भारत में G20 सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। दुनिया के 20 बड़े देशों के शीर्ष नेता, राजनयिक और कारोबारी इस दौरान दिल्ली में रहेंगे। पूरी राष्ट्रीय राजधानी की तस्वीर लगभग बदल गई है। इसकी तैयारियाँ कई महीनों से चल रही थीं। दिसंबर 2022 में जब भारत को G20 की अध्यक्षता मिली, उसके बाद से ही देश के कई इलाकों में, जम्मू कश्मीर के श्रीनगर से लेकर केरल के तिरुवनंतपुरम तक, असम के गुवाहाटी से लेकर गुजरात के कच्छ तक – कई शहरों में G20 से जुड़े बड़े-बड़े अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम हुए।
किसी भी देश को जब किसी अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम की मेजबानी मिलती है तो उसके बाद मौका होता है अपनी ताकत दिखाने का, अपनी संस्कृति के प्रचार-प्रसार का और अपने यहाँ चल रही जन-कल्याणकारी योजनाओं से दुनिया को सीख देने का। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुरू में ही साफ कर दिया था कि भारत की G20 अध्यक्षता का इस्तेमाल ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ को बढ़ावा देने के लिए किया जाएगा। भारत ने ग्रीन डेवलपमेंट से लेकर महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास को अपनी G20 अध्यक्षता की प्राथमिकताओं में गिनाया था।
अब चलते हैं 2010 में, जब देश में सरकार दूसरी थी। डॉ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली UPA (जिसने अब इस नाम को तिलांजलि देकर I.N.D.I.A.) नामक नया गठबंधन बना लिया है की सरकार थी तब। सोनिया गाँधी उस सरकार की सर्वेसर्वा थीं। भारत को तब भी दुनिया के सामने अपनी ताकत दिखाने का मौका मिला था। कॉन्ग्रेस सरकार को 6 साल हो चुके थे, ऐसे में उसके पास मौका था बहुत कुछ करने का। 2010 में भारत में राष्ट्रमंडल खेल हुए थे, 71 देशों के 4352 खिलाड़ियों ने इसमें हिस्सा लिया था।
लेकिन, तब की सरकार ने इस मौके का क्या किया? इसे न सिर्फ गँवा दिया गया, बल्कि घोटालों के कारण देश की छवि ऐसी बदनाम हुई कि लोगों ने मान लिया था कि देश में अब कोई भी अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम कराने की क्षमता नहीं बची है, संस्कृति के प्रचार-प्रसार की तो बात ही छोड़ दीजिए। इससे पहले 1951 और 1982 में भारत में एशियन गेम्स हुए थे, लेकिन 2010 का राष्ट्रमंडल खेल उस समय तक दिल्ली में होने वाला सबसे बड़ा खेल आयोजन था। यूपीए काल में भ्रष्टाचार की कड़ी में कॉमनवेल्थ गेम्स में हुए घोटालों ने देश का सबसे ज़्यादा नुकसान किया।
सुरक्षा से लेकर हाइजीन तक, मजदूरों के भत्ते और उनकी स्थिति से लेकर काम में देरी तक, नलस्वाद के आरोपों से लेकर वेश्यावृत्ति में बढ़ोतरी के आरोपों तक – भारत के लिए राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन से कोई भी अच्छी खबर नहीं आई। जब जब G20 के जरिए भारत दुनिया को अपनी ताकत दिखा रहा है और अपनी संस्कृति से रूबरू करा रहा है, समय आ गया है इसका विश्लेषण करने का कि कैसे 2010 में भारत ने जहाँ मौका गँवा दिया, वहीं 2023 में मिले मौके का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया गया और वो भी बिना किसी विवाद के।
दोनों आयोजनों का चरित्र अलग है, जहाँ राष्ट्रमंडल खेल स्पोर्ट्स आयोजन था वहीं G20 एक कूटनीतिक आयोजन है। लेकिन, दोनों में एक समानता है कि दोनों वैश्विक कार्यक्रम थे। अगर उस समय की सरकार ने सही इरादे दिखाए होते तो उसका इस्तेमाल भी भारत को वैश्विक स्तर पर मजबूत करने के लिए किया जा सकता था। इसका एक बड़ा कारण ये था कि यूपीए काल में सरकार के पास उपलब्धियों के नाम पर दिखाने के लिए भी कुछ नहीं था, मोदी सरकार योजनाओं के कार्यान्वयन को लेकर सक्रिय है।
