गणतंत्र दिवस के दिन अराजकता का एक नया नमूना देख रहे हैं, जिसने ‘किसानों’ के नाम पर पूरी दिल्ली में ऐसा उत्पात मचाया है कि इतिहास में ये शर्मिंदगी के रूप में दर्ज होगा। सुप्रीम कोर्ट पहले ही तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगा चुका है। केंद्र सरकार 1.5 वर्षों के लिए इन्हें स्थगित करने के लिए तैयार है। बावजूद इसके ‘किसान’ दंगाइयों ने दिल्ली में लाल किला पर चढ़ कर ‘खालिस्तानी झंडा’ फहरा दिया। अब जरा कैपिटल हिल कांड को याद कीजिए।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का आरोप था कि चुनाव में धाँधली हुई है, इसीलिए वो हारे और जो बायडेन की जीत हुई। जिस दिन इलेक्टोरल कॉलेज के वोट्स की गिनती होनी थी, उसी दिन कैपिटल हिल में प्रदर्शनकारी घुसे और हंगामा किया। उनमें से कई अजीबोगरीब वेशभूषा में थे। बैरिकेड्स तोड़ कर और दीवारें लाँघ कर खिड़की से लोग भीतर घुस गए। जनवरी के पहले हफ्ते के अंत में हुई इस घटना के बाद पूरे वाशिंगटन डीसी को लॉकडाउन में डाल दिया गया था।
तब लिबरल गिरोह की इस पर क्या प्रतिक्रिया थी? याद कीजिए। सब ने एक स्वर से इसके लिए डोनाल्ड ट्रम्प की आलोचना की और कैपिटल हिल में घुसने वालों को स्पष्ट रूप से ‘दंगाई’ कहा। बरखा दत्त ने पूछा कि क्या अमेरिका अब दूसरों को लोकतंत्र को लेकर भाषण दे सकता है, जब ट्रम्प ने उसे शर्मिंदगी से भर दिया है। सागरिका घोष ने उसमें भी ‘भगवा झंडा लिए हिंदुत्ववादी’ को देख लिया था। राजदीप सरदेसाई ने कहा कि जब किसी एक व्यक्ति के हाथ में सारी सत्ता आ जाती है तो उसके समर्थक ऐसे ही करते हैं।
उनका इशारा किस ओर था, हम समझ सकते हैं। रवीश कुमार ने इस पर पूरा का पूरा प्राइम टाइम करके अपने अनुयायियों को इशारों में चेताया कि ऐसा भारत में भी हो सकता है। हो सकता है, सत्ता में जो भाजपा बैठी है, वो कर सकती है। इसी तरह से सारे भारतीय मीडिया के लोग इस तरह से मातम मना रहे थे, जैसे उन्हें कोई व्यक्तिगत नुकसान हुआ हो। NDTV के प्रणय रॉय ने बायडेन के शपथग्रहण के बाद ‘Yeeeeeee’ मोमेंट भी शेयर किया।
ये लिबरल गिरोह इस फेर में थे कि दिल्ली में कुछ ऐसा हो जिसका आरोप सीधा केंद्र सरकार पर मढ़ा जा सके और दिखाया जा सके कि जो कैपिटल हिल में ‘ट्रम्प ने करवाया’, वही मोदी सरकार भारत में करवा रही है। लेकिन, ‘किसान आंदोलन‘ ने उनकी कलई खोल कर रख दी। दिल्ली दंगों के समय जैसे सोशल मीडिया पर सबूत आते गए और ये बेनकाब होते गए, ठीक उसी तरह से ये लोग अब इस ‘किसान आंदोलन’ में बेनकाब हो रहे हैं।
किसानों ने पहले वादा किया कि वो हंगामा नहीं करेंगे। दिल्ली पुलिस ने अनुमति भी दे दी। रूट भी तय कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों को तो रोक दिया, लेकिन किसानों की ट्रैक्टर रैली से पल्ला झाड़ते हुए इस पर दिल्ली पुलिस को निर्णय लेने को कहा। दिल्ली में किसान घुसे, लेकिन उन्होंने बताए गए रूट का अनुसरण न कर के सीधा लाल किला और ITO की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया। फिर हिंसा का दौर शुरू हुआ।
Goons doing hooliganism
— Political Kida (@PoliticalKida) January 26, 2021
Rajdeep like reporter spreading fake news to turn it into riot. pic.twitter.com/tRYGwM8y5D
