Friday, May 9, 2025
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जिस ‘द आयरिश टाइम्स’ ने चलाया पाकिस्तान का प्रोपेगेंडा, उसी में लेख लिख कर भारतीय राजदूत ने लगाई लताड़: ऑपइंडिया को बताया – ये हमेशा चलाते हैं हिन्दू विरोधी एजेंडा

'द आयरिश टाइम्स' के संपादकीय में लेख के अंत में यह दावा किया गया कि 'पहलगाम पर तनाव में भयावह वृद्धि, विभाजन के समय से चली आ रही कटु सांप्रदायिक विभाजन का परिणाम है, जिससे दोनों देशों के बीच पूर्ण युद्ध की आशंका है।'

आयरलैंड में भारत के राजदूत अखिलेश मिश्रा ने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले पर ‘द आयरिश टाइम्स’ के संपादकीय की तीखी आलोचना की। उन्होंने अखबार पर हिंसा की स्पष्ट रूप से निंदा न करने और इसके बजाय आतंकवादियों तथा उनके समर्थकों को अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण देने का आरोप लगाया। अखिलेश मिश्रा ने ‘द आयरिश टाइम्स’ के दृष्टिकोण को पक्षपातपूर्ण और संवेदनहीन बताया।

मंगलवार (6 मई, 2025) को भारत के राजदूत अखिलेश मिश्रा ने ‘द आयरिश टाइम्स’ द्वारा फैलाए गए दुष्प्रचार का एक विस्तृत खंडन प्रकाशित किया। उन्होंने इस पर गहरी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि अखबार ने पहलगाम आतंकवादी हमले के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कथित ‘तलवारें लहराने’ की आलोचना पर तो ज़ोर दिया, लेकिन हमले के पीड़ितों के प्रति संवेदना या एकजुटता दिखाने में पूरी तरह विफल रहा।

‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट साझा करते हुए भारत के राजदूत अखिलेश मिश्रा ने कहा, “पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले पर ‘द आयरिश टाइम्स’ के दुर्भावनापूर्ण संपादकीय पर अखिलेश मिश्रा का जवाब – यह लेख आतंकवाद की स्पष्ट निंदा करने और निर्दोष पीड़ितों के प्रति सहानुभूति जताने की बजाय, प्रधानमंत्री मोदी पर ‘तलवारें लहराने’ का आरोप लगाता है और भारत की तुलना पाकिस्तान से करता है, जिससे आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों को अप्रत्यक्ष रूप से कवर फायर मिलता है।”

‘द आयरिश टाइम्स’ के संपादक को लिखे एक पत्र में भारत के राजदूत अखिलेश मिश्रा ने कहा कि जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले पर अखबार के संपादकीय में न केवल पेशेवर निष्पक्षता का अभाव है, बल्कि यह आयरलैंड के आम नागरिकों और नेताओं, विशेषकर ताओसीच माइकल मार्टिन द्वारा भारत के प्रति व्यक्त की गई सहानुभूति के भी विपरीत है। मिश्रा ने उल्लेख किया कि मार्टिन ने स्पष्ट रूप से कहा था कि आयरलैंड इस दुखद घटना के मद्देनज़र भारत के लोगों के साथ एकजुटता में खड़ा है।

राजदूत अखिलेश मिश्रा ने अपने पत्र में यह स्पष्ट किया कि यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने पहलगाम आतंकी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की है। उन्होंने ‘द आयरिश टाइम्स’ के संपादकीय में महत्वपूर्ण विवरणों की अनुपस्थिति को भी उजागर किया, विशेष रूप से उन बयानों की, जिनमें हमले के अपराधियों को जवाबदेह ठहराने की संयुक्त राष्ट्र की अपील शामिल थी। मिश्रा ने आलोचना की कि अखबार ने इन गंभीर पहलुओं को दरकिनार करते हुए जम्मू और कश्मीर में भारत सरकार की नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चुना।

राजदूत अखिलेश मिश्रा ने ‘द आयरिश टाइम्स’ को संबोधित अपने पत्र में जोर देकर कहा कि पहलगाम आतंकी हमले की वैश्विक स्तर पर कड़ी निंदा की गई है। उन्होंने उल्लेख किया कि यूरोपीय संघ की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन इस हमले की निंदा करने वाली पहली वैश्विक नेताओं में से थीं, और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी सर्वसम्मति से इस नृशंस कृत्य की आलोचना करते हुए अपराधियों, आयोजकों, वित्तपोषकों और प्रायोजकों को न्याय के कटघरे में लाने की आवश्यकता पर बल दिया। मिश्रा ने आलोचना की कि ‘द आयरिश टाइम्स’ ने संयुक्त राष्ट्र के इस महत्वपूर्ण बयान को अपने संपादकीय में नज़रअंदाज़ कर दिया।

उन्होंने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि निर्दोष पीड़ितों के साथ खड़े होने के बजाय अखबार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ‘तलवारें लहराने’ का आरोप लगाया और भारत की पाकिस्तान से तुलना की—एक ऐसा देश जिसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादियों को शरण देने और ओसामा बिन लादेन को वर्षों तक छिपाने के लिए जाना जाता है। मिश्रा ने यह भी रेखांकित किया कि 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू और कश्मीर में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, जिसमें तेज़ आर्थिक विकास, विदेशी निवेश में वृद्धि और पर्यटन क्षेत्र का विस्तार शामिल है।

पत्र में ‘द आयरिश टाइम्स’ की इस धारणा को भी गलत बताया गया कि जम्मू कश्मीर में प्रत्यक्ष शासन और सुरक्षा उपायों के चलते स्थानीय लोगों को ‘झटका’ लगा है। मिश्रा ने स्पष्ट किया कि इसके विपरीत, इन कदमों ने क्षेत्र में स्थायित्व और समृद्धि को बढ़ावा दिया है।

राजदूत अखिलेश मिश्रा ने ‘द आयरिश टाइम्स’ को लिखे पत्र में बताया कि 2019 में भारतीय संविधान से अस्थायी अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद जम्मू और कश्मीर में अभूतपूर्व आर्थिक और अवसंरचनात्मक विकास हुआ है। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में घरेलू और विदेशी निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, पर्यटन तेज़ी से बढ़ा है, और एक पूर्ण लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रिया का पुनरुद्धार हुआ है। इसका प्रमाण 2024 में हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हैं, जिसमें 63.9 प्रतिशत मतदान के साथ लोगों ने लोकतांत्रिक सरकार चुनी।

मिश्रा ने आगे कहा कि पहलगाम में हुए इस्लामिक आतंकी हमले के बाद भारत में गहरा आक्रोश है। पूरा देश—जिसमें कश्मीर घाटी के नागरिक, सभी राजनीतिक दल, विपक्षी नेता, प्रमुख मुस्लिम नेता और नागरिक समाज शामिल हैं—सरकार के उस संकल्प के साथ खड़ा है, जिसके तहत इस जघन्य हमले के अपराधियों और साजिशकर्ताओं को न्याय के कठघरे में लाया जाएगा।

आयरलैंड में भारत के राजदूत ने ऑपइंडिया से की बात

ऑपइंडिया को ईमेल पर दी गई प्रतिक्रिया में आयरलैंड में भारत के राजदूत अखिलेश मिश्रा ने ‘द आयरिश टाइम्स’ पर भारत के प्रति ‘बेहद नकारात्मक’ रवैया अपनाने का आरोप लगाया। अखिलेश मिश्रा ने कहा कि भले ही अखबार की भारत से जुड़ी अधिकांश खबरें समाचार एजेंसियों से ली जाती हैं, लेकिन इसके संपादकीय और राय लेख लगातार एकतरफा रहे हैं, जिनमें भारत की आलोचना और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति कठोर टिप्पणियाँ प्रमुख रही हैं। उन्होंने इस रुख को भारत की छवि खराब करने और उसके खिलाफ पक्षपातपूर्ण बयानबाज़ी को बढ़ावा देने का ‘सुनियोजित प्रयास’ बताया।

राजदूत मिश्रा ने स्पष्ट किया कि भारतीय दूतावास ने ‘द आयरिश टाइम्स‘ को बार-बार इस तरह की मोदी-विरोधी और भारत-विरोधी सामग्री प्रकाशित करने पर चेताया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अखबार न केवल पक्षपाती है, बल्कि ‘हिंदुओं की भावनाओं के प्रति संवेदनहीन’ भी रहा है।

भारतीय राजदूत अखिलेश मिश्रा ने ‘द आयरिश टाइम्स’ पर एक बार फिर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि हाल ही में प्रकाशित संपादकीय ‘भारत और पाकिस्तान पर आयरिश टाइम्स का दृष्टिकोण व्यापक संघर्ष से बचना चाहिए’ के अलावा, आयरिश मीडिया आउटलेट ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक हिटजॉब भी प्रकाशित की थी। इस लेख का शीर्षक था – “भारतीय चुनाव पर आयरिश टाइम्स का दृष्टिकोण, मोदी ने अपनी पकड़ मजबूत की”, जिसमें भारत पर ‘असहिष्णु हिंदू-प्रथम बहुसंख्यकवाद’ को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया।

