सीन-1
“उम्र – 19 साल। जाति – मुसलमान। नाम – नदीम खान…
…कम उम्र के लड़कों द्वारा बिना सोचे-समझे आवेश में आकर उत्तेजित होकर धर्म/समुदाय विशेष के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी”
यह सब कुछ राजस्थान पुलिस का लिखा हुआ है। बिकानेर पुलिस के ट्विटर हैंडल पर। एसपी योगेश यादव की फोटो भी लगी हुई है।
सोशल मीडिया के इंस्टाग्राम प्लेटफार्म पर आपत्तिजनक ऑडियो वायरल कर धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोपी को पुलिस द्वारा गिरफ्तार@PoliceRajasthan@IgpBikaner#bikanerpolice #crimebkn22 pic.twitter.com/WUPQHKcHWC
— Bikaner Police (@Bikaner_Police) April 9, 2022
मामला है हिंदुओं की बहनों का बलात्कार करने से लेकर हिंदुओं को चुन-चुन कर मार डालने का। मामला है जहाँ नदीम हिंदुओं की बहनों के साथ रेप होने और हिंदुओं की हत्या की बात करता है और सबनम खिलखिला कर हँसती (Nadeem Sabnam viral video on rape of Hindus and murder) रहती है। राजस्थान पुलिस को लेकिन यह “कम उम्र के लड़कों द्वारा बिना सोचे-समझे” वाली बात लगती है।
सीन-2
गोरखनाथ मंदिर। अपराधी – अहमद मुर्तजा अब्बासी। 2 सुरक्षाकर्मी घायल। हथियार – धारदार। पढ़ाई – IIT बॉम्बे से। हमला करते समय चिल्लाता है – अल्लाह-हू-अकबर। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लेकिन बताते हैं कि मानसिक समस्या से ग्रसित है, ध्यान देने की जरूरत।
अहमद मुर्तजा अब्बासी (Ahmad Murtaza Abbasi Gorakhnath Temple attacker) के पास से जिहादी दस्तावेज मिलता है। उसका इलाज करने वाले डॉक्टर बताते हैं कि वो मानसिक रूप से विक्षिप्त नहीं है। वह इतना शातिर है कि आतंकियों से कोडवर्ड में बात करता है। सिर्फ जिहादियों के लिए एक ऐप बना रहा होता है। अखिलेश यादव को लेकिन सहानुभूति हो जाती है… उन घायल पुलिस वालों से नहीं, जो लोकतंत्र में बनाए नियमों के तहत कभी उनकी रक्षा किए होंगे। खैर सहानुभूति तो “लड़कों से गलती हो जाती है” कह कर मुलायम भी दिखा चुके हैं राजनीति में।
सीन-3
जगह – मोबाइल ऐप। अपराध – मुस्लिम महिलाओं की फोटो और नीलामी। नाम – सुल्ली डील ऐप (Sulli Deals app) और बुल्ली बाई ऐप (Bulli Bai App)। देश भर में हिंदू-घृणा का माहौल। मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा गर्म। नेता सवाल-जवाब करते हैं।
पुलिस इधर अपना काम करती है। ‘सुल्ली डील’ वाला मुख्य साजिशकर्ता ओंकारेश्वर ठाकुर (25 साल, BCA का छात्र) गिरफ्तार होता है। 20 साल का लड़का नीरज बिश्नोई ‘बुल्ली बाई’ मामले में गिरफ्तार किया जाता है। शिवसेना वाली सांसद प्रियंका चतुर्वेदी इस मामले में अखिलेश यादव की तरह कूदती हैं – फर्क सिर्फ इतना होता है कि वो पीड़ित लड़कियों की ओर से बोल रही होती हैं। “कम उम्र के लड़के” बोल कर नीरज बिश्नोई की तरफदारी नहीं करती हैं… और न ही “लड़कों से गलती हो जाती है” कह कर अपना मुलायम पक्ष दिखाती हैं।
सीन-4
आतंकी ओसामा किसका बाप था? आतंकी बुरहान का बाप कौन है? यह सब कुछ याद है? मीडिया के कारनामे… कैसे गढ़ी जाती है कहानियाँ! अब एक कदम आगे चलते हैं। 2022 में आते हैं। कहानियाँ जो अभी गढ़ी जा रही हैं, उसको देखते हैं।
मुर्तजा, एक IITian आतंकवादी – मीडिया प्रोपेगेंडा
ऊपर जो फोटो है, वो मीडिया की कहानी बताती है। निष्पक्ष मीडिया की। कलम की ताकत क्या होती है, फोटो से समझिए। लेखक ठान ले तो उदाहरण देकर कैसे दुर्योधन को सुयोधन बनाया जाता है, भारत भूषण अग्रवाल की लिखी एकांकी भी लगभग सभी ने पढ़ी ही होगी।
फोटो देख कर हालाँकि The Quint के बारे में अपनी राय मत बनाइए। यह तो एक उदाहरण मात्र है… वो भी पिद्दी भर औकात के साथ। लगभग पूरी मीडिया जमात ही ऐसी है। नाम देख कर (इस्लामी, दलित या कुछ और… बहुत सारे पैमाने हैं इनके) ये तय करते हैं कि कहानी कैसे बेची जाए। ‘निष्पक्ष पत्रकारिता’ करके राष्ट्रपति भवन में पद्म सम्मान कैसे लिया जाए!
