Sunday, November 17, 2024
Homeविचारराजनैतिक मुद्देलखीमपुर खीरी हिंसा में 'संजीवनी' तलाश रही कॉन्ग्रेस, यह राजनीतिक विरोध नहीं बल्कि अराजकता

लखीमपुर खीरी हिंसा में ‘संजीवनी’ तलाश रही कॉन्ग्रेस, यह राजनीतिक विरोध नहीं बल्कि अराजकता

राजस्थान में किसानों पर लाठीचार्ज, पायलट और गहलोत द्वारा एक दूसरे पर राजनीतिक लाठीचार्ज या पंजाब और छत्तीसगढ़ में पार्टी में अंदरूनी सत्ता संघर्ष का हल कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा लखीमपुर खीरी में खोजा जा रहा है।

लखीमपुर खीरी में जो कुछ भी हुआ उसे लेकर राजनीतिक चालें घटना के अगले क्षण से ही आरंभ हो गई थीं। शायद इसलिए क्योंकि ऐसी किसी घटना की प्रतीक्षा में बैठे राजनीतिक दल और ‘किसान’ एक क्षण भी जाया करना नहीं चाहते थे। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के पुत्र को ‘किसानों’ को कुचलने वाली कार का चालक बताने से लेकर, मंत्री के त्यागपत्र और भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा तथाकथित तौर पर गोली चलाने के आरोप तक, सबकुछ आनन-फानन में किया जाना इस बात को दर्शाता है कि विपक्ष और ‘किसान’ पहले से मान कर चल रहे हैं कि क्या कहा जाना है और जो कहा जाना है उससे जरा भी पीछे नहीं हटना है, बिना इस बात की परवाह किए कि फिलहाल उपलब्ध सबूत क्या कहते हैं। 

लगता है जैसे विपक्ष, ‘किसान’ और उनके समर्थन में उतरा इकोसिस्टम यह चाहते हैं कि उन्होंने जो परिणाम घोषित कर दिए हैं, सरकार उनके अनुसार सबूत दे। मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को सीधे-सीधे नकार देना और क्या दर्शाता है? बिना जाँच के यह घोषणा कर देना कि कार केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का पुत्र चला रहा था और फिर इस दावे को सही साबित करने के लिए बचकाना तर्क और वीडियो क्रॉप करके सबूत बनाना क्या बताता है?

अपने दावे के मुताबिक़ बिना किसी जाँच के लोगों की गिरफ्तारी की माँग चाहे जितनी तर्कहीन लगे पर लोग उसपर अड़े हुए हैं। कुछ मृतकों के परिवार वाले यदि कहते हैं कि इस घटना से राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास न किया जाए तो बड़े आराम से यह आरोप लगा दिया जा रहा है कि सरकार मृतकों के परिवार वालों पर दबाव डाल रही है। 

शरद पवार के अनुसार; यह घटना जलियांवाला बाग़ जितनी बड़ी घटना है। पाँच दशक से अधिक समय तक राजनीति में सक्रिय पवार जब यह कहते हैं तो वे जरा भी नहीं सोचते कि क्या कह रहे हैं? कि; वे जो कह रहे हैं उसका क्या असर हो सकता है? वे यह भी याद नहीं करते कि यदि यह घटना जलियाँवाला बाग़ जितनी बड़ी घटना है तो अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उन्होंने कितने जलियाँवाला बाग किए? उन्हें याद नहीं रहता कि उनके दल ने ‘सहकारिता’ को आगे रखकर किसानों का कितना भला किया है? पाँच दशकों से अधिक के अपने राजनीतिक जीवन में पवार की छवि एक किसान नेता की रही है पर यह कहते हुए वे भूल जाते हैं कि मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में महाराष्ट्र में किसानों के साथ क्या-क्या हुआ है। 

कॉन्ग्रेस के नेता जब कहते हैं कि; किसानों का नरसंहार हुआ है तो उन्हें यह याद नहीं रहता कि नरसंहार क्या होता है? हर एक व्यक्ति का जीवन कीमती है और किसी भी परिस्थिति में इस तरह से एक भी भारतीय की मृत्यु नहीं होनी चाहिए पर ऐसी घटना को नरसंहार बताते समय कॉन्ग्रेसी भूल जाते हैं कि राजनीतिक दल के नेताओं या विचारकों को ही नहीं बल्कि एक आम भारतीय को भी पता है कि नरसंहार क्या होता है। एक आम भारतीय जानता है कि 1984 में जो सिखों के साथ हुआ उसे नरसंहार कहते हैं, महात्मा गाँधी की हत्या के बाद जो महाराष्ट्र के ब्राह्मणों के साथ हुआ उसे नरसंहार कहते हैं, जो अयोध्या और गोधरा में कारसेवकों के साथ हुआ था उसे नरसंहार कहते हैं। 

