Friday, June 20, 2025
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बंगाल में HC ने लगाया OBC कोटे में मुस्लिम आरक्षण पर बैन, राजस्थान सरकार भी करेगी समीक्षा : क्या मजहबी आधार पर रिजर्वेशन के दिन गए?

कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस रिजर्वेशन को खत्म कर दिया है, साथ ही 2011 से अब तक जारी 5 लाख से अधिक ओबीसी प्रमाण पत्रों को भी रद्द कर दिया है। अब राजस्थान सरकार भी समीक्षा करेगी।

पश्चिम बंगाल में ओबीसी कोटे में ममता बनर्जी की सरकार मुस्लिमों के 77 समूहों को आरक्षण का लाभ दे रही थी। साल 2011 में सरकार बनने के 6 माह के भीतर ही ममता सरकार ने ये आरक्षण देना शुरू कर दिया था। कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस रिजर्वेशन को खत्म कर दिया है, साथ ही 2011 से अब तक जारी 5 लाख से अधिक ओबीसी प्रमाण पत्रों को भी रद्द कर दिया है। वहीं, राजस्थान में 14 मुस्लिम जातियों को ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण मिलता है, जो इन्हें 1997 से 2013 के बीच दिया गया था, लेकिन पश्चिम बंगाल हाई कोर्ट के फैसले से सबक लेकर राजस्थान सरकार अब ओबीसी कोटे में मुस्लिम आरक्षण की समीक्षा करेगी।

राजस्थान सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री अविनाथ गहलोत ने कहा है कि तुष्टिकरण की राजनीति के चलते कॉन्ग्रेस की सरकारों ने राजस्थान में मुस्लिमों को भी आरक्षण दिया था। कॉन्ग्रेस की सरकारों ने धार्मिक आधार पर आरक्षण 1997 से 2013 के बीच दिए, जिसमें से 14 मुस्लिम जातियों को ओबीसी कोटे में आरक्षण दे दिया गया। अब लोकसभा चुनाव 2024 के खत्म होने के बाद राजस्थान सरकार राज्य में ओबीसी आरक्षण के तहत आने वाली सभी जातियों की समीक्षा करेगी। अविनाथ गहलोत ने कहा कि हम धार्मिक आधार पर आरक्षण के खिलाफ हैं, क्योंकि ये संवैधानिक रूप से गलत है।

खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ये बात कह चुके हैं कि वो धार्मिक आधार पर आरक्षण को लागू नहीं होने देंगे। राजस्थान सरकार के इस ऐलान के बाद ये बहस तेज हो गई है कि क्या धार्मिक आधार पर आरक्षण के दिन अब खत्म हुए?

बात सिर्फ पश्चिम बंगाल और राजस्थान की नहीं है, बल्कि देश के उन तमाम राज्यों की है, जहाँ ओबीसी आरक्षण में मुस्लिम समूहों को घुसाकर जरूरत मंद समूहों का हक मारा गया। कॉन्ग्रेस के राज में कर्नाटक में भी यही हो रहा है। पीएम मोदी भी कह चुके हैं कि कॉन्ग्रेस अपने कर्नाटक फॉर्मूले को पूरे देश में लागू करना चाहती है, लेकिन वो ऐसा होने नहीं देंगे। कर्नाटक के साथ ही केरल में भी ओबीसी समूहों में मुस्लिमों की भारी भागीदारी है और वो आरक्षण का लाभ ले रहे हैं।

बता दें कि संवैधानिक रूप से अधिकतर राज्यों में 27 प्रतिशत आरक्षण ओबीसी जातियों को मिलता रहा है। इंदिरा साहनी कमीशन के आधार पर ये इसे निश्चित किया गया है। कई राज्यों में आरक्षण की इस सीमा को तोड़ने का प्रयास किया गया, तो सुप्रीम कोर्ट ने उन राज्यों की सरकारों को झटका देते हुए उनकी मनमानी पर रोक लगा दी थी। मध्य प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक ये हो चुका है, लेकिन तमिलनाडु जैसे राज्य, जिसकी कुल आबादी में बड़ा हिस्सा ओबीसी वर्ग का है, उसने इस लिमिट को पार किया है।

हालाँकि उन राज्यों में कोई विरोध न होने और सुप्रीम कोर्ट तक कोई याचिका न पहुँचने की वजह से ये अभी भी जारी है। लेकिन जिन राज्यों में सरकारों का विरोध हुआ और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा, वहाँ ओबीसी आरक्षण की सीमा साल 1992 के इंदिरा साहनी कमीशन के आधार पर 27 प्रतिशत ही कर दिया गया। कुछ राज्यों में अपवाद जरूर है, खासकर पंजाब जैसे राज्य में, क्योंकि पंजाब में एसटी आरक्षण नहीं है। पंजाब में एसटी कैटिगिरी के लोग भी नहीं हैं। ऐसे में यहाँ एससी आरक्षण का ज्यादा है। हालाँकि धार्मिक आधार पर सीधे आरक्षण का मामला कहीं नहीं है, ऐसे में मुस्लिम तुष्टिकरण की आड़ में कई राज्यों में मुस्लिमों को आरक्षण का लाभ ओबीसी कोटे के तहत दिया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा का विरोध इसी आधार पर है।

चूँकि देश की आजादी के समय ही ये साफ हो गया था कि धार्मिक आधार पर देश में आरक्षण नहीं होगा। इसके लिए संवैधानिक व्यवस्था भी की गई थी, लेकिन वोट बैंक की चाहत में राजनीतिक पार्टियों ने संवैधानिक मर्यादाओं को परे रखते हुए मुस्लिमों को आरक्षण देना शुरू कर दिया, वो भी ओबीसी कोटे के तहत। ऐसे में पश्चिम बंगाल की सरकार को कलकत्ता हाई कोर्ट से जो झटका लगा है, वो ऐतिहासिक हो सकता है। कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को आधार बनाकर कई अन्य राज्य भी खासकर बीजेपी शाषित राज्य ओबीसी कोटे में शामिल जातियों की समीक्षा कर सकते हैं।

राजस्थान में ऐसा ही काम होने वाला है, जो भूल सुधार का जरिया बन सकता है। देर-सबेर अन्य राज्य भी ये कदम उठाएँगे। हालाँकि कॉन्ग्रेस या इंडी गठबंधन द्वारा शासित राज्य ऐसा कदम उठाए, इस पर तो संदेह है ही, लेकिन कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले के आधार पर यदि अदालतों में ओबीसी आरक्षण को चुनौती देना शुरू कर दिया जाए, तो वो दिन दूर नहीं, जब पूरा देश तुष्टिकरण की राजनीति को पीछे छोड़ते हुए धार्मिक आधार पर आरक्षण के दायरे से बाहर निकल आए। ये भूल सुधार की तरह भी होगा, साथ ही असली जरूरत मंदों को उनकी हिस्सेदारी देने की तरह भी।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
I am Shravan Kumar Shukla, known as ePatrakaar, a multimedia journalist deeply passionate about digital media. Since 2010, I’ve been actively engaged in journalism, working across diverse platforms including agencies, news channels, and print publications. My understanding of social media strengthens my ability to thrive in the digital space. Above all, ground reporting is closest to my heart and remains my preferred way of working. explore ground reporting digital journalism trends more personal tone.

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