Thursday, April 25, 2024
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पालघर, राजस्थान, या दिल्ली.. हिन्दुओं की हत्या पर खबरों से ‘हिन्दू’ क्यों गायब कर देता है पत्रकारिता का समुदाय विशेष

दिल्ली की इसी घटना पर इंडिया टुडे ने ख़बर प्रकाशित की, ख़बर के शीर्षक में ही बताया गया कि वह दिल्ली विश्वविद्यालय का छात्र था। उसकी पीट पीट कर हत्या कर दी गई, इसकी वजह थी एक लड़की से दोस्ती। यहाँ न तो यह बताया गया कि लड़का हिन्दू था और न ही ये बताया गया कि लड़की और उसके हत्यारे भाई का मज़हब क्या था।

हाल ही में देश की राजधानी में ऑनर किलिंग का मामला सामने आया। मोहम्मद अफरोज और मोहम्मद राज ने अपने साथियों के साथ मिलकर 18 साल के राहुल की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। आरोपित अफरोज को अपनी 16 साल की नाबालिग बहन के एक हिन्दू युवक राहुल के साथ प्रेम प्रसंग से आपत्ति थी। इस पर तमाम समाचार समूहों ने ख़बर प्रकाशित की इंडियन एक्सप्रेस, हिन्दुस्तान टाइम्स और इंडिया टुडे लेकिन इन समाचार समूहों ने ख़बर के मूल तथ्यों को सामने नहीं रखा। न तो आरोपितों की पहचान को आगे रखा, न ही हत्या की असल वजह को और न मृतक की पहचान को। 

यह सिलसिला नया नहीं है, बीते कुछ समय में इन दिग्गज समाचार समूहों की मज़हबी पत्रकारिता का रवैया कुछ ऐसा ही रहा है। तथ्य खुद में कितना हास्यास्पद है कि जब एक अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति की हत्या होती है, तब सारे मीडिया संस्थान हर ज़रूरी/गैर ज़रूरी तथ्य को आगे रखते हैं (भले उससे कितना ही सौहार्द क्यों न बिगड़े)। 

दिल्ली की इसी घटना पर इंडिया टुडे ने ख़बर प्रकाशित की, ख़बर के शीर्षक में ही बताया गया कि वह दिल्ली विश्वविद्यालय का छात्र था। उसकी पीट पीट कर हत्या कर दी गई, इसकी वजह थी एक लड़की से दोस्ती। यहाँ न तो यह बताया गया कि लड़का हिन्दू था और न ही ये बताया गया कि लड़की और उसके हत्यारे भाई का मज़हब क्या था। वहीं दूसरी तरफ 2019 के जून महीने में झारखंड स्थित खारसवान जिले में भीड़ ने एक युवक को बुरी तरह पीटा तब इंडिया टुडे की ख़बर के शीर्षक में उसका मज़हब भी था और पिटाई की तथा कथित वजह भी। 

पत्रकारिता का ऐसा ही मज़हबी नज़रिया पेश किया इंडियन एक्सप्रेस ने। दिल्ली में 18 साल के छात्र (हिन्दू छात्र) की हत्या के मामले में इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर प्रकाशित की। इनके शीर्षक में उस लड़के को छात्र तक नहीं बताया गया था और वजह के लिए शीर्षक में लिखा गया ‘killed over woman’ यानी महिला की वजह से हत्या। महिला कौन थी? हत्या करने वाले कौन थे? हत्या का असल कारण क्या था? कुछ नहीं! जब साल 2018 के अप्रैल महीने में झारखंड के गुमला जिले स्थित सोसो गाँव में एक युवक की तीन युवकों ने हत्या कर दी थी तब इंडियन एक्सप्रेस ने शीर्षक में ही मज़हब बता दिया। इसके अलावा कारण भी बताया कि एक नाबालिग लड़की से रिश्ते के चलते अन्य मज़हब के युवक की हत्या। 

दिल्ली में 18 साल के छात्र (हिन्दू छात्र) की हत्या पर कुछ इस शैली में ही तथ्य पेश किए हिन्दुस्तान टाइम्स ने। हिन्दुस्तान टाइम्स ने ख़बर के शीर्षक में बताया कि उसकी हत्या लड़की के परिजनों ने की जिससे उसका सम्बंध था। लेकिन यहाँ भी दो मूल तथ्य नहीं बताए गए कि हत्या करने वाले कौन थे और उनका मज़हब क्या था? ठीक इसी तरह की एक घटना साल 2018 के मई महीने में राजस्थान के बीकानेर ज़िले में हुई थी, तब हिन्दुस्तान टाइम्स ने पूरी जानकारी शीर्षक में ही दे दी। शीर्षक में मरने वाले युवक का मज़हब बताया गया, मारने वालों का धर्म बताया गया और यहाँ तक कि वजह भी बता दी गई।    

कुछ इस मिजाज़ की ही एक घटना साल 2018 की शुरुआत में हुई थी जिसमें अंकित सक्सेना नाम के 23 वर्षीय युवक और पेशे से फोटोग्राफर की बीच सड़क पर हत्या कर दी गई थी। वजह, क्योंकि उसकी दूसरे मज़हब की लड़की से बात होती थी। हत्या करने वाले कौन थे? जिस लड़की से बात होती उसके परिवार वाले लेकिन इंडिया टुडे की ख़बरों के शीर्षक से इस तरह की हर ज़रूरी बात नदारद थी। बल्कि इंडिया टुडे ने इस ख़बर को ‘घटना से जुड़ी 10 बातें’ या ‘10 बिंदुओं की मदद से घटना को जानें’ बना दिया था। अन्य मीडिया संस्थानों, चाहे वह हिन्दुस्तान टाइम्स (जिन्होंने ख़बर के शीर्षक में बस सक्सेना लिख कर काम चला लिया) हो या इंडियन एक्सप्रेस, एक ने अंकित सक्सेना को फोटोग्राफर बता कर ज़िम्मेदारी पूरी कर दी। किसी ने भी शीर्षक में घटना से जुड़ी बुनियादी जानकारी नहीं रखी। 

आपको चंदन गुप्ता नाम का युवक भी याद ही होगा, जिसकी 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के दिन ‘तिरंगा यात्रा’ निकालने के दौरान हत्या कर दी गई थी। इस मामले में भी तमाम समाचार समूहों ने ख़बरें प्रकाशित की लेकिन किसी ने भी तथ्यों को स्पष्ट रूप से रखने का प्रयास नहीं किया। उन्होंने अन्य ख़बरों की तरह शीर्षक में नहीं बताया कि हत्यारों का मज़हब क्या था? जो आरोपित गिरफ्तार किए गए उनका नाम क्या था? वह कौन थे? 

चाहे इंडियन एक्सप्रेस हो, इंडिया टुडे हो या हिन्दुस्तान टाइम्स हो। सभी ने बस 5 W 1 H की ज़िम्मेदारी पूरी कर दी। ख़बरें परोसने की यह पूरी प्रक्रिया कितनी अफ़सोसजनक है, सिर्फ अफ़सोस जनक ही नहीं भयावह भी। हमें दंगे होने पर उन्हें भीड़ का धर्म नज़र आता है लेकिन भीड़ का मज़हब नज़र नहीं आता है। धर्म निरपेक्षता की कीमत कितनी महँगी होती है। धीरे – धीरे लोग इसकी भेंट चढ़ जाते हैं, कितना विचित्र है? हत्या करने वाले व्यक्ति का धर्म हो सकता है लेकिन हत्या करने वाले का मज़हब नहीं होता है। 

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