Monday, November 25, 2024
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बिहारियों को बार-बार गुंडा बतातीं ममता बनर्जी, घृणा फैलाते DMK नेता, इनके सामने नतमस्तक नीतीश-तेजस्वी: गाली सुन-सुन कर विपक्षी एकता की कीमत चुकाएँ बिहारी?

शिवसेना का तो बिहारियों के खिलाफ घृणा का पूरा का पूरा इतिहास रहा है। उद्धव ठाकरे तो यहाँ तक कह चुके हैं कि मुंबई में घुसने के लिए बिहारियों के लिए परमिट सिस्टम होना चाहिए।

बिहार एक पिछड़ा राज्य है, गरीब राज्य है। यहाँ न तो उद्योग-धंधे हैं और न ही रोजगार। JDU नेता नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं और RJD नेता तेजस्वी यादव उप-मुख्यमंत्री। यानी, इन दोनों पर जिम्मेदारी है कि वो बिहार को आगे ले जाएँ। लेकिन, ये दोनों कर क्या रहे हैं? ये विपक्षी एकता के लिए देशाटन कर रहे हैं, जनता जाए भाड़ में। जिन नेताओं से ये मिल रहे हैं, वो तक इनकी बात नहीं मान रहे। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध के चक्कर में दोनों भटक रहे हैं।

एक YouTuber को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया, लग गया NSA

कुछ ही हफ्ते बीते हैं, जब तमिलनाडु में बिहारियों के खिलाफ हिंसा की खबरें आई थीं। हालाँकि, इसके बाद सोशल मीडिया पर कई फेक वीडियो और दावे भी सर्कुलेट हो गए। लगभग सभी बड़े मामलों में ऐसा होता है। बिहार के YouTuber मनीष कश्यप ने ‘सच तक न्यूज़’ के माध्यम से बिहारियों का दर्द दिखाना शुरू किया। उन पर फर्जी खबरें फ़ैलाने का आरोप लगा कर कई मामले दर्ज किए गए और गिरफ्तार कर लिया गया।

इतना ही नहीं, उन्हें गिरफ्तार के उनके बैंक खातों को जब्त कर दिया गया। फिर उन्हें तमिलनाडु पुलिस को सौंप दिया गया। अब उन पर ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA)’ के तहत कार्रवाई की जा रही है। वो वीडियो भी आपको याद ही होगा, जिसमें मनीष कश्यप से पूछताछ करने बिहारी आई तमिलनडु की पुलिसकर्मी मीडिया के सवाल पर कहती है कि उसे हिंदी नहीं आती। तमाम विरोधों के बावजूद मनीष कश्यप के साथ ऐसा व्यवहार किया गया, जैसे वो आतंकवादी हों।

लेकिन, जो सजायाफ्ता अपराधी हैं, अर्थात जिन पर न्यायालय द्वारा आरोप सिद्ध कर के सज़ा दी जा चुकी है, उनके प्रति बिहार सरकार का क्या रवैया? ऐसे 27 सजायाफ्ता अपराधियों को अब रिहा किया जा रहा है, जिनमें DM की हत्या में शामिल आनंद मोहन सिंह भी शामिल हैं। उनके बेटे चेतन आनंद राजद के विधायक हैं, शिवहर से। बाकी 26 अपराधियों में आधे ऐसे हैं, जो राजद के कथित MY समीकरण में फिर बैठते हैं।

ममता बनर्जी कई बार बिहारियों को बता चुकी हैं गुंडा

चलिए, सबसे ताज़ा मामले से ही शुरू करते हैं। पश्चिम बंगाल के पूर्वी दिनाजपुर में एक लड़की की मौत हो गई, जिसके बाद पुलिस उसके शव को घसीटती हुई दिखी। वीडियो वायरल हुआ, ग्रामीण आक्रोशित हुए। आरोप है कि नाबालिग लड़की का बलात्कार कर के उसकी हत्या कर दी गई है। लोगों ने थाने में आग लगा दी, पत्थरबाजी की, विरोध प्रदर्शन किया और पुलिसकर्मियों को पीटा। ममता बनर्जी ने बिहारियों पर ठीकरा फोड़ दिया।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कह दिया कि भाजपा बिहार से गुंडों को बुला कर ये सब करवा रही है। क्या बिहार गुंडों की फैक्ट्री है? ये पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी ने इस तरह का बयान दिया हो। इसी महीने के पहले सप्ताह में भी उन्होंने रामनवमी के दौरान हुई हिंसा को लेकर कहा था कि भाजपा बिहार से गुंडों को लेकर आई और वो हावड़ा में घुस गए। क्या एक बार भी नीतीश कुमार ये तेजस्वी यादव ने इस बयान पर आपत्ति जताई?

अब ज़रा 3 साल पीछे चलिए। पश्चिम बंगाल में तब विधानसभा चुनाव हो रहे थे। तब भी ममता बनर्जी ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में यूपी-बिहार से गुंडे बुलाए जा रहे हैं। बिहार में इसके खिलाफ शिकायत भी दर्ज कराई गई थी। इसके बावजूद नीतीश-तेजस्वी कोलकाता जाकर ममता बनर्जी से मिलते हैं, उनसे मिन्नतें माँगते हैं कि वो विपक्षी गठबंधन में शामिल हों और बदले में बंगाल सीएम कहती हैं कि बिहार में बैठक बुलाइए सभी दलों की, फिर आगे देखेंगे।

क्या ममता बनर्जी बिहारियों को गुंडा बोलती रहेंगी और बिहारी अपमान का घूँट सिर्फ इसीलिए पीता रहे क्योंकि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव उनके सामने नतमस्तक हैं? क्या विपक्षी एकता की कीमत बिहारियों का अपमान है? इसका अर्थ है कि ममता बनर्जी के बयान पर कोई आपत्ति न जताने वाले बिहार के सत्ताधीश इन बातों से सहमत हैं। अब वो भी अपने राज्य की जनता को ‘गुंडा’ बुलाना ही शुरू कर दें फिर तो।

जिस DMK सुप्रीमो के जन्मदिन पर भज खाने गए नीतीश-तेजस्वी, उस पार्टी के नेता भी बिहारियों के खिलाफ फैलाते हैं घृणा

जिस तमिलनाडु की पुलिस को मनीष कश्यप को सौंप दिया गया, वहाँ की सत्ताधारी पार्टी की बिहारियों को लेकर क्या सोच है ये भी तो जान लीजिए। याद हो कि जब तमिलनाडु में बिहारियों के खिलाफ हिंसा की खबरें आ रही थीं, तब नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव चेन्नई में वहाँ के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की 70वीं सालगिरह की पार्टी एन्जॉय कर रहे थे। क्या उन्होंने इस मुद्दे को वहाँ उठाया? उन्हें लगता है कि बिहारी जाट-पात में बँटे रह कर उन्हें जिताते रहेंगे, भले ही वो उनके खिलाफ हिंसा ही क्यों न होने दें।

तमिलनाडु में तो राज्यपाल तक को नहीं छोड़ा गया। भारत के डिप्टी NSA रह चुके पटना के RN रवि तमिलनाडु के राज्यपाल हैं। DMK के संगठन महामंत्री आरएस भारती ने कह दिया कि तमिलनाडु में बिहारी पानी-पूरी और सोनपापड़ी बेचने आते हैं, राज्यपाल भी उन्हीं में से एक हैं। उन्होंने राज्यपाल को पिटाई तक की धमकी देते हुए उनकी तुलना बिहार के प्रवासी मजदूरों के साथ कर दी। क्या नीतीश-तेजस्वी ने इस पर आपत्ति जताई?

DMK संगठन तो छोड़ दीजिए, तमिलनाडु सरकार में बैठे इनके नेताओं की सोच भी देख लीजिए। तमिलनाडु के नगरपालिका प्रशासन मंत्री केएन नेहरू ने कह दिया कि बिहारियों के पास तमिल लोगों के मुकाबले कम बुद्धि होती है। उन्होंने बिहारियों पर तमिल लोगों की नौकरी छीनने के आरोप तक मढ़ दिए। उन्होंने कहा था कि बिहारियों को तमिल या अंग्रेजी नहीं आती है, फिर भी वो बैंकों में नौकरियाँ कर के तमिल लोगों के रोजगार छीन रहे हैं।

इन सबके बावजूद नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव एमके स्टालिन के यहाँ भोज खाने पहुँचे। इसी तरह वो हाल ही में विपक्षी एकता की कवायद में अरविंद केजरीवल से भी मिले। एक अस्पताल के उद्घाटन कार्यक्रम में पहुँचे दिल्ली के सीएम ने कहा था कि बिहारी 500 रुपए का टिकट कटा कर दिल्ली आते हैं और 5 लाख रुपए का इलाज मुफ्त में करा के चले जाते हैं। कोरोना काल में किस तरह बिहारी मजदूरों को दिल्ली से भगाया गया था, ये बात भी नीतीश-तेजस्वी ने जेहन से निकाल दी।

नीतीश-तेजस्वी के विपक्षी गठबंधन में बिहारी विरोधी उद्धव भी होंगे?

नीतीश-तेजस्वी के विपक्षी गठबंधन की योजना में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी होगी ही। शिवसेना का तो बिहारियों के खिलाफ घृणा का पूरा का पूरा इतिहास रहा है। उद्धव ठाकरे तो यहाँ तक कह चुके हैं कि मुंबई में घुसने के लिए बिहारियों के लिए परमिट सिस्टम होना चाहिए। तब उन्होंने नीतीश को भी भला-बुरा कहा था। लॉकडाउन के बाद जब बिहारी मजदूर महाराष्ट्र लौटे थे, तब भी शिवसेना मुखपत्र ‘सामना’ में उनकी आलोचना की गई थी।

अंत में, सीधी बात ये है कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव अगर चाहते हैं कि बिहारी गाली सुनता रहे और वो दोनों विपक्षी गठबंधन बनाते रहें, तो उन्हें खुल कर ये बात कहनी चाहिए। उन्हें खुल कर ऐलान कर देना चाहिए कि बिहारी अपमानित होने की आदत डाल लें। जहाँ तक बिहार के विकास की बात है, चाचा-भतीजे के कार्यकाल में वो तो होने से रहा। माइग्रेशन होता रहेगा, बिहारी अपमानित होते रहेंगे और जदयू-राजद जाति वाली राजनीति कर के सत्ता पाने की कोशिश करती ही रहेगी।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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