पुलिसकर्मियों के ऊपर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिश की गई। महिला पुलिसकर्मी के साथ बदसलूकी हुई। एक पुलिसकर्मी बेहोश हो गया। सोशल मीडिया से राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा जैसे नेता हिंसा करने वालों को और भड़काते रहे, उनका बचाव करते रहे। ट्रैक्टरों में शराब भरे हुए हैं। दिल्ली पुलिस के जवानों को तलवारें लहराते हुए खदेड़ा गया। बसों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। पुलिस के वाहन को भी नहीं बख्शा गया।
और इस बीच कैपिटल हिल उपद्रव की निंदा करने वाले क्या कर रहे हैं? बचाव। दंगाइयों और उपद्रवियों का बचाव। राजदीप सरदेसाई अफवाह फैलाने में लगे हुए हैं कि दिल्ली पुलिस ने ‘किसान आंदोलन’ में एक किसान को मार डाला। रोहिणी सिंह खालिस्तानी झंडे को राष्ट्रीय ध्वज बता रहीं। नरेंद्र नाथ मिश्रा पुलिस पर ही क्रूरता का आरोप लगा रहे। राहुल गाँधी ‘हिंसा से देश का नुकसान’ होने की दुहाई दे रहे।
Declare Rohini Singh official face of Fake News pic.twitter.com/f0wzCVeNxO
— Dr mthn (Proff Paracetamol University) (@Being_Humor) January 26, 2021
लेकिन, इन घाघ लिबरलों के सोशल मीडिया हैंडल्स सस्पेंड नहीं होंगे। क्या जिस तरह से ये लोग ट्रम्प की आलोचना कर रहे थे, उस तरह से इस उपद्रव की आग में घी डालने का काम करने वाले राहुल-प्रियंका की निंदा कर सकते हैं? इनमें हिम्मत है? जिस तरह से कैपिटल हिल के दंगाई को दंगाई कहा, उस तरह से दिल्ली में जमा अराजकतावादियों को ये दंगाई कहने की हिम्मत रखते हैं? कैपिटल हिल के लिए छाती पीटने वाले अब ताली क्यों पीट रहे?
NDTV के पत्रकार ये समझाने में लगे हुए हैं कि लाल किला पर फहराया गया झंडा फलाँ झंडा था, फलाँ नहीं था। दंगों का महिमामंडन हो रहा है। इन सबके बीच योगेंद्र यादव भी टीवी चैनलों पर इंटरव्यू देते हुए घूम रहे हैं, ताकि ‘बुद्धिजीवियों’ के बीच दंगाइयों के पक्ष में माहौल तैयार कर सकें। ट्रम्प की आलोचना करने वाले राहुल-प्रियंका तो दूर, इच्छाधारी प्रदर्शनकारी योगेंद्र यादव के खिलाफ भी एक शब्द तक बोलने की हिम्मत नहीं रखते।
If it’s a ‘farmer’ protest, why even the religious Nishan Sabeb flag? https://t.co/Yjw77kqu8i
— Swati Goel Sharma (@swati_gs) January 26, 2021
NDTV इन सबके बीच JNU के छात्रों का इंटरव्यू ले रहा है। मीडिया पर पत्थरबाजी हो रही है लेकिन मीडिया के ही लोग उन्हीं दंगाइयों को बचाने में लगे हुए हैं। किसी आंदोलन में गलती से भी कभी कोई हिंदू प्रतीक चिह्न दिख जाए तो उसे ‘भगवा आतंकवाद’ नाम दे दिया जाएगा लेकिन आज उनका सारा जोर इस बात पर है कि फलाँ झण्डा खालिस्तानी नहीं था बल्कि ये तो सिखों का पवित्र ध्वज था। यहाँ आंदोलन में धर्म घुसने से उन्हें दिक्कत नहीं होती?
एक दिन पहले यही लोग इस बात में लगे थे कि कैसे राष्ट्रपति भवन में लगाए गए नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर को एक अभिनेता का साबित किया जा सके। महुआ मोइत्रा की ट्वीट के बाद पत्रकारों ने एक बाढ़ सी ला दी राष्ट्रपति को बदनाम करने के लिए। 1 दिन भी नहीं बीता कि अब यही पूरा का पूरा गैंग गणतंत्र दिवस का मजाक बना कर रख देने वालों के बचाव में जुटा हुआ है। कल CAA विरोधी दंगाई थे, आज ‘किसान’ उपद्रवी हैं।