राजनीतिक फायदे के लिए लखीमपुर खीरी की घटना को नरसंहार कहा जाना कहाँ तक उचित है? यदि जवाब माँगना है तो पूरी घटना को आगे रखकर सरकार से जवाब क्यों नहीं माँगा जा रहा? भाजपा के जो कार्यकर्ता मारे गए उनके प्रति किसी के मन में संवेदना क्यों नहीं है? ‘किसानों’ द्वारा उनकी हत्या किस तरह की है, वह सबके सामने है पर कोई एक नेता या राजनीतिक दल ऐसा नहीं है जो कहे कि उसे पूरी घटना से क्षोभ है। राजनीतिक दलों का क्षोभ केवल ‘किसानों’ की मृत्यु तक सीमित है। लगता है ‘किसानों’ के अलावा जो लोग मारे गए वे भारतीय थे ही नहीं और उनके प्रति संवेदना प्रकट करने के लिए किसी और देश के राजनीतिक दल या नेता आएँगे।  


राजस्थान में किसानों पर लाठीचार्ज, पायलट और गहलोत द्वारा एक दूसरे पर राजनीतिक लाठीचार्ज या पंजाब और छत्तीसगढ़ में पार्टी में अंदरूनी सत्ता संघर्ष का हल कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा लखीमपुर खीरी में खोजा जा रहा है। यह काम राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस ही कर सकती है। पंजाब कॉन्ग्रेस (पता नहीं इस समय किसकी है) ने घोषणा की है कि दस हज़ार गाड़ियों वाला काफिला लखीमपुर खीरी की ओर चलेगा। दस हज़ार गाड़ियों के काफिले का असर राष्ट्रीय राजमार्गों पर क्या होगा? इस तथाकथित पॉलिटिकल मास्टर स्ट्रोक के परिणाम स्वरूप आम भारतीय को होने वाले कष्ट के बारे कौन जवाबदेह होगा?

‘किसानों’ ने पिछले दस महीने से दिल्ली और उसके आस-पास के लोगों के लिए कौन सी परिस्थितियाँ पैदा कर दी हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। अब वैसी ही परिस्थितियाँ विपक्षी दल पैदा करना चाहते हैं या पहले से उत्पन्न हुई परिस्थितियों में अपना योगदान देना चाहते हैं। उद्देश्य बिलकुल साफ़ है; चुनाव से पहले केंद्र और राज्य सरकार की छवि खराब की जाए।

ऐसी घटनाओं से राजनीतिक लाभ उठाना एक बात है और इनके आड़ में रहकर अराजकता पैदा करने की कोशिश और बात है। कॉन्ग्रेस पार्टी और उसका इकोसिस्टम इस समय लखीमपुर खीरी की घटना के आड़ में अराजकता पैदा करना चाहते हैं। यह राजनीतिक विरोध का कौन सा रूप है जहाँ एक राजनीतिक दल सब कुछ अपने अनुसार चाहता है? लाभ कितना होगा वह तो समय बताएगा पर कॉन्ग्रेस पार्टी और उसके नेताओं का रवैया गैर जिम्मेदाराना है और यह लोकतांत्रिक मूल्यों और राजनीतिक परंपराओं को ध्वस्त करने की प्रक्रिया में एक और कदम है। 

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

घर की बजी घंटी, दरवाजा खुलते ही अस्सलाम वालेकुम के साथ घुस गई टोपी-बुर्के वाली पलटन, कोने-कोने में जमा लिया कब्जा: झारखंड चुनावों का...

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बीते कुछ वर्षों में चुनावी रणनीति के तहत घुसपैठियों का मुद्दा प्रमुखता से उठाया है।

मुस्लिम घुसपैठियों और ईसाई मिशनरियों के दोहरे कुचक्र में उलझा है झारखंड, सरना कोड से नहीं बचेगी जनजातीय समाज की ‘रोटी-बेटी-माटी’

झारखंड का चुनाव 'रोटी-बेटी-माटी' केंद्रित है। क्या इससे जनजातीय समाज को घुसपैठियों और ईसाई मिशनरियों के दोहरे कुचक्र से निकलने में मिलेगी मदद?

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -