Tuesday, March 19, 2024
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दुर्गा पूजा पंडालों पर हमला, मूर्तियों का भंजन, देवी-देवताओं का अपमान: 1200 साल से यही झेल रहे हिन्दू

जगह-जगह हिंदुओं पर हमला दुनियाँ पर अपना राज कायम करने वाली इसी सोच का नतीजा है। यही सोच महात्मा गाँधी को डायरेक्ट एक्शन डे के के परिणाम में होने वाले नोआखाली दंगों के समय यह कहने को प्रेरित करती है कि; यदि मुसलमान चाहते हैं कि वे हिंदुओं को मारें तो हिंदुओं को चाहिए कि वे खुद को उनके आगे समर्पित कर दें।

दुर्गा पूजा के अवसर पर बांग्लादेश के कई हिस्सों में हिंदुओं, उनके उत्सव, उनके देवी-देवताओं और उनकी आस्था के साथ जो हुआ वह पूरी दुनियाँ ने देखा। पंजाब में हिंदुओं के रामलीला में उनके उत्सव के साथ जो हुआ वह भी। बांग्लादेश में कुरान के किसी काल्पनिक अपमान को आगे रखकर जो किया गया वह पहली या आखिरी बार नहीं हुआ। पंजाब में किसानों के साथ तथाकथित अन्याय को आगे रखकर जो कुछ भी हुआ, वह भी पहली या आखिरी बार नहीं हुआ है। यह भारतीय उपमहाद्वीप का पिछले लगभग 1200 वर्षों का स्टैंडर्ड टेम्पलेट है जिसे बार-बार केवल इसलिए प्रयोग में लाया जा सकता है क्योंकि हिंदू तब भी सहिष्णु था और आज भी सहिष्णु है। यदि ऐसा न होता तो इस टेम्पलेट की उम्र इतनी लंबी नहीं हो पाती।


वैसे तो सहिष्णुता व्यवहार होता है पर जैसा कि हर व्यवहार के साथ होता है; उसे यदि बार-बार लगातार दोहराया जाए तो वह सिद्धांत बन जाता है। व्यवहार का त्याग सरल हो सकता है पर सिद्धांत का त्याग सरल नहीं होता। यही कारण है कि उसका पालन करने वाला उससे बँधा रह जाता है और उस सिद्धांत और उसे पालन करने वालों के विरोधी इसी बंधन का फायदा उठाते हैं। ये विरोधी सहिष्णुता के सिद्धांत का पालन करने वालों को ही रोज यह कहकर हीन भावना से ग्रस्त करते रहते हैं कि; तुम तो अपने सिद्धांत से दूर होते जा रहे हो। इसी बार-बार कहने का असर यह हुआ है कि हिंदू उस सहिष्णुता से लगातार चिपकता गया है और आज भी वह निज पर होने वाले हर आक्रमण का मुकाबला सहिष्णुता की तलवार भाँजते हुए करता है।

यदि ऐसा न होता तो भारत से लेकर अमेरिका तक और यूरोप से लेकर पाकिस्तान तक हिंदुओं को बार-बार यह याद नहीं दिलाया जाता कि वे असहिष्णु हो गए हैं। उनके मन में यह हीन भावना भरने की कोशिश पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी होती है जहाँ उन्हें बचने नहीं दिया गया और भारत में भी होती है जहाँ वे बहुसंख्यक हैं। इसके परिणामस्वरुप ही हिंदू आज भी यह कहते हुए गर्व करता है कि उसने पिछले पाँच हज़ार वर्षों में किसी पर आक्रमण नहीं किया और न ही तलवार उठाकर किसी का धर्म परिवर्तन करवाया। दूसरी तरफ उसके विरोधी यह कहते हुए गर्व करते हैं कि उन्होंने तलवार के सहारे दुनियाँ के बड़े हिस्से पर राज किया है। क्या हुआ जो उन हिस्सों पर अब राज नहीं रहा तो? कल फिर हो जाएगा।

जगह-जगह हिंदुओं पर हमला दुनियाँ पर अपना राज कायम करने वाली इसी सोच का नतीजा है। अपनी असहिष्णुता पर गर्व करने वाले व्यक्ति और संस्थाएँ हिंदुओं को सहिष्णु न होने का उलाहना इसलिए दे पाते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि अपने सिद्धांत के पालन के लिए हिंदू खुद से वचनबद्ध है। यही सोच महात्मा गाँधी को डायरेक्ट एक्शन डे के के परिणाम में होने वाले नोआखाली दंगों के समय यह कहने को प्रेरित करती है कि; यदि मुसलमान चाहते हैं कि वे हिंदुओं को मारें तो हिंदुओं को चाहिए कि वे खुद को उनके आगे समर्पित कर दें। यही सोच सौ वर्षों बाद एक ओवैसी को यह कहने के लिए प्रेरित करती है कि; हिंदू भले ही बहुसंख्यक हैं लेकिन पंद्रह मिनट के लिए पुलिस हटा दिया जाए तो मुसलमान उन्हें ख़त्म कर देंगे।

यही सोच पूँजीवादी जॉर्ज सोरोस से तथाकथित तौर पर हिंदू पुनर्जागरण को दबाने के लिए हजारों करोड़ डॉलर का अनुदान दिलवाती है और यही सोच इस्लामिक आतंकवाद के संचालकों और समर्थकों को हिंदुओं को रोज ललकारने के लिए प्रेरित करती है। यही सोच अमेरिकी शिक्षण संस्थानों से “डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व” जैसे कार्यक्रम करवाती है और वामपंथ संचालित वैश्विक मीडिया से एक ऐसा नैरेटिव चलवाती है जो हिंदुओं और उनकी धार्मिकता को न केवल अपमानित करता है बल्कि उनके अंदर हीन भावना भरने के लिए मिशन मोड में दुष्प्रचार भी करवाता है।

आज के हिंदू की त्रासदी यह है कि उसके विरुद्ध लड़ाई के इतने मैदान तैयार कर दिए गए हैं जो शारीरिक हिंसा से बहुत आगे और अधिक जटिल दिखाई देते हैं।

सहिष्णुता के प्रति यही वचनबद्धता बांग्लादेश के हिंदुओं से उनपर हुए भीषण आक्रमण के बाद भी वहाँ की प्रधानमंत्री से अपनी रक्षा की अपील करवाती है और पंजाब के हिंदुओं से स्थानीय प्रशासन पर विश्वास करवाती है। पुराना सिद्धांत है शायद इसलिए इस पर पुनर्विचार तभी हो सकेगा जब अस्तित्व पर प्रश्न उठ खड़ा होगा, पर अस्तित्व का प्रश्न खड़ा होने से पहले एक समय अवश्य आएगा जब हिंदुओं को खुद से प्रश्न करना होगा कि; आधुनिक वैश्विक व्यवस्था में सहिष्णुता गर्व का विषय है या इसे केवल सामान्य व्यवहार के तौर पर देखा जाना चाहिए, ऐसा व्यवहार जिसे आवश्यकता पड़ने पर बदला जा सके।



पिछले लगभग एक दशक में हिंदू और हिंदुत्व के विरुद्ध लगातार उभरते खतरों के प्रति जो जागरूकता फैली है उसका लगातार बढ़ रही चुनौतियों से लड़ने के लिए किस तरह इस्तेमाल किया जाए यह हिंदुत्व के लिए सबसे बड़ा प्रश्न है जिसका उत्तर जल्दी मिलना आवश्यक है।

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