Friday, March 29, 2024
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‘भले उसमें सूअर का माँस हो, फिर भी कबूल है कोरोना वैक्सीन’: अरब के सर्वोच्च इस्लामी संगठन ने जारी किया फतवा

"मनुष्य को बचाने की जिम्मेदारी अभी सर्वोपरि, इसलिए कोरोना वैक्सीन में सूअर का माँस होने की स्थिति में भी इसे लिया जा सकता है। ये इस्लाम के अंतर्गत आने वाले प्रतिबंधों के तहत नहीं आएगा।"

UAE के फतवा काउंसिल ने कहा है कि मुस्लिमों के लिए कोरोना वैक्सीन लेना हराम नहीं है, भले ही उसमें सूअर का माँस (Pork) ही क्यों न हो। ये संयुक्त अरब अमीरात की सर्वोच्च इस्लामी संगठन है। संस्था ने कहा है कि अगर कोरोना वैक्सीन में पोर्क जेलेटिन हो, फिर भी मुस्लिम इसका प्रयोग कर सकते हैं। अब तक ये बहस चल रही थी कि कोरोना वैक्सीन में पोर्क होने की स्थिति में मुस्लिमों को इसे लेने की अनुमति है या नहीं।

UAE की फतवा काउंसिल के अध्यक्ष शेख अब्दुल्लाह बिन बयाह ने कहा कि आज की तारीख में मनुष्य के शरीर को बचाने की जिम्मेदारी सर्वोपरि है, इसीलिए कोरोना वैक्सीन में सूअर का माँस या उससे जुड़ा कोई कंटेंट होने की स्थिति में भी इसे लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ये इस्लाम के अंतर्गत आने वाले प्रतिबंधों के तहत नहीं आएगा। इस पर इस्लामी नियम-कायदे लागू नहीं होंगे। अभी मनुष्यता को बचाने की जरूरत है।

फतवा काउंसिल ने आगे कहा कि इस मामले में पोर्क जेलेटिन को दवा के रूप में देखा जाना चाहिए, किसी भोजन के रूप में नहीं। काउंसिल ने कहा कि कोरोना के कई वैक्सीन सामने आए हैं, जो दुनिया पर आई इस आपदा से मनुष्यता को बचाने का प्रयास करेंगे। कहा जा रहा है कि मुस्लिम समाज कहीं कोरोना वैक्सीन लेने से इनकार न कर दे, इसी खतरे के कारण फतवा काउंसिल ने ये व्यवस्था जारी की है।

हालाँकि, संस्था ने ये भी कहा कि अगर किसी के पास के के पास कोई अन्य विकल्प मौजूद है, तो फिर उसे सूअर का माँस वाला कोरोना वैक्सीन लेने से बचने का प्रयास किया जाना चाहिए। लेकिन किसी व्यक्ति के पास कोई अन्य विकल्प न हो तो फिर इस्लाम के नियम-कायदों को किनारे रखा जा सकता है। UAE सरकार ने उम्मीद जताई है कि इसके बाद इसे लेकर फैल रहे भ्रम को दूर किया जा सकेगा और आम राय बनेगी।

वैक्सीन निर्माता कम्पनी फाइजर, मॉडर्न, और एस्ट्राजेनेका के प्रवक्ताओं ने कहा है कि उनके COVID-19 टीकों में सूअर के माँस से बने उत्पादों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। लेकिन कई कंपनियाँ ऐसी हैं, जिन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उनके द्वारा विकसित की जा रही वैक्सीन में सूअर के माँस से बने उत्पादों का इस्तेमाल किया गया है या नहीं। ऐसे में इंडोनेशिया जैसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देशों में चिंता फ़ैल गई है।

उधर हाल ही में एक खबर भी सामने आई थी, जिसमें बताया जा रहा था कि मुस्लिम देश कोरोना वैक्सीन के लिए हलाल सर्टिफिकेट की माँग कर रहे हैं। फाइजर, मॉडर्न और एस्ट्राजेनेका के प्रवक्ताओं ने कहा है कि पोर्क उत्पाद उनके कोरोनावायरस टीकों का एक घटक नहीं हैं। लेकिन ऐसे हालातों में मिलियन डॉलर के व्यवसाय और सीमित आपूर्ति के बीच इंडोनेशिया जैसे कुछ मुस्लिम देशों को ऐसे टीके मिलेंगे, जो अभी तक जिलेटिन मुक्त होने के लिए प्रमाणित नहीं हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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