त्रिपुरा पुलिस द्वारा एच डब्लू न्यूज़ नेटवर्क की पत्रकार समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा को सांप्रदायिक सौहार्द्र भंग करने के उद्देश्य से फेक न्यूज़ फैलाने के लिए 14 नवंबर के दिन असम से गिरफ्तार कर लिया गया था। आरोप था कि एच डब्लू न्यूज़ नेटवर्क के लिए काम करने वाली समृद्धि सकुनिया ने 11 नवंबर को एक वीडियो ट्वीट करके यह दावा किया था कि त्रिपुरा के दुर्गा बाजार में गत 19 अक्टूबर को कुरान की एक प्रति को जला दिया गया था। जब स्थानीय प्रशासन ने सकुनिया द्वारा बताए गए घटनास्थल पर पहुँच कर उनकी खबर की पुष्टि करने की कोशिश की तब उनके दावे की पुष्टि नहीं हो सकी। यही कारण था कि स्थानीय पुलिस प्रशासन ने समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा के खिलाफ एक केस दर्ज किया था।
ज्ञात हो कि बांग्लादेश में दुर्गापूजा के समय योजनाबद्ध तरीके से हिंदुओं के विरुद्ध की गई हिंसा, आगजनी, हत्या और बलात्कार के विरोध में गत माह त्रिपुरा में हिंदू संगठनों द्वारा विरोध में जुलूस निकाले गए और इस दौरान सांप्रदायिकता भड़क गई थी। इसी दौरान यह अफवाह भी उड़ाई गई कि किसी मस्जिद को जला दिया गया है। यह अफवाह झूठी थी और बाद में त्रिपुरा सरकार, स्थानीय प्रशासन और केंद्रीय गृह मंत्रलाय की ओर से मस्जिद के जलाए जाने की खबर का पूर्ण रूप से खंडन किया गया था।
पहले राज्य और उसके बाद केंद्र सरकार द्वारा मस्जिद जलाए जाने की अफवाह को पूर्ण रूप से झूठा बताए जाने के कई दिनों के बाद समृद्धि सकुनिया द्वारा त्रिपुरा के हिंसा की रिपोर्टिंग के नाम पर किए गए इस दावे की पुष्टि के लिए जब स्थानीय पुलिस प्रशासन ने मुस्लिम प्रेयर हाल के मालिक रहमत अली से पूछताछ की तब पता चला कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था। जब सकुनिया से उनके ट्वीट के पीछे के सबूत को लेकर पूछताछ की गई तो उसने बिना कोई सबूत दिए पुलिस से ही कह दिया कि वह जाकर सबूत ढूंढे। सकुनिया के दावे की पुष्टि न कर पाने के बाद पुलिस प्रशासन ने उनके ट्वीट के पीछे के उद्देश्य पर शंका व्यक्त करते हुए उनके खिलाफ केस दायर किया था।
प्रश्न यह है कि पत्रकारिता की यह कौन सी विधा है कि एक पत्रकार द्वारा कुरान जलाए जाने जैसे गंभीर और सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील खबर ट्वीट की जा रही है पर सबूत माँगने पर पत्रकार न केवल सबूत देने में असमर्थ है बल्कि यह भी कह दे रही है कि सबूत पुलिस खुद ढूँढ ले? रपट दाखिल करने के बाद स्थानीय प्रशासन ने समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा को त्रिपुरा न छोड़ने की हिदायत दी थी पर दोनों ‘पत्रकार’ स्थानीय प्रशासन को सूचना दिए बिना त्रिपुरा छोड़कर निकल गई। यही कारण है कि त्रिपुरा पुलिस को असम पुलिस की मदद लेनी पड़ी और दोनों को असम में गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के बाद इन दोनों ‘पत्रकारों’ को अदालत से जमानत मिल गई है पर गिरफ्तारी और जमानत के बीच मीडिया में शोर बहुत मचाया गया।
मीडिया का यह शोर बहुत तेज था और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आगे रखकर मचाया गया। शोर मचाते समय इस बात का ध्यान रखा गया कि पुलिस और स्थानीय प्रशासन द्वारा उठाए गए मूल प्रश्न को अनदेखा किया जाए। दूसरी तरफ पुलिस द्वारा उठाया गए मूल प्रश्न के पीछे की वजह इन पत्रकारों द्वारा न केवल त्रिपुरा में किए गए काम हो सकते हैं बल्कि एक पत्रकार के रूप में उनके इतिहास और रिकॉर्ड का भी प्रमुख योगदान होगा। इसके अलावा दोनों ‘पत्रकारों’ ने त्रिपुरा में होटल में अपनी पहचान छात्रों के रूप में बताई थी। ये ‘पत्रकार’ धर्मनगर, गोमती और अन्य मुस्लिम बहुत इलाके में गए और उनमें उन्होंने हिंदुओं के खिलाफ उत्तेजक बातें की जिसके उद्देश्य को लेकर स्थानीय प्रशासन के मन में शंका होना स्वाभाविक बात थी। पर आश्चर्य इस बात का है कि इन तथ्यों को दरकिनार कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का शोर मचाते हुए इन्हें मीडिया द्वारा समर्थन दिया गया।
देखा जाए तो लेफ्ट लिबरल गिरोह का यह आचरण नया नहीं है। पिछले दो दशकों में उनका यह आचरण हम 2002 के गुजरात दंगों के समय से देख रहे हैं। गुजरात दंगों के समय तीस्ता सीतलवाड़ से लेकर उस समय के प्रसिद्ध पत्रकारों की क्या भूमिका रही है वह जगजाहिर है। एनडीटीवी पत्रकारों की अपनी भूमिका पर तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वक्तव्य रिकॉर्ड पर है। तीस्ता सीतलवाड़ ने किस तरह नक़ली एफिडेविट और मुकदमों का मायाजाल रचा वह किसी से छिपा नहीं है। अरुंधति रॉय को सार्वजनिक तौर पर यह दावा करते हुए देखा गया है कि गोधरा में जलाए गए हिंदू बाबरी मस्जिद गिरा कर वापस आ रहे थे।
यह सब लगातार होते रहने के बावजूद लिबरल समाज हर बार मूल प्रश्नों और तथ्यों से बड़े आराम से मुँह मोड़ लेता है। तथ्य क्या हैं उससे अलग करने का फायदा यह होता है कि ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का शोर मचाकर अपने गिरोह के हर पाप को सही ठहरा लेते हैं। तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति के विरुद्ध उनके एनजीओ को मिले फंड में हेरा-फेरी के मुक़दमे और उसके पीछे के कारणों पर विमर्श नहीं मिलेगा। गुजरात दंगों को लेकर गवाहों को पढ़ाने और झूठे एफिडेविट फाइल करने पर बहस नहीं होने दी जाएगी पर आए दिन इस बात पर शोर मचाया जाता रहेगा कि राज्य सरकार उनके पीछे पड़ी है। शाहीन बाग़ में CAA विरोध के समय भी सीतलवाड़ को वहाँ उपस्थित लोगों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किए गए इंटरलॉक्यूटर के सामने क्या कहना है वो सिखाते हुए पाया गया पर उनसे उनके उद्देश्य के बारे में सवाल करना असंभव सा है।
Teesta Setalvad tutoring Shaheen Bagh protestors on what questions to ask the interlocutors, appointed by the Supreme Court… See how organic and spontaneous this movement is? pic.twitter.com/gsZCBS5l0t
— Amit Malviya (@amitmalviya) February 19, 2020
लिबरल गिरोह और उसके इकोसिस्टम के लोगों के लिए अब अपने एजेंडा को छिपाने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती। अब ये इकोसिस्टम पूरी बेशर्मी के साथ अपना एजेंडा चलाता है। उसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उनके आचरण को लेकर कहाँ क्या कहा जा रहा है। समर्थक मीडिया और पत्रकार इनके लिए ढाल का काम करने से पीछे नहीं हटते। उन्होंने एजेंडा के लिए लगभग हर आपत्तिजनक बात को अपना हथियार बना लिया है। यही कारण है कि आज एच डब्लू न्यूज़ नेटवर्क की समृद्धि सकुनिया या स्वर्णा झा को अपने गंभीर दावों को भी साबित करने की आवश्यकता नहीं पड़ती और लेफ्ट-लिबरल इकोसिस्टम उनके इस आचरण के बचाव में पर्याप्त शोर मचा लेता है ताकि तथ्य को गायब किया जा सके।