नदीम-सबनम, वायरल वीडियो और राजस्थान पुलिस
अब लौटते हैं ऊपर के सीन पर। राजस्थान से पुलिस वालों को हमने देखा। उन पुलिस वालों में UPSC की परीक्षा पास किए IPS ऑफिसर और उसके तर्क (“19 साल का लड़का… कम उम्र के लड़के”) को भी देखा। शायद इस IPS ऑफिसर ने नागरिक शास्त्र की किताब नहीं पढ़ी होगी, जिसमें लिखने वाले लिखते हैं कि 18 साल के नागरिक वोट कर सकते हैं, प्रधानमंत्री चुन सकते हैं।
निष्पक्ष पत्रकारों की तरह पुलिस से भी निष्पक्ष होने की उम्मीद की जाती है। बीकानेर पुलिस पूरी तरह फेल रही है इस मामले में। “अपराधी का नाम फलां, उम्र ये, पता फलां जगह, अपराध ये-ये किया, धारा ये-ये लगाई जा रही” – मूलतः पुलिस रिपोर्ट में ये बातें दिखती हैं। इसके उलट इस रिपोर्ट में मनोविज्ञान का ज्ञान बाँटा गया है। यह काम नेताओं का है, संसद में तर्क-वितर्क करना। बीकानेर पुलिस ने नेताओं वाला काम किया है।
क्या आप ऐसे पुलिस वालों से सवाल कर सकते हैं? 99.99% जनता नहीं करना चाहेगी। फर्जी केस, धमकी, कोर्ट-कचहरी… वजह आप सभी जानते हैं। यह आरोप इस IPS ऑफिसर पर नहीं है, बल्कि सामान्य पुलिसिया छवि यही है देश में।
अहमद मुर्तजा अब्बासी और अखिलेश यादव
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस बार के चुनाव के बाद भी पूर्व ही रह गए। अहमद मुर्तजा अब्बासी और उसके अब्बा से सहानुभूति 2027 के चुनावों के लिए अभी से एक प्रयास भर है। आँकड़े बताते हैं कि मुस्लिम-वोट समीकरण को साधते हुए इस बार अखिलेश उतने सफल तो नहीं रहे। जीत जरूर ज्यादा सीटों पर हुई है लेकिन सत्ता दूर है।
व्यक्ति या पार्टी विशेष से घृणा की राजनीति चलेगी नहीं, यह पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को समझना होगा। कारण यह है कि वोट आखिर में जनता ही देती है। ये जनता 1-2 बार मूर्ख बन सकती है, बार-बार तो काठ की हाँडी भी नहीं चढ़ती।
सोशल मीडिया के दौर में वीडियो वायरल होता है, जनता देखती है। जनता समझती है कि केरल में पैदाइश, मुंबई में पढ़ाई… ऐसे में अहमद मुर्तजा अब्बासी अगर मानसिक रूप से विक्षिप्त होता तो कहीं से चल कर गोरखनाथ मंदिर ही आकर क्यों रूकता? किसी मस्जिद-गुरुद्वारे या रेलवे स्टेशन पर क्यों नहीं? विक्षिप्त होता तो CAA-NRC और हिजाब-बुरके जैसे समसामयिक विषयों पर बोल कैसे पाता? पहले नेता जनता की नब्ज पकड़ते थे, अब जनता नेताओं को पहचानने लगी है।
नदीम की जगह नीरज… पुलिस-नेता-मीडिया सब सख्त
भूल जाइए सुल्ली डील और बुल्ली बाई ऐप को। हिंदू नाम वाले आरोपितों या अपराधियों के लिए (मतलब उनके पक्ष में) आपने मीडिया में प्राइम टाइम होते देखा है कभी? कभी कैंडल लाइट मार्च होते? जानी-मानी यूनिवर्सिटी में हिंदू अपराधी के नाम पर आजादी के नारे लगते सुना है कभी? याद कीजिए… नहीं कर पाएँगे, क्योंकि ऐसा कभी हुआ ही नहीं है… होता ही नहीं है। आतंकियों के लिए हालाँकि कोर्ट रात में भी खुलते हैं।
आरोप किसी पुलिस, मीडिया, सरकार, नेता आदि-इत्यादि पर है ही नहीं। आरोप है सिस्टम पर। 1947 से अब तक का जो सिस्टम देश में बना है, उसमें बहुसंख्यक हिंदुओं के लिए “सॉफ्ट कॉर्नर” या मानवीय पहलू जैसी चेतनाओं का निर्माण नहीं होने दिया गया। वरना और क्या वजह होती कि कश्मीरी पंडितों या कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार और पलायन पर विमर्श के बीच “मुस्लिम भी मारे गए, मारे गए मुस्लिमों की संख्या इतनी है” जैसी बेतुकी बातें घुसाई जाए।
जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर सबसे पहला दावा अल्पसंख्यकों (खासकर मुस्लिमों का) का है, तो निश्चित ही उनका आशय सिर्फ बिजली-सड़क-पानी-शिक्षा-खनिज से नहीं रहा होगा… पूरे सिस्टम पर, देश की सोच पर, तंत्र की मानसिकता पर… पहला दावा अल्पसंख्यकों का है – निश्चित ही वो तब ऐसा सोच कर बोले होंगे। अफसोस इस पहले दावे की मानसिकता के साथ देश और सिस्टम अभी भी चल रहा है, सरकारी तंत्र में बैठे लोग चला रहा हैं।