अखबार ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करते हुए दावा किया कि भारत की ‘लोकतांत्रिक साख को भारी नुकसान पहुँचा है’ और प्रधानमंत्री मोदी की तुलना तुर्की के इस्लामवादी नेता रेसेप तैय्यप एर्दोआन से की। उस समय भी राजदूत अखिलेश मिश्रा ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए ‘द आयरिश टाइम्स’ के प्रचार और पूर्वाग्रह से भरे रुख की कड़ी निंदा की थी।

अगस्त 2023 में ‘द आयरिश टाइम्स’ ने एक और मोदी-विरोधी संपादकीय प्रकाशित किया था, जिसमें उसने बिना पर्याप्त तथ्यों के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़काने के लिए दोषी ठहराया। इस लेख में न केवल मैतेई हिंदू समुदाय को बदनाम किया गया, बल्कि कुकी ईसाई समूहों की संलिप्तता, विशेष रूप से म्यांमार और मणिपुर से मिज़ोरम और बांग्लादेश के माध्यम से होने वाली अफीम और सिंथेटिक ड्रग्स की तस्करी में उनकी भूमिका को नजरअंदाज किया गया। इसके अलावा, अखबार ने ‘दक्षिणपंथी हिंदू चरमपंथियों से मुस्लिम अल्पसंख्यकों को खतरा’ जैसे भ्रामक आरोप लगाए, जबकि इस्लामी हिंसा के कई मामलों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया।

राजदूत अखिलेश मिश्रा ने उस समय भी इस पक्षपातपूर्ण और भ्रामक संपादकीय का स्पष्ट और तथ्यात्मक जवाब दिया था। उन्होंने बताया कि उनके जवाब  द आयरिश टाइम्स की वेबसाइट के “संपादक को पत्र” खंड में प्रकाशित तो हुए, लेकिन अखबार ने उनके पत्रों को “गंभीर रूप से विकृत” कर प्रस्तुत किया। जब ऑपइंडिया ने पूछा कि क्या अखबार ने उन खंडनों का कोई उत्तर दिया या अपने दृष्टिकोण में कोई बदलाव किया, तो अखिलेश मिश्रा ने स्पष्ट किया कि न तो अखबार ने कोई प्रतिक्रिया दी, न ही भारत और विशेष रूप से हिंदू समुदाय के प्रति अपने पूर्वाग्रही और संवेदनहीन दृष्टिकोण को बदला।

ऑपइंडिया द्वारा पूछे गए एक अन्य सवाल के जवाब में अखिलेश मिश्रा ने बताया कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा 26 निर्दोष लोगों की धार्मिक आधार पर हत्या किए जाने वाले पहलगाम आतंकी हमले को लेकर आयरलैंड के प्रधानमंत्री ने भारत और पीड़ितों के प्रति संवेदना और एकजुटता प्रकट की थी।

हालाँकि, जब पाकिस्तान में भारत द्वारा की गई आतंकवाद विरोधी कार्रवाई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर आयरलैंड की आधिकारिक प्रतिक्रिया के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि ‘अब तक आयरिश पक्ष ने ऑपरेशन सिंदूर पर कोई बयान जारी नहीं किया है।’

आयरिश टाइम्स या पाकिस्तान टाइम्स: पीड़ित को ही दिखाता है उपद्रवी

28 अप्रैल को प्रकाशित द आयरिश टाइम्स  के संपादकीय ‘भारत और पाकिस्तान पर आयरिश टाइम्स का दृष्टिकोण व्यापक संघर्ष से बचना चाहिए’ की भारत में तीव्र आलोचना हुई, विशेष रूप से आयरलैंड में भारतीय राजदूत अखिलेश मिश्रा द्वारा, जिन्होंने इसे ‘पाकिस्तानी प्रचार’ के अनुरूप बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि संपादकीय ने भारत को पाकिस्तान प्रायोजित इस्लामी आतंकवाद का शिकार होने के बावजूद एक हमलावर के रूप में दिखाया, जबकि पाकिस्तान को एक भयभीत पीड़ित की तरह पेश किया गया।

संपादकीय में पाकिस्तान के ‘जिम्मेदारी से इनकार’ और ‘स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय जाँच’ में सहयोग की बात तो की गई, लेकिन भारत की ओर से वर्षों से आतंकवाद पर प्रस्तुत किए गए ठोस सबूतों की पूरी तरह से अनदेखी की गई। उदाहरणस्वरूप, 26/11 मुंबई हमलों के बाद भारत ने पाकिस्तान को लश्कर-ए-तैय्यबा और जमात-उल-दावा प्रमुख हाफ़िज़ सईद की संलिप्तता के साथ कई डोजियर सौंपे।

