अर्णब गोस्वामी को महाराष्ट्र सरकार ने जम कर प्रताड़ित किया। भारत के सबसे बड़े मीडिया नेटवर्क्स में एक के संस्थापक को 2 साल पुराना केस खोल कर लगभग 10 दिन अपने शिकंजे में रखने के बाद तभी रिहा किया गया, जब तक सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी नहीं की। इसके बाद वामपंथियों का नया नाटक शुरू हो गया और ‘The Wire’ ने जेल में बंद सारे भीमा-कोरेगाँव और दिल्ली दंगों के चार्जशीटेड लोगों को लेकर रोना शुरू कर दिया। इसी क्रम में ‘The Wire’ ने तो पूरी सूची ही तैयार कर दी।
‘The Wire’ ने अपनी सूची में जामिया के मीरान हैदर और जेएनयू के उमर खालिद से लेकर ‘पिंजरा तोड़’ की नताशा-देवांगना और भीमा-कोरेगाँव के अर्बन नक्सलियों तक को हीरो बना कर पेश किया। यहाँ सोचने वाली बता है कि क्या एक पत्रकार की तुलना अपराधियों से हो सकती है? जिनके गुनाह पब्लिक डोमेन में हैं, जिनके बारे में पुलिस से लेकर जाँच एजेंसियों तक के पास कई सबूत हैं, उनकी तुलना एक ऐसे पत्रकार से हो सकती है, जिसे सिर्फ बोलने की वजह से प्रताड़ित किया गया?
‘The Wire’ ने जब सूची तैयार ही की है तो उसने इसमें ताहिर हुसैन का नाम भी डाला है, जो चौंकाने वाला है? शायद नहीं! यही तो इनका प्रोपेगेंडा है। दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों का मुख्य आरोपित ताहिर हुसैन के खिलाफ इतनी गवाहियाँ और सबूत हैं कि वो शायद ही जेल से बाहर निकले! और फिर उसने तो जाँच में यह कबूल भी कर लिया कि वो हिंदुओं को सबक सिखाना चाहता था, इसलिए प्लानिंग के तहत दंगों से पहले सारे CCTV कैमरे तुड़वा दिए थे। ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि अर्णब गोस्वामी पर शिकंजा कसने के लिए दो साल पुराने मामले को बिना कोर्ट की अनुमति से खोला गया, जबकि इस सूची में जो भी हैं, उन्हें पूरी प्रक्रिया के तहत गिरफ्तार किया गया।
आइए, उमर खालिद का ही उदाहरण लेते हैं। दिल्ली में फरवरी 2020 के अंतिम हफ़्तों में हिन्दू-विरोधी दंगे हुए। जिस तरह से उमर खालिद ने घूम-घूम कर भड़काऊ बयान दिए थे, सभी को पता था कि इन दंगों को भड़काने में उसका हाथ हो सकता है। लेकिन, दिल्ली पुलिस ने जाँच और पूछताछ में समय लिया। सबूत जुटाए गए। ताहिर हुसैन ने पूछताछ में उसका नाम लिया। घटना के लगभग 7 महीने बाद उसे गिरफ्तार किया गया।
आखिर जामिया से लेकर दिल्ली दंगों तक, ऐसा कौन सा मामला है, जहाँ सरकार को सुप्रीम कोर्ट तक नहीं घसीटा गया? हर मामले में उन्हें बचाने के लिए पहले से सुप्रीम कोर्ट में वकील खड़े थे। खोज-खोज कर जाँच एजेंसियों और पुलिस की कार्यप्रणाली में खामियाँ खोजने का दावा किया गया। उन्हें निराशा हाथ लगी। तो हर वैधानिक प्रक्रिया में गलत साबित होने के बाद उनके पास सिर्फ यही रास्ता बचता है कि वो उन्हें लेखक, विद्वान और एक्टिविस्ट बताएँ?
कारोबारी तो ताहिर हुसैन भी था। उसके लिए भी कहा जा रहा है कि एक कारोबारी और नेता को जबरदस्ती जेल में बंद कर के रखा गया है? पेंटर और लेखक तो अडोल्फ हिटलर भी था। उसके बारे में ‘The Wire’ क्यों नहीं लिखता कि उसे आत्महत्या को मजबूर कर दिया गया? लादेन के बारे में भी तो कहें कि एक इंजीनियर को अमेरिका ने मार डाला? फिर भारत में ही नक्सलियों-अपराधियों को लेखक और एक्टिविस्ट बता कर ये प्रपंच क्यों रचा जाता है?
