कल लिबरल सेक्युलर इकोसिस्टम ने श्रीराम मंदिर निर्माण को रोकने के उद्देश्य से एक और लड़ाई छेड़ दी। इस इकोसिस्टम की विशेषता ही यह है कि ये कभी निर्माण करने की लड़ाई नहीं छेड़ता, हमेशा निर्माण रोकने के लिए लड़ाई छेड़ता है। कभी कोडनकुलम न्यूक्लीयर पावर प्लांट के निर्माण को रोकने की लड़ाई लड़ता है तो कभी सेंट्रल विस्टा के निर्माण को रोकने की। कभी हाईवे परियोजना का निर्माण रोकने के लिए आंदोलन करता है तो कभी किसी स्टील प्लांट का निर्माण रोकने के लिए। इकोसिस्टम है भी बहुत बड़ा, विकट विस्तार लिए। अलग-अलग मुंड, हाथ, पैर, नेत्र वगैरह को खुद में समेटे। इसका फायदा यह है कि कौन कब लड़ाई छेड़ दे, यह कह पाना मुश्किल होता है।
निर्माण शब्द से तो इसे इतनी चिढ़ है कि निर्माणों को रोकने के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। किस हद तक जा सकते हैं उसका अंदाज़ा इस बात से लगाएं कि एक न्यूज़ चैनल, माने एनडीटीवी ने सागरमाला प्रोजेक्ट के निर्माण को रोकने के लिए नॅशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में लड़ाई छेड़ दी थी। एक राजनीतिक दल, यानी कान्ग्रेस ने ओडिशा में स्टील प्लांट के निर्माण रोकने के लिए लड़ाई छेड़ दी थी। कहने का अर्थ यह है कि आवश्यकता पड़ने पर राजनीतिक दल का काम टीवी चैनल कर देता है और टीवी चैनल का काम राजनीतिक दल। बीच में जोर लगाना रहता है तो एनजीओ हई सा बोलने के लिए घुस लेता है।
कभी-कभी तो इसके लिए निर्माण रोकना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना निर्माण को तोड़ना। स्मरण रहे, इसी इकोसिस्टम का प्रयास था कि रामसेतु तोड़ दिया जाय ताकि इतने पुराने और धार्मिक महत्त्व के सांस्कृतिक धरोहर वाले निर्माण के साथ-साथ हिन्दुओं का मनोबल भी तोड़ा जा सके।
तो इकोसिस्टम ने निर्माण रोकने के इसी क्रम में कल ट्रस्ट पर कुछ जमीन की खरीद को लेकर आरोप लगाते हुए कहा कि पंद्रह मिनट में जमीन की कीमत दो करोड़ से अट्ठारह करोड़ हो गई। इस इकोसिस्टम को पता है कि यह आरोप टिकने वाला नहीं है पर उसका उद्देश्य अनायास एक लड़ाई खड़ी कर देना है। उद्देश्य यही है कि आरोप लगाकर हिन्दुओं के मन में ट्रस्ट के विरुद्ध एक संदेह पैदा कर दिया जाए। जिन आस्थावान हिन्दुओं ने मंदिर निर्माण के लिए अपनी तरफ से अंशदान किया है उनके मन में संदेह पैदा कर दिया जाय।
फर्क इससे नहीं पड़ता कि किसने यह आरोप लगाए हैं। आम आदमी पार्टी ने शुरुआत की है पर उसे आगे ले जाने के लिए सपा, कान्ग्रेस, मीडिया, पत्रकार, एजेंडाकार, परजीवी, आंदोलनजीवी लगभग सब आ गए हैं। यह शोर जो शुरू हुआ है, यह तब तक चलेगा जब तक टूलकिट के अगले पेज पर लिखा हुआ कोई और मुद्दा नहीं मिल जाता।
ये लोग आज श्री राम का नाम लेकर तथाकथित स्कैम के लिए दुखी हैं। ये वही लोग हैं जिन्होंने देश के उच्चतम न्यायालय में यह एफिडेविट दिया था कि श्रीराम काल्पनिक चरित्र थे। ये वही लोग हैं जो यह पूछते थे कि रामसेतु यदि श्रीराम ने बनवाया था तो उनके इंजीनियर का नाम कहाँ लिखा है? ये वही लोग हैं जो अंत तक यह कहते रहे कि मंदिर न बनाकर अयोध्या में अस्पताल बनना चाहिए। यह कहते हुए साथ ही यह भी जोड़ देते थे कि श्रीराम भी यही चाहते होंगे, वही श्रीराम जिन्हें ये काल्पनिक मानते रहे हैं, वही श्रीराम जिन्हें इसी इकोसिस्टम के लोग अपने विश्वविद्यालयों, अपने टीवी स्टूडियो और अपनी पत्रिकाओं में न केवल काल्पनिक बताते रहे हैं बल्कि उन्हें लेकर हिन्दुओं का अपमान करना नहीं भूलते।
ये वही लोग हैं जो श्रीराम और उनकी माता तक पर भद्दी टिप्पणी करने से बाज नहीं आते। ये वही लोग हैं जो मंदिर निर्माण के लिए इकठ्ठा किए जा रहे अंशदान को लेकर भ्रम और अफवाह फैलाते हैं, खुद कुछ न दें पर मंदिर के प्रति देश के हिन्दुओं की भावना को आहत करने का एक भी मौका जाने नहीं देते। समाजवादी पार्टी के लोग भी इस बात से दुखी हैं कि मंदिर के लिए खरीदी गई जमीन में तथाकथित घोटाला हुआ है, उसी समाजवादी पार्टी के लोग जिनके नेता ने हिन्दुओं पर गोली चलवायी थी और अयोध्या को स्वतंत्र भारत का जलियांवाला बाग़ बना दिया था।
ये अपने वक्तव्यों से देश के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के प्रति आज भी देश की जनता के मन में संदेह पैदा करते हैं। ये आज सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाते हैं कि मंदिर निर्माण के हित में निर्णय देकर सर्वोच्च न्यायालय ने न्याय नहीं किया और यही हिन्दुओं के साथ हुई तथाकथित बेईमानी से भी दुखी हैं।
मंदिर निर्माण को रोकने की लड़ाई का स्वरुप “वहाँ पर अस्पताल बनना चाहिए” से चलकर “हिन्दुओं के साथ धोखा हो रहा है” तक पहुँच चुकी है। जमीन की खरीद से सम्बंधित दस्तावेज भले ही सार्वजनिक कर दिए गए हैं पर ये इकोसिस्टम उसे स्वीकार नहीं करेगा और इससे सम्बंधित बयान, झूठ और प्रोपेगंडा के मकड़जाल की बुनाई इतनी जल्द खत्म नहीं होगी। जो कुछ भी शुरू किया गया है वह हवन कुंड में हड्डी डालने जैसा है पर सदियों से लड़ी गई सैकड़ों लड़ाई के साथ एक लड़ाई और सही।