25 दिसंबर के दिन कई तरह से विशेष है। जहाँ भारत में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी का जन्मदिन मनाया जा रहा है तो वहीं ईसाई सम्प्रदाय के लोग आज क्रिसमस का त्योहार मना रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान के लिए आज क़ायद-ए आज़म यानी, महान नेता और देश के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का जन्मदिन है।
मोहम्मद अली जिन्ना का जन्मदिन इस वर्ष कई कारणों से महत्वपूर्ण है। साल 2020 शुरुआत से ही कोरोना वायरस की महामारी के कारण चर्चा में रहा। इसकी शुरुआत में जहाँ चर्चा का विषय हाथ धुलना और हैण्ड सैनीटाइजर का नियमित इस्तेमाल था, तो इसके जाते-जाते चर्चा का विषय कोरोना वायरस की वैक्सीन हैं। लेकिन दोनों ही चीजों में कुछ ऐसी चीजें हैं जो एक खास समुदाय के लिए विशेष परेशानी का भी कारण बनी रही हैं। वो हैं- अल्कोहल और पोर्क यानी, सूअर का माँस!
देश-दुनियाभर में मुस्लिम समुदाय के लिए जिन्दगी और मजहब के बीच तालमेल बिठाना इस कारण विवादित विषय बनकर रह गया है क्योंकि इस्लाम में शराब के साथ ही सूअर के माँस को हराम माना गया है। लेकिन अगर कोरोना वायरस से सुरक्षित रहने के लिए एक ओर जहाँ हैंडसैनीटाइजर में अल्कोहल इस्तेमाल किया जाता है तो वहीं दूसरी ओर कोरोना वायरस वैक्सीन में सूअर के माँस का उपयोग किया जाता है।
लेकिन मजहब के नाम पर एक अलग देश की माँग करने वाले जिन्ना तो सूअर का माँस भी खाते थे और शराब का इस्तेमाल भी जमकर करते थे। यही नहीं, जिन्ना तो नमाज पढ़ना तक भी नहीं जानते थे। जिन्ना अक्सर इस्लाम का मजाक भी बनाते देखे जाते थे। एक बार तो उन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि पवित्र स्थल मक्का का पत्थर इस कारण काला हो चुका है क्योंकि हम मुस्लिम उसे हजारों वर्षो से छूते आ रहे हैं।
वास्तव में, मोहम्मद अली जिन्ना खुद को मुस्लिमों का एक धार्मिक राजनेता नहीं बल्कि राजनीतिक नेता मानते थे। एक मशहूर लेखक केएल गौबा ने इस बारे में लिखा था कि एक बार उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को एक मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के लिए बुलाया तो जिन्ना ने उनसे कहा कि उन्हें तो नमाज पढ़नी ही नहीं आती। इस पर केएल गौबा ने जिन्ना से कहा कि फिर वो वही करें जैसा कि वहाँ पर मौजूद दूसरे लोग कर रहे हैं।
मोहम्मद अली जिन्ना को खाने में पोर्क (सूअर का माँस) और सिगार का भी खूब शौक था। इसका जिक्र एक समय जिन्ना के सहायक रहे मोहम्मद करीम छागला, जो कि बाद में भारत के विदेश मंत्री भी बने, ने अपनी आत्मकथा ‘रोज़ेज इन दिसंबर’ में करते हुए बताया कि किस तरह मुंबई के एक मशहूर रेस्तराँ में जिन्ना ने कॉफ़ी के साथ सूअर के सॉसेज ऑर्डर किए थे। कुछ पुस्तकों में तो जिक्र मिलता है कि जिन्ना रोजाना नाश्ते में पोर्क ही खाना पसंद करते थे।
अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में जिन्ना जहाँ एक उदारवादी के रूप में जाने जाते थे, वहीं समय के साथ वो एक बड़े कट्टरपंथी बनकर उभरे। मोहम्मद अली जिन्ना का पूरा जीवन ऐसे ही तमाम विरोधाभासों से घिरा रहा। उनके मजहब इस्लाम का उनके जीवन पर जरा भी असर नहीं था। फिर भी, जिन्ना की मौत के समय उनके मजहब और आस्था, विवाद का विषय बनने से अछूते नहीं रहे। यह विवाद उनके अंतिम संस्कार के तरीकों के चयन को लेकर था कि यह शिया समुदाय के अनुसार किया जाना चाहिए या फिर सुन्नी! विवाद की स्थिति में जिन्ना की अंत्येष्टि में आखिकार शिया और सुन्नी, दोनों ही तरीक़ों को अपनाया गया।
जिन्ना एक ऐसा व्यक्तित्व था, जो शराब पीता था, सूअर का माँस खाता था, उर्दू नहीं बोलता था और नमाज तक पढ़ना नहीं जनता था। बावजूद इन तमाम मजहबी विरोधाभासों के, उन्हें समुदाय विशेष ने प्रेम किया, यह चौंकाने वाली बात जरूर है। हालाँकि जिन्ना ने मजहब के नाम पर ही एक अलग राष्ट्र की वकालत कर उसे साकार रूप दिया, यह शायद एक मजहब की नजरों में जिन्ना के तमाम गैर-मजहबी कारनामों पर पर्दा डालने के लिए काफी हो।
फिलहाल दुनियाभर के मुस्लिम हलाल सर्टिफिकेट वाली कोरोना वैक्सीन के इन्तजार में हैं। मुस्लिम धर्मगुरु और मौलवी वैक्सीन को लेकर तरह-तरह के बयान भी दे रहे हैं। जिन्ना का जन्मदिन ऐसे समय पर मनाया जा रहा है जब सूअर का माँस और शराब, कोरोना वायरस के इलाज के बीच एक बड़ी दीवार पैदा करता नजर आ रहा है।