शेख शाहजहाँ (Sheikh Shahjahan) को पश्चिम बंगाल की पुलिस ने 29 फरवरी 2024 की सुबह गिरफ्तार कर लिया। वह 55 दिनों से फरार था। इस बीच पश्चिम बंगाल के संदेशखाली से जो कुछ बाहर निकल कर आया वह बताता है कि तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) के शासनकाल में इस प्रदेश ने जंगलराज से बर्बर-वहशी युग तक जाने की यात्रा पूरी कर ली है।
जंगलराज ऐसे शासनकाल के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जब हद दर्जे की अव्यवस्था और अराजकता दिखे। कानून का भय अपराधियों में न हो। आम आदमी खौफ के साये में लिपटा रहे। मसलन, मेरी उम्र के लोग जिस बिहार में बड़े हुए उसे जंगलराज कहा जाता है। उस दौर में एक तरफ आधारभूत संरचनाएँ ध्वस्त होती जा रहीं थी, दूसरी तरफ कोई शहाबुद्दीन किसी चंदा बाबू के बेटों को तेजाब से नहलाकर मार डालता था। अपहरण का उद्योग जड़ें जमा रहा था और जातीय नरसंहार फल फूल रहा था… लेकिन संदेशखाली से प्रताड़ना की जो भयावह कहानियाँ सामने आई हैं वह बताती हैं कि ममता बनर्जी के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल जंगलराज से भी बदतर स्थिति में साँसें ले रहा है।
संदेशखाली बताता है कि वामपंथियों ने अपने शासनकाल में पश्चिम बंगाल में जिस राजनीतिक हिंसा को ‘सामान्य’ बनाया, वह टीएमसी के शासनकाल में घर से महिलाओं को उठाकर, उन्हें रातभर भोगकर, सुबह छोड़ देने की स्थिति तक जा चुका है। पश्चिम बंगाल की राजनीति में हिंसा किस कदर बैठी हुई है कि यह देश ने तब भी देखा था, जब विधानसभा चुनावों में टीएमसी की जीत सुनिश्चित होते ही विपक्षी दलों को वोट देने वालों को लक्षित कर हिंसा हुई थी। हत्याएँ और लूटपाट हुई थी। बड़े पैमाने पर लोगों को पलायन कर दूसरे राज्यों में शरण लेनी पड़ी थी।
ऐसी घटनाएँ बंगाल में जंगलराज होने के लेकर देश को लगातार अलर्ट करती रहीं, लेकिन उसके बर्बर-वहशी युग में जीने की खबर देश को तब खबर लगी, जब शाहजहाँ शेख राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आया। शेख को राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियाँ 5 जनवरी 2024 को मिली, जब पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीम पर हमला हुआ। पत्थरों से लैस 250-300 लोगों की भीड़ ने सीआरपीएफ जवानों और पत्रकारों को भी नहीं छोड़ा। ईडी की टीम राशन घोटाला में छापेमारी के लिए गई थी।
शाहजहाँ शेख टीएमसी का कोई हैवीवेट नेता नहीं है। वह जिस भूमिका में है, उस भूमिका वाले नेता हर दल में सैकड़ों होते हैं। वह कभी विधायक-सांसद नहीं रहा। यह जरूर है कि वह हजारों करोड़ के राशन घोटाले में आरोपित ममता सरकार के मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक का ‘खास’ बताया जाता है। पर किसी मंत्री का खास होकर ही कोई खुद को इतना ताकतवर समझने की भूल शायद ही करे कि वह राष्ट्रीय एजेंसी पर हमला करवा दे।
शाहजहाँ शेख के संदेशखाली का बेताज बादशाह होने, खुद को ताकतवर समझने की वजहों और बंगाल के जंगलराज से बर्बर युग में जाने की यात्रा पूरी करने का पता तब चला जब संदेशखाली की महिलाओं ने उसके खिलाफ मुँह खोलने का साहस दिखाया। जब इन महिलाओं को ‘बाहरी’ बताकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पीड़िताओं को झुठलाने की कोशिश की तो पता चला कि शाहजहाँ शेख जैसों को बंगाल में ताकत कहाँ से मिलती है।
ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने तो शेख की गिरफ्तारी को लेकर ऐसा भ्रम का माहौल बनाया कि कलकत्ता हाई कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेकर यह कहना पड़ा कि उसने गिरफ्तारी पर रोक नहीं लगाई। इस फटकार के बाद टीएमसी ने कहा कि शाहजहाँ शेख सात दिनों में गिरफ्तार कर लिया जाएगा और आखिरकार 29 फरवरी को उसको गिरफ्तार करने की खबर आ गई। इससे ठीक पहले बंगाल विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी एक चौंकाने वाला दावा करते हुए बताया था कि शाहजहाँ शेख बंगाल पुलिस की ‘सेफ कस्टडी’ में है। हाई कोर्ट ने कहा कि बंगाल पुलिस ही नहीं, उसे ईडी और सीबीआई भी गिरफ्तार करने को स्वतंत्र है।
इसके ठीक बाद जिस तरह से उसकी गिरफ्तारी की खबर आई है, उसके बाद कहा जा रहा है कि बढ़ते दबाव के बीच बंगाल पुलिस उसकी गिरफ्तारी दिखाने को ‘मजबूर’ हुई है ताकि शेख केंद्रीय एजेंसियों के हाथ न लगे। हाई कोर्ट की फटकारों और सुवेंदु अधिकारी के दावे से काफी पहले दैनिक भास्कर को शाहजहाँ शेख के भाई ने बताया था कि वह फरार नहीं है। वह बंगाल में ही है।
पर बंगाल की असली चुनौती शाहजहाँ शेख की गिरफ्तारी नहीं है। उसे इस हाल में ले जाने के लिए जिम्मेदार वह व्यवस्था है जो एक ट्रक ड्राइवर को संदेशखाली में अपनी सल्तनत चलाने की इजाजत देता है। जो सत्ता बदलते ही माकपा से टीएमसी में घुसपैठ कर किसी को ऐसी व्यवस्था कायम कर लेने की ताकत दे देता है, जिसमें उसके गुर्गे घर-घर जाकर सुंदर महिलाओं का चुन सकें और उनका ‘भोग’ कर सकें।
ऐसे में सवाल उठता है कि इस व्यवस्था का इलाज कौन करेगा? ध्यान रहे कि संदेशखाली मामले को सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया था। शाहजहाँ शेख को गिरफ्तार करने के बाद बंगाल पुलिस कह रही है कि उसे ईडी पर हमले के मामले में पकड़ा गया है। इसका संदेशखाली के यौन शोषण के मामलों से कोई वास्ता नहीं है।
एक मशहूर कहावत है कि सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का। संदेशखाली की पीड़िताओं को न्याय और पश्चिम बंगाल को इस नरक से मुक्ति ‘कोतवाल’ को बदले बिना शायद ही मिले। वैसे भी हमें इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही अपने लिए बेहतरी की तलाश करनी है। बिहार ने 2005 में किया था। क्या बंगाल 2024 में कर पाएगा? सनद रहे कि संदेशखाली की महिलाओं के बर्बर और घिनौने आरोपों को ममता बनर्जी ‘मामूली घटना’ बता चुकी हैं।