भीमा-कोरेगाँव और दिल्ली हिन्दू विरोधी दंगों के मामले में जितने भी आरोपित गिरफ्तार किए गए हैं, उन सभी के बारे में एक से बढ़ कर एक सबूत हैं और उनकी करतूतों का कच्चा चिट्ठा पुलिस तो दूर, सार्वजनिक डोमेन में भी है। दोनों ही मामलों में लाशें गिरते हुए किसने नहीं देखी? स्टेन स्वामी और वरवरा राव जैसों के प्रतिबंधित हिंसक नक्सली संगठनों से सम्बन्ध किससे छिपा हुआ है? इस्लामी कट्टरवादियों की करतूतों को कौन नहीं जानता?
आखिर भारत के टुकड़े-टुकड़े कर के पूर्वोत्तर के राज्यों को शेष देश से अलग करने की धमकी देने वाला शरजील इमाम क्यों जेल से बाहर होना चाहिए? जिन महात्मा गाँधी की लिबरल्स पूजा करने वाला दावा करते हैं, उन्हें फासिस्ट बताने वाले व्यक्ति के लिए आज वो क्यों सरकार का विरोध कर रहे हैं और वैधानिक प्रक्रिया को ठेंगा दिखा रहे हैं? शाहीन बाग़ के माध्यम से 3 महीने तक दिल्ली को बंधक बना कर रखने वाले नायक कैसे हुए?
‘The Wire’ ने वामपंथियों की उसी पुरानी तकनीक का इस्तेमाल किया है, जिसके माध्यम से वो किसी आतंकी-अपराधी के पुराने पेशे या फिर उम्र की बातें करते हुए लोगों को इमोशनल फूल बनाने की कोशिश करते हैं। वरवरा राव 80 साल का है। उस पर आरोप है कि उसने हिंसक नक्सलियों को एल्गार परिषद के कार्यक्रम में बुलाया। यूएपीए के आरोपित के लिए आखिर ‘The Wire’ क्यों इतना बेचैन हो रहा है?
Remember Delhi riot accused AAP councillor Tahir Hussain?
— Abhishek (@AbhishBanerj) November 15, 2020
Remember how whole neighborhood accused his goons of killing Ankit Sharma?
Wire has included Tahir Hussain in list of “activists, scholars and scribes” whose liberty remains at mercy of judiciary.
Let that sink in.
असल में जितने भी अर्बन नक्सली हैं, उनके आवरण वाला पेशा एक्टिविज्म और लेखन का ही है, क्योंकि इन दोनों कार्यों ने उन्हें न सिर्फ अपना एजेंडा फैलाने में मदद मिलती है, बल्कि ये वामपंथियों के एक बड़े वर्ग द्वारा समाज के नायक भी कहे जाते हैं। बाद में इन्हीं पेशा का हवाला देकर उन्हें मासूम बना कर पेश किया जाता है कि फलाँ तो कलाकार है, उसे झूठ का फँसा दिया। क्या अर्णब गोस्वामी की उनसे तुलना हो सकती है?
अर्णब गोस्वामी ने तो पालघर में साधुओं की भीड़ द्वारा हत्या और सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत के मामले में न्याय की माँग की थी? सरकार के रवैये और पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे। उनके साथ कई नेता और इस मामले से जुड़े लोग थे। उन्होंने कब भड़काऊ भाषण दिया? कब नक्सलियों के साथ साँठगाँठ किया? जब इस्लामी आतंकियों के साथ मिल कर दंगे की साजिश रची? कब घूम-घूम कर लोगों को हिंसा के लिए भड़काया?
Why should the Terrorist be brought out of jail @ReallySwara ?In fact you too should have been in jail for inciting Delhi Riots.
— Aabhas Maldahiyar 🇮🇳 (@Aabhas24) November 14, 2020
Explain how #CAA would can strip of citizenship of any Indian? How many Muslims have lost citizenship so far? If not #UmarKhalidMustStayinJail https://t.co/4wWXQf9kl6
ऐसे ही असम में सीएए विरोधी हिंसक प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाले अखिल गोगोई भी किसानों के हितैषी संगठन का नेता होने का दावा करता है और उसके लिए भी अभियान चलाया जा रहा है। क्या किसानों के हितैषी होने का दावा करने से आपको हिंसा करने की अनुमति मिल जाती है? अगर ऐसा है तो जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकी भी खुद को ‘स्वतंत्रता सेनानी’ कहते हैं। तो क्या उनकी भी पूजा होनी चाहिए?
सौ बात की एक बात ये है कि हिंसा करने वाला चाहे कलाकार होने का दावा करे या फिर स्वतंत्रता सेनानी, उसे जेल में होना ही चाहिए और इसीलिए दिल्ली दंगों और भीमा-कोरेगाँव के आरोपित आज जेल में हैं। जाति और मजहब के आधार पर लोगों को लड़ाने वाले और हिंसा के लिए उकसा कर बाद में सरकार को दोष देने वालों का यही होना भी चाहिए। चाहे उसकी उम्र 20 साल हो या फिर 80 साल, अपराधी तो अपराधी है।