मार्च 2012 में पाकिस्तानी न्यायिक आयोग को भारत आकर गवाहों के बयान दर्ज करने की अनुमति भी दी गई थी, लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान की अदालतों ने सईद को दोषमुक्त कर दिया। इसी तरह, पठानकोट (2016) और पुलवामा (2019) आतंकी हमलों में भी भारत ने पाकिस्तान को सबूत सौंपे, जिसमें हमलावरों की पहचान, DNA नमूने और वित्तीय दस्तावेज शामिल थे, लेकिन पाकिस्तान ने न तो कोई कार्रवाई की, न ही जाँच में सहयोग दिया।

राजदूत अखिलेश मिश्रा ने यह भी इंगित किया कि द आयरिश टाइम्स को यह अपेक्षा है कि भारत पाकिस्तान को सबूत देता रहे, जबकि पाकिस्तान उनका वर्षों तक उपयोग न करे, उन्हें खारिज कर दे या आतंकवादियों की मौजूदगी से ही इनकार कर दे। उन्होंने कहा कि यह नजरिया इस हकीकत को नजरअंदाज करता है कि पाकिस्तान की धरती से सक्रिय इस्लामी आतंकी संगठनों को वहाँ की सरकार, सेना और ISI का संरक्षण प्राप्त है, जो उन्हें भारत के खिलाफ प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

संपादकीय ने अनुच्छेद 370 और 35A के निरसन पर भी विरोध जताते हुए कहा कि मोदी सरकार ने भारत के एकमात्र मुस्लिम-बहुल राज्य की सीमित स्वायत्तता छीन ली। अखिलेश मिश्रा ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि द आयरिश टाइम्स ने कश्मीर की धार्मिक जनसांख्यिकी के इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया और यह बताना उचित नहीं समझा कि 1990 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं को जिहादी हिंसा के चलते उनके ही घरों से मार-भगाया गया था। उन्होंने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 370 और 35A का हटाया जाना मुस्लिम समुदाय पर अत्याचार नहीं, बल्कि एक संवैधानिक सुधार था। जिसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा है।

अखिलेश मिश्रा के अनुसार, यह वही हिंदू-विरोधी मानसिकता है जो कश्मीरी पंडितों के पलायन और हाल के पहलगाम आतंकी हमले दोनों की जड़ में है। उन्होंने द आयरिश टाइम्स के रुख को भारत और विशेष रूप से हिंदुओं के प्रति पूर्वाग्रही, पक्षपातपूर्ण और ऐतिहासिक तथ्यों की अनदेखी करने वाला बताया।

द आयरिश टाइम्स के संपादकीय में लेख के अंत में यह दावा किया गया कि “पहलगाम पर तनाव में भयावह वृद्धि, विभाजन के समय से चली आ रही कटु सांप्रदायिक विभाजन का परिणाम है, जिससे दोनों देशों के बीच पूर्ण युद्ध की आशंका है।” इस कथन की तीखी आलोचना करते हुए भारत ने इसे वास्तविकता से पूरी तरह विपरीत बताया।

राजदूत अखिलेश मिश्रा और अन्य विश्लेषकों ने स्पष्ट किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव सांप्रदायिक विभाजन का नहीं, बल्कि पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित इस्लामी आतंकवाद और हिंदुओं तथा अन्य समुदायों के प्रति उसकी गहरी घृणा का परिणाम है। यह भावना हाल ही में पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर द्वारा सार्वजनिक रूप से दोहराई गई थी।

भारत में हिंदू बहुल आबादी के बीच मुसलमानों, सिखों और अन्य धार्मिक समुदायों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की एक समृद्ध परंपरा रही है। इसके विपरीत, इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान ने 1947 के बाद से लगातार अपने हिंदू और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हत्या, बलात्कार, उत्पीड़न और व्यवस्थित भेदभाव किया है।

“ऑपरेशन सिंदूर” के जरिए भारत ने यह स्पष्ट संकेत दिया है कि अब वह अपने नागरिकों की धार्मिक पहचान के आधार पर लक्षित हत्याओं को बर्दाश्त नहीं करेगा और न ही ‘अमन की आशा’ (शांति की आशा) के नाम पर चुप्पी साधेगा। यह कार्रवाई पाकिस्तान और इस्लामी आतंकवाद को समर्थन देने वाले तत्वों के लिए एक कड़ा संदेश था।

(यह खबर मुख्य रूप से हमारे यहाँ ऑपइंडिया इंग्लिश टीम की श्रद्धा पांडे ने लिखी है।)

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Shraddha Pandey
Shraddha Pandey
Sub-editor at OpIndia. I tell harsh truths instead of pleasant lies. हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय.

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