2010 कॉमनवेल्थ गेम्स: भ्रष्टाचार, नकारात्मकता और देश की छवि का नुकसान
कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए गए, लेकिन दिल्ली की स्थिति में जरा सा भी सुधार नहीं हुआ। वादे तो किए गए थे कि इसे वर्ल्ड-क्लास सिटी बना दिया जाएगा, लेकिन दूर-दूर तक ऐसा कुछ हुआ नहीं। जहाँ खिलाड़ियों और विदेशी नागरिकों को रुकना था, वो जगह भी पूरी तरह बन कर तैयार नहीं हो पाई थी। सोचिए, बाहर से यहाँ आए लोगों के दिलोंदिमाग में भारत को लेकर क्या छवि बनी होगी। स्टेडियमों में ठीक तरीके से कामकाज नहीं हुआ, एक ‘शिवाजी स्टेडियम’ तो किसी भी खेल की मेजबानी के लिए तैयार ही नहीं था।
यहाँ तक कि टिकटों की बिक्री भी समय पर शुरू नहीं हुई थी। कई सड़कें खुदी हुई थीं, कई जगह गड्ढे थे। कॉमनवेल्थ के नाम पर तोड़फोड़ तो कर दी गई थी, लेकिन मरम्मत और सौंदर्यीकरण का काम हुआ ही नहीं। 2010 में मार्च में ही गेम्स के लिए तैयारी की डेडलाइन तय थी, लेकिन इसे बढ़ा कर पहले जून, फिर जुलाई और इसके बाद अगस्त करना पड़ा। बड़ी बात ये है कि 2003 में ही साफ़ हो गया था कि 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन दिल्ली में होगा।
कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन के लिए 19,500 करोड़ रुपए का खर्च प्रस्तावित हुआ, बजट बढ़ते-बढ़ते इसका तीन गुना अधिक हो गया, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात। स्टेडियम की मरम्मत के नाम पर लाखों डॉलर खर्च हुए। उस समय भारत में भुखमरी से लेकर कुपोषण तक बहुत बड़ी समस्या हुआ करता था, इसके बावजूद कई बार आयोजन का बजट बढ़ाया गया और पैसों की बर्बादी हुई। आज जहाँ G20 के लिए पूरे सामंजस्य के साथ काम किया जा रहा है, उस समय कॉन्ग्रेस के ही नेता रहे मणिशंकर अय्यर ने कॉमनवेल्थ गेम्स के असफल होने की कामना की थी।
मणिशंकर अय्यर यूपीए काल में कभी खेल मंत्री रहे थे, उसके बावजूद उनकी ऐसी सोच थी। मणिशंकर अय्यर ने कहा था कि अगर ये खेल आयोजन सफल हुआ तो उन्हें बहुत दुःख होगा। क्योंकि उन्हें इससे दिक्कत थी कि अगर ये सफल हो गया तो आगे और भी खेल आयोजन होंगे। उस समय शिक्षा, इंफ़्रास्ट्रक्चर और स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति ये थी कि Wipro के संस्थापक अजीम प्रेमजी ने भी इतना खर्च किए जाने की आलोचना की थी। आज भारत ने कोरोना काल में न सिर्फ 200 करोड़ स्वदेशी वैक्सीन की डोज दे दी, बल्कि 100 से अधिक देशों को भी वैक्सीन दी।
कॉमनवेल्थ गेम्स के समय गरीबों के साथ कैसा व्यवहार हुआ था, ये देखिए। दिल्ली में 19 इलाकों में कामकाज के नाम पर 2 लाख लोगों को जबरन वहाँ से हटाया गया। ‘हाउसिंग एन्ड लैंड राइट्स नेटवर्क (HLRN)’ नामक NGO ने रिसर्च के बाद ये खुलासा किया था। इनमें से अधिकतर लोगों को कहीं और बसाया भी नहीं गया। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहाँ मजदूरों को ‘श्रमजीवी’ कहते हैं और हर परियोजना के निरीक्षण और उद्घाटन जैसे मौकों पर उन्हें सम्मान देते हैं, उसने बातचीत करते हैं – कॉमनवेल्थ के समय क्या हुआ था, जान लीजिए।
