विजय माल्या ने भारतीय स्टेट बैंक और उसके सहयोगी बैंकों को जो नुकसान पहुँचाया था, उसका करीब 40 फीसदी ऋण वसूली न्यायाधिकरण (Debt Recovery Tribunal) ने भरपाई कर दिया है। न्यायाधिकरण ने माल्या की कंपनी यूनाइटेड ब्रेवरी के लगभग 5825 करोड़ रुपए मूल्य के शेयर बेच कर यह भरपाई की है।
न्यायाधिकरण की ओर से जारी विज्ञप्ति में यह भी बताया गया है कि 25 जून तक करीब 800 करोड़ रुपए मूल्य के और शेयर बेचे जाएँगे और उससे हासिल पैसे बैंकों को मिलेंगे। हाल के दिनों में न्यायाधिकरण की ओर से की गई ये सबसे बड़ी उगाही है।
आर्थिक अपराधियों और भगोड़ों के खिलाफ सरकार की ये कार्रवाई केवल माल्या तक सीमित नहीं है। खबरों के अनुसार प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने देश-विदेश में दो और भगोड़े, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी की नामी-बेनामी संपत्ति भी जब्त की है।
तीनों आर्थिक अपराधियों की जब्त की गई कुल संपत्ति का मूल्य करीब 18170 करोड़ रुपए है जो बैंकों को इनकी वजह से होने वाले नुकसान का करीब 80 प्रतिशत है। प्रवर्तन निदेशालय से मिली जानकारी के अनुसार ये संपत्ति देश-विदेश में केवल इनके ही नहीं, बल्कि इनकी जान-पहचान के लोगों और रिश्तेदारों के नाम पर भी हैं।
ED not only attached/ seized assets worth of Rs. 18,170.02 crore (80.45% of total loss to banks) in case of Vijay Mallya, Nirav Modi and Mehul Choksi under the PMLA but also transferred a part of attached/ seized assets of Rs. 9371.17 Crore to the PSBs and
— ED (@dir_ed) June 23, 2021
Central Government.
यह खबर इसलिए महत्वपूर्ण है कि देश में आर्थिक अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई की प्रक्रिया पहले से ठोस नहीं थी। यह इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि वर्तमान सरकार ने आर्थिक अपराधों से निपटने के लिए कानून बनाए। कानून बनाने के अलावा वर्तमान सरकार की नीयत हमेशा से आर्थिक अपराध से निपटने और उसे रोकने की रही है जो सरकार द्वारा अभी तक उठाए गए कदमों से स्पष्ट हो जाता है।
अब यह किसी से छिपा नहीं है कि विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी जैसे लोगों को 2014 तक सरकारी और राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था। यह वर्तमान सरकार की नीतियों का असर है जिसकी वजह से आर्थिक अपराध और अपराधियों को पहचानने में न केवल मदद मिली, बल्कि उनके खिलाफ ठोस कानूनी कार्रवाई की शुरुआत हुई।
माल्या के खिलाफ सीबीआई की जाँच जुलाई 2015 में शुरू हुई थी। इसके साथ ही प्रवर्तन निदेशालय ने जनवरी 2016 में अपनी जाँच शुरू की तो मार्च 2016 में माल्या देश छोड़कर लंदन में जा बसा। आए दिन यह प्रश्न पूछा जाता रहा कि वह देश छोड़कर भागा कैसे? साथ ही यह प्रोपेगेंडा भी चलाया गया कि माल्या को भगाