पंजाब में गहराए राजनीतिक संकट के बीच पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ट्विटर के जरिए वहाँ छाई अनिश्चितता और सीमावर्ती राज्य की बागडोर किसी कम भरोसेमंद व्यक्ति को सौंपने को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की। पंजाब की सीमाएँ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के साथ ही राजस्थान और गुजरात से लगती हैं। इसके अलावा पंजाब पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करता है। जम्मू-कश्मीर और पंजाब में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से ऐतिहासिक तौर पर पीड़ित रहे हैं और अन्य राज्यों को भी इसके कारण समस्याओं का सामना करना पड़ा है।
यह बात सर्वविदित है कि पाकिस्तान कश्मीर में सीमा पार आतंकवाद को फंडिंग करने के अलावा दशकों से पंजाब में खालिस्तानी अलगाववाद को बढ़ावा देता रहा है। राजस्थान और गुजरात भी सीमावर्ती राज्य हैं और इसी कड़ी में पंजाब निश्चित रूप से सरकार के लिए अधिक चिंता का विषय बना है।
हालाँकि, अब इसे गाँधी परिवार के लिए काम करने वाला मीडिया नया मोड़ दे रहा है। कुछ लोग कॉन्ग्रेस के भीतर के इस संकट का उपयोग मोदी सरकार के खिलाफ पंजाब के आम लोगों के मन में अविश्वास के बीज बोने के लिए कर रहे हैं। कुछ ऐसा जो पाकिस्तान को अच्छा लगेगा।
Yeah, Punjab is a border state, but so is Rajasthan and Gujarat. People need to stop parroting inane nonsense.
— Krishan Partap Singh (@RaisinaSeries) September 29, 2021
मसलन, पंजाब में नशीले पदार्थों का सेवन बड़ी समस्या है। खालिस्तानी भावनाओं को हवा देकर पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देने के प्रयास भी करता रहता है। लेकिन आम आदमी पार्टी की पूर्व नेता के लिए ये सब बातें ‘बेहूदा बकवास’ है।
What’s #Punjab being a border state got to go with politics. Uttarakhand and Gujarat also border states. All those who speak like this want to play into a bogus TV narrative and by implication suggest that the brave people of Punjab, soldiers and farmers, can’t be trusted.
— Saba Naqvi (@_sabanaqvi) September 29, 2021
एक और कॉन्ग्रेस-फ्रेंडली ‘पत्रकार’ सबा नकवी हैं। उन्होंने कॉन्ग्रेस की तरफ से मोर्चा सँभालते हुए कहा कि जो पंजाब को एक महत्वपूर्ण सीमावर्ती राज्य बताते हुए निशाना बना रहे हैं, वे ऐसा इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि उन्हें पंजाब के किसानों और सैनिकों पर भरोसा नहीं है। यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि किसान और सैनिक इनके लिए सॉफ्ट टारगेट हैं, क्योंकि एक आम भारतीय को ‘गरीब किसान’ और ‘बहादुर सैनिकों’ की कहानी का हवाला देकर भावनात्मक रूप से भड़काना आसान है।
China enters Uttarakhand, destroys a bridge and leaves without any problem. But all the border state gyan is for Punjab where there has been no border trouble? Seems Hindus being a minority is essential for this border state bogey
— Aditya Menon (@AdityaMenon22) September 29, 2021
इस्लाम अपना चुके द क्विंट के पत्रकार आदित्य मेनन की एक अलग ही थ्योरी है। वह कहते हैं कि राज्य में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, शायद इसलिए पंजाब का सीमावर्ती राज्य होना चिंता का विषय है।
How can Congress be effective as opposition when it allows Punjab Congress crises to dominate the headlines when the Chinese army has crossed the Uttarakhand borders to send a message before leaving?
— M K Venu (@mkvenu1) September 30, 2021
Noida TV journalists are so worried about ‘border state’ Punjab. Chinese incursions in Uttarakhand are, of course, a matter of routine and therefore of no worry!
— Rohini Singh (@rohini_sgh) September 30, 2021
अब इसे भी समझने की कोशिश कीजिए। इकोनॉमिक टाइम्स ने दो दिन पहले ‘चीनी सैनिकों की घुसपैठ’ पर एक रिपोर्ट पब्लिश की थी। सरकार और सुरक्षा अधिकारियों में से किसी ने भी इसकी पुष्टि नहीं की थी। मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी ने भी कुछ इसी तरह के दावे करते हुए कहा कि चीन ने एक पुल को भी नष्ट कर दिया। जबकि वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने ऐसी किसी भी घटना से इनकार किया है।
यह सबकुछ बिल्कुल उसी तरह जैसा इस जुलाई में भी देखने को मिला था। बिजनेस स्टैंडर्ड ने अजय शुक्ला के एक लेख प्रकाशित किया था। इसमें दावा किया गया था कि ईस्टर्न लद्दाख में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच झड़प हुई थी। बाद में भारतीय सेना ने इसे सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि अजय शुक्ला द्वारा लिखा गया लेख अशुद्धियों और गलत सूचनाओं से भरा हुआ है। उन्होंने दुर्भावनापूर्ण इरादे से ऐसा किया।
यह जगजाहिर है कि इस साल 26 जनवरी को कथित किसान आंदोलन की आड़ में लाल किले पर जो कुछ हुआ वह खालिस्तान प्रायोजित और समर्थित था। उसमें खालिस्तानी एलीमेंट शामिल थे। लेकिन इस तथ्य को नजरंदाज किया जाता रहा है क्योंकि यह बात कॉन्ग्रेस को असहज करती है। जाहिर है ये राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर तनिक भी चिंतित नहीं हैं, बल्कि वे एक ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं जो कॉन्ग्रेस की मदद करे। भले ही कॉन्ग्रेस ने खुद से मेहनत करना छोड़ दिया हो।
पंजाब के सियासी संकट को देखें तो प्रतीत होता है कि कॉन्ग्रेस के नेताओं को इसकी कोई चिंता नहीं है। कैप्टन अमरिंदर सिंह बनाम नवजोत सिंह सिद्धू की लड़ाई को सुलझाने की कोशिश करने वाले राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी इतने अक्षम हैं कि दस दिनों के भीतर मुख्यमंत्री को हटा देते हैं। इसके बाद एक ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बना दिया जाता है, जिस पर महिला IAS अधिकारी को गलत मैसेज भेजने का आरोप लगा था। इतना कम था कि प्रदेश अध्यक्ष ने भी अचानक से इस्तीफा दे दिया। इस दरम्यान राहुल गाँधी और उनकी माँ सोनिया गाँधी शिमला में छुट्टी मना रहे थे। ऐसा लगता है कि कॉन्ग्रेस के लिए यही काफी नहीं था तो उन्होंने कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी को कुछ इस तरह जोड़ा जैसे यह बेजोड़ सौदा हो।
इतना ही नहीं फैक्टचेकर्स ने तो यह साबित करने की जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली है कि कॉन्ग्रेस नेताओं, विशेष रूप से सोनिया गाँधी और उनके बेटे राहुल गाँधी ने पार्टी अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की बेइज्जती नहीं की थी। तथाकथित फैक्ट चेकर्स ने अपनी बातों को साबित करने के लिए एक वीडियो भी साझा किया, जिसमें कोई भी पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी को कार से उतरते और वहाँ खड़े प्रधानमंत्री की अनदेखी करते हुए देख सकता है, लेकिन उनके लिए यह देश के प्रधानमंत्री का ‘अपमान’ नहीं था। मतलब जब तक किसी को नेता की सीट हड़पने के लिए शौचालय में बंद नहीं किया जाता, तब तक उसका अपमान नहीं माना जाता। अगर कभी ऐसा होता भी है तो उसे हमारे इतिहास की किताबों से हटा देते हैं, क्योंकि कॉन्ग्रेस के ‘इतिहासकार’ ही हमारे इतिहास की किताबों को लिखते हैं।
जैसे कि अमिताभ बच्चन ने ‘शराबी’ में कह रखा हो- इकोसिस्टम हो तो ऐसी हो, वरना ना हो।
मूल रूप से यह लेख अंग्रेजी में निरवा मेहता ने लिखा है। कुलदीप सिंह ने इसका अनुवाद किया है। मूल लेख पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।