वहाँ मजदूरों को 100 रुपए से भी कम देकर दिन भर खटवाया जाता था, दुर्घटना में से कई घायल हुए, उन्हें बीमारी की स्थिति में छुट्टी तक नहीं दी जाती थी और वर्किंग कंडीशन बहुत ही ख़राब थी। बाल मजदूरी भले ही भारत में गैर-कानूनी हो, लेकिन कॉमनवेल्थ गेम्स में बड़े पैमाने पर ये सब हुआ था। जबरन मजदूरी और बाल मजदूरी के दर्जनों मामले सामने आए थे। कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान वेश्यावृत्ति भी काफी बढ़ गई थी। एस्कॉर्ट सर्विस वालों की चाँदी हो गई थी। सोचिए, जिस कार्यक्रम का इस्तेमाल भारत में पर्यटन को मजबूत करने के लिए हो सकता था उसे क्या बना कर रख दिया गया था।
अन्य राज्यों से महिलाओं को सेक्स वर्कर बना कर लाया जा रहा था। एक NGO ने तो यहाँ तक दावा किया था कि 40,000 से भी अधिक महिलाएँ तो केवल उत्तर-पूर्वी राज्यों से लाई गई थीं। उस दौरान एक ‘टॉयलेट पेपर स्कैंडल’ भी खासा चर्चा में आया था, यानि शौचालयों में भी घोटाला। एक टॉयलेट पेपर 80 डॉलर में आयोजकों ने खरीदे थे। इसी तरह 61 डॉलर में लिक्विड साबुन और 125 डॉलर में फर्स्ट एड किट्स खरीदे गए थे। रुपए में में बात करें तो 1500 रुपए में एक टिशू पेपर खरीदा गया था।
CAG ने भी इन घोटालों के बारे में खुल कर बात की थी। कॉमनवेल्थ गेम्स से ठीक पहले वॉलंटियर्स में से आधे काम छोड़ कर चले गए। उन्हें कोई पैसे नहीं दिए जा रहे थे, बल्कि सर्टिफिकेट का लालच देकर लाया गया था। 22,000 में से आधे ने ट्रेनिंग के बाद काम करने से इनकार कर दिया था, क्योंकि व्यवस्था अच्छी नहीं थी। इन गेम्स को देखने के लिए दर्शक भी नहीं आते थे। ओपनिंग सेरेमनी में खिलाड़ियों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करने के आरोप लगे। ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों ने आरोप लगाया था कि उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया।
अफ़्रीकी खिलाड़ियों के साथ नस्लवाद की घटनाएँ सामने आईं। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाउआ न्यू गुइना जैसे देश अपने सर्वोच्च सम्मान से नवाजते हैं। अफ़्रीकी देशों को भारत ने कोरोना के टीके मुहैया कराए। जो खेलगाँव बनाया गया था, वहाँ भी स्थिति खराब थी। वहाँ का ड्रेनेज सिस्टम हजारों इस्तेमाल किए हुए कंडोम्स से जाम हो गया था। कई देशों ने कॉमनवेल्थ का बॉयकॉट करने की भी धमकी दी। डोपिंग के कई मामले सामने आए थे।
आयोजन की जिम्मेदारी सुरेश कलमाड़ी को दी गई थी, बाद में CBI ने अपनी चार्जशीट में उन्हें मुख्य अभियुक्त बनाया। बताया गया कि कैसे उन्होंने नियमों का उल्लंघन कर कई कॉन्टेक्ट्स कंपनियों को दिए थे। 11 महीने तिहाड़ जेल में बिताने के बाद वो जमानत पर बाहर निकले। सोचिए, इन सबका भारत की छवि पर क्या असर पड़ा होगा। जिस मौके का आयोजन हमारी छवि बनाने के लिए की जा सकती थी, पर्याप्त समय था, उससे उल्टा भारत की छवि इतनी बिगड़ गई कि देश को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।
G20: भारत ने मौके को खूब भुनाया, अपनी संस्कृति का प्रचार-प्रसार भी
भारत में G20 से का सफल आयोजन हो रहा है और एक भी घोटाले की खबर सामने नहीं आई है। भारत इसी बहाने पर्यटन को भी खूब बढ़ावा दे रहा है। दिल्ली मेट्रो द्वारा विशेष पास दिया जा रहा है, ताकि विदेशी यहाँ के महत्वपूर्ण स्थलों को देख सकें। इन देशों के संस्कृति मंत्रियों की अलग से बैठक हुई। टूरिज्म वर्किंग ग्रुप्स से लेकर फाइनेंस वर्किंग ग्रुप्स तक की बैठकें हुईं। भारत डिजिटल क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों के बारे में भी लगातार दुनिया को इस मंच का इस्तेमाल कर के बता रहा है।
भारत का सबसे हाईटेक कन्वेंशन सेंटर बना कर दिल्ली में तैयार किया गया 123 एकड़ में, लेकिन कहीं कोई विवाद नहीं हुआ। न सिर्फ इसमें कर्नाटक के भगवान बसवेश्वर से प्रेरित होकर इसका नाम ‘भारत मंडपम’ रखा गया, नटराज की प्रतिमा भी स्थापित की गई जो तमिलनाडु के चिदंबरम मंदिर के प्रमुख देवता हैं। 2700 करोड़ रुपए में बने इस परिसर के निर्माण में कहीं कोई घपले को लेकर आरोप तक नहीं लगे। पीएम मोदी ने मजदूरों को सम्मानित किया सो अलग, यहाँ मजदूरों को समस्या वाली कोई बात भी सामने नहीं आई।
G20 से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों को भारत के 50 से अधिक शहरों में आयोजित किया गया, जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिला। बड़ी बात ये है कि कॉमनवेल्थ गेम्स के समय दिल्ली और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार थी। वहीं अभी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार है, जो LG और केंद्र सरकार के साथ विवादों के कारण ही चर्चा में रहती है। इसके बावजूद इंस्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में कोई कोताही नहीं बरती गई। उप-राज्यपाल कह चुके हैं कि से के बाद भी विकास के ये कार्य जारी रहेंगे।
दिल्ली में प्रगति मैदान के आसपास की सड़कों के अलावा धौलाकुआँ-एयरपोर्ट वाले मार्ग को भी चमकाया गया। कई मेट्रो स्टेशनों की नए सिरे से मरम्मत की गई। NDMC ने दिसंबर 2022 में ही ऐलान कर दिया था कि दिल्ली में इंफ़्रास्ट्रक्चर को अपडेट करने के लिए 100 करोड़ रुपए तक की धनराशि जारी की गई है। नए पार्क बनाए गए। बड़ी बात ये है कि पैसे कहाँ खर्च हो रहे, ये दिख रहे हैं। भारत सरकार किस तरह हमारी संस्कृति को प्रमोट कर रही है, ये भी दिखाई दे रहा है।
आज ‘डिजिटल इंडिया’ की सफलता भारत की नई कहानी कहती है, तभी अगस्त 2023 के महीने में UPI के माध्यम से 1000 करोड़ से भी अधिक लेनदेन हुए। कुल मिला कर इस एक महीने में यूपीआई के माध्यम से 15 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक रहे। जर्मनी के मंत्री ने इसका इस्तेमाल कर सड़क किनारे सब्जी खरीदी और इसकी तारीफ की। जहाँ कॉमनवेल्थ गेम्स के समय मौके को गँवा दिया गया, इस बार जम कर भुनाया गया। 13,00 करोड़ रुपए की लागत से सेन्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट भी चल रहा है, जिसके तहत नया संसद भवन बना है। वहाँ भी पैसों को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ कोई एक पार्टी ही ऐसे आयोजनों को सफल कर के दिखा सकती है। अगर उद्देश्य सही हो और नेतृत्व मजबूत हो तो ये संभव है। ओडिशा का उदाहरण ले लीजिए। हॉकी वर्ल्ड कप के सही आयोजन से ओडिशा को इतना फायदा हुआ और उसकी छवि ऐसी चमकी कि ‘मेक इन ओडिशा कन्क्लेव’ के जरिए राज्य ने 10.3 लाख करोड़ का निवेश जुटाया। ये आयोजन जनवरी 2023 में हुआ था। राउरकेला में मात्र 15 महीने में भव्य स्टेडियम बना कर तैयार कर दिया गया।
India's Leadership in G20 Signals Hope for Addressing Global Challenges, Says Commonwealth Secretary-General Patricia Scotland @PScotlandCSG tells @WIONews pic.twitter.com/qnMbf395NH
— Sidhant Sibal (@sidhant) September 1, 2023
बड़ी बात ये है कि जिस कॉमनवेल्थ गेम्स में देश की छवि बिगड़ी थी, आज उसी कॉमनवेल्थ की सेक्रेटरी पैट्रिका स्कॉटलैंड G20 समिट के समय भारत की तारीफ कर रही है। उनका कहना है कि इससे वैश्विक चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी। यही नहीं, उन्होंने ISRO के ‘चंद्रयान 3’ और ‘आदित्य L1’ मिशन की भी प्रशंसा की। साथ ही डिजिटल क्रांति को लेकर भी भारत की वो कायल हैं। उन्होंने कहा कि भारत अभूतपूर्व सफलता प्राप्त कर रहा है।