Sunday, November 24, 2024
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26 साल, 400 तरीखें और फिर बरी: झूठे आरोप में कोर्ट के चक्कर में 70 साल के बुजुर्ग ने बिता दी जवानी, बेटियों को भी पढ़ा नहीं पाया

दिहाड़ी मजदूर रामरतन का कहना है कि पुलिस ने कट्टा और कारतूस की बरामदगी दिखाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इस तरह वे केस के जाल में फँस गए और उनकी आर्थिक स्थिति चरमरा गई। इस कारण उनकी दो बेटियाँ पढ़ नहीं पाईं और ना ही अपनी पितृ धर्म का उचित पालन करते हुए उनकी शादी ढंग के घर में पाए।

भारत की न्यायिक व्यवस्था इतनी सड़-गल चुकी है कि एक निर्दोष व्यक्ति को दोषमुक्त साबित करने के लिए कई दशक लग जाते हैं। इस दौरान की आर्थिक, सामाजिक और मानसिक पीड़ा को समझने के लिए भारत की व्यवस्था के पास कोई उपाय नहीं है।

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के रहने वाले 70 साल के रामरतन को लगभग तीन दशक तक ऐसी ही पीड़ा से गुजरना पड़ा। न्यायालय ने अपनी कछुआ चाल कार्रवाई के बाद फैसला सुनाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। इस पर मंथन करने की कभी जरूरत महसूस नहीं की कि आखिर एक सामान्य नागरिक न्यायालय पाने में तीन दशक क्यों लगे।

बुजुर्ग रामरतन को मुजफ्फरनगर के कोतवाली थाना की पुलिस ने अवैध तमंचा रखने के झूठे आरोप में साल 1996 में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। रामरतन करीब 3 माह तक जेल में रहे और उसके बाद जमानत पर बाहर आने के बाद 26 वर्षों तक कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाते रहे।

पुलिस की झूठी कहानी का प्रमाण तब सामने आया जब, इतने वर्षों में भी उसने बरामद तमंचे को साक्ष्य के रूप में कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर पाई। इतना ही नहीं, विवेचना अधिकारी कोर्ट में गवाही तक नहीं दिया। इसके बाद जिले की सीजेएम मनोज कुमार जाटव की अदालत ने 24 साल बाद फैसला सुनाते हुए सितंबर 2020 में रामरतन को सबूतों के अभाव में आरोपों से बरी कर दिया।

इसके बाद राज्य सरकार की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता ने जिला जज की अदालत में मुकदमे की सुनवाई फिर से शुरू कर ने की याचिका दी। इसके बाद वहाँ मामले की सुनवाई शुरू की गई। करीब दो साल तक चली सुनवाई में दोनों तरफ से दलीलें सुनने के बाद अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या-11 के जज शाकिर हसन ने इस अपील को खारिज कर दिया।

इस तरह पुलिस द्वारा लगाए गए झूठे आरोप के कारण 26 सालों में 400 तारीखों के बाद रामरतन 27 जून 2022 को फिर बरी हो गए। इस अवधि में उन्होंने तमाम तरह की परेशानियाँ झेलीं और अपने जीवन के महत्वपूर्ण 26 साल कोर्ट-कचहरी के चक्कर में गँवा दिए।

दिहाड़ी मजदूर रामरतन का कहना है कि पुलिस ने कट्टा और कारतूस की बरामदगी दिखाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इस तरह वे केस के जाल में फँस गए और उनकी आर्थिक स्थिति चरमरा गई। इस कारण उनकी दो बेटियाँ पढ़ नहीं पाईं और ना ही अपनी पितृ धर्म का उचित पालन करते हुए उनकी शादी ढंग के घर में पाए।

रामरतन का कहना है कि उनकी पूरी जवानी मुकदमा लड़ने में बीत गई। उन्होंने कहा कि इस संबंध में राज्य सरकार को पत्र लिखकर फर्जी गिरफ्तारी करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने की माँग की है। इसके साथ ही उन्होंने सरकार से आर्थिक सहायता की भी माँग की है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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