नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) के ख़िलाफ़ हुए हिंसक विरोध-प्रदर्शनों के दौरान हिन्दू-विरोधी कट्टरता साफ़ तौर पर दिखी। बावजूद इसके लिबरल गैंग इनकी पर्दादारी कर अपने राजनीतिक एजेंडे को बढ़ाने में लगा है। लिबरल गैंग की एक सदस्य हैं सागरिका घोष। मुख्यधारा की मीडिया की कुख्याता प्रोपेंगेंडाबाज सागरिका ने एक बार फिर इस्लामपरस्त और सीएए विरोधी अपने एजेंडे का प्रदर्शन किया है।
हाल ही में सागरिका घोष ने एक ट्वीट कर जिहादियों का जमकर महिमामंडन किया। जिन जिहादियों का उन्होंने महिमामंडन किया है उन्होंने हिंदुओं के खिलाफ ऐसे-ऐसे अत्याचार किए हैं जिन्हें शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है। सागरिका के अनुसार, सिराजुद्दौला, टीपू सुल्तान और बहादुर शाह ज़फ़र जैसे लोग “महान देशभक्त शासक” थे।
Thought for new year: India’s great patriotic kings who fought the British until their dying breath: 1) Siraj-ud-daulah Battle of Plassey 2) Tipu Sultan at Seringapatam. 3) Sepoys of 1857 raised up Bahadur Shah Zafar as the last enduring symbol of India’s struggle for freedom. ?
— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) December 29, 2019
लिबरल्स के तर्क केवल और केवल उनके पाखंड की निशानी से अधिक और कुछ नहीं होते। एक तरफ़ तो यह तर्क दिया जाता है कि भारत 1947 से पहले अस्तित्व में नहीं था, जबकि दूसरी तरफ़, इस्लामिक आक्रांताओं का “महान देशभक्त शासक” के रूप में महिमामंडन किया जाता है। स्पष्ट तौर पर, लिबरल गैंग को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे जो कह रहे हैं वह सच है या झूठ। उन्हें केवल अपने एजेंडे को आगे बढ़ाना होना है। वे केवल इसी की परवाह करते हैं। इसके लिए उन्हें इस्लामी निरंकुश शासकों का महिमामंडन करने की ज़रूरत पड़ती रहती है।
टीपू सुल्तान एक उन्मादी नरसंहारक था। उसने न सिर्फ़ हिन्दुओं पर अत्याचार किया बल्कि उनका नरसंहार करने पर वह गर्व भी करता था। इससे उसका जिहादी चरित्र जाहिर होता है। दूसरी तरफ़,
सिराजुद्दौला ने देशभक्ति की भावनाओं की कोई परवाह नहीं की। अपनी शक्ति बनाए रखने के लिए वह ऐसे लोगों को कुचलता रहा। उसके दौर में बंगाल में इस्लामी शासन द्वारा हिन्दुओं के ख़िलाफ़ क्रूरता की गई। यही वजह थी कि उस समय अधिकांश हिन्दुओं ने इस क्षेत्र में ब्रिटिश शासन का स्वागत किया था।
सिराजुद्दौला बंगाल का अंतिम स्वतंत्र नवाब था।
बहादुर शाह ज़फ़र की कहानी बेहद जटिल है। 1857 के युद्ध को ‘स्वतंत्रता के पहले युद्ध’ के रूप में स्थापित किया गया। निश्चित रूप से यह ‘हिन्दू-मुस्लिम एकता की कहानी’ नहीं है, जैसा कि अब तक बताया जाता रहा है। यह एक रणनीतिक उद्देश्य पूर्ति के लिए था, जिसके तहत अस्थायी रूप से एक-दूसरे के साथ सहयोग करने वाले समूह थे।
सागरिका घोष का इतिहास ज्ञान लिबरल संस्करण की विशिष्टता है। इसके अनुसार हिन्दू-मुस्लिम संबंधों की खाई के लिए अंग्रेज जिम्मेदार थे। जबकि सच्चाई यह है कि पिछले हज़ार वर्षों में ऐसा कोई समय नहीं रहा जब हिन्दू-मुस्लिम संबंध अच्छे रहे हों। फिर भी हिन्दुओं और दूसरे माहजब के बीच विभाजन के लिए अंग्रेजों को दोषी ठहराने का प्रयास किया जाता है ताकि नेहरू के सेक्युलर-लिबरल दृष्टि को उचित ठहराया जा सके।
सागरिका घोष ने अपने ट्वीट में इस तथ्य को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया है कि नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) के विरोध का वर्तमान उन्माद पूरी तरह से इस्लामी चरमपंथियों द्वारा संचालित है। इन विरोध-प्रदर्शनों में “हिन्दुओं से आज़ादी” और “काफ़िरों से आज़ादी” जैसे नारे सुनाई पड़े। साफ़ तौर से प्रदर्शनकारी उसी विचारधारा का पालन करते हैं जिसका टीपू सुल्तान ने किया था।
फेक न्यूज़ की रानी: पुराने माल के सहारे सेना और कश्मीर को बदनाम कर रही सागरिका घोष
सागरिका हम समझते हैं, कुंठा छिपाने और अपनी किताब बेचने का यह तरीका पुराना है