर्ड ने इसे कानूनी रूप से जाँचे बिना ही संपत्ति को ‘हुमायूँ सराय’ के रूप में सरकारी रिकॉर्ड पर रखने का अनुचित और अवैध तथा असफल प्रयास किया है। बोर्ड के लिए ऐसा करना बेहद चौंकाने वाला है। इतना ही नहीं, ट्रिब्यूनल ने इस फैसले को बोर्ड की प्रतिष्ठा को धूमिल करने वाला भी बताया।

याचिकाकर्ता ने इमारत को वक्फ घोषित करने के लिए जिस शिलालेख का हवाला दिया था, उसे ‘वक्फ डीड’ कहा गया था। उस शिलालेख में किसी मुतवल्ली (एक तरह का ट्रस्टी) का कोई जिक्र नहीं है। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में बताया था कि वह वहाँ का मुतवल्ली है।

इस मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए ट्रिब्यूनल ने कहा, “केस पेपर का अध्ययन करते समय याचिकाकर्ता ने एक हलफनामा प्रस्तुत किया कि वह विवादित संपत्ति का मुतवल्ली था। वह कभी भी इस इमारत के मुतवल्ली नहीं था और उसके लिए ऐसा करना एक आपराधिक कृत्य है।”

एसएमसी की मेहनत रंग लाई

गाँधीनगर वक्फ ट्रिब्यूनल ने वक्फ बोर्ड के फैसले को पलट दिया है। SMC मुख्यालय भवन को वक्फ के कब्जे से मुक्त कर दिया है और इसे ‘मुगलसराय’ नाम फिर से दे दिया है। इस संबंध में ऑपइंडिया ने नरेश राणा से संपर्क किया। वह सूरत नगर निगम की कानून समिति के अध्यक्ष और स्थानीय नगरसेवक हैं।

उन्होंने कहा, “6-7 महीने पहले जब मुझे चेयरमैन नियुक्त किया गया तो यह पूरी बात हमारे सामने आई। इससे जुड़े दस्तावेजों की बारीकी से जाँच करने पर वक्फ बोर्ड का दावा असंवैधानिक पाया गया। इसीलिए हम, वरिष्ठ वकील कौशिक पंड्या और एसएमसी की लॉ कमेटी की टीम ने यह केस लड़ा और एसएमसी जीत गई। सभी की मेहनत रंग लाई है।”

(यह रिपोर्ट को मूल रूप से अंग्रेजी में क्रुणाल सिंह राजपूत ने लिखी है। उसे पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।)

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Krunalsinh Rajput
Krunalsinh Rajput
Journalist, Poet, And Budding Writer, Who Always Looking Forward To The Spirit Of Nation First And The Glorious History Of The Country And a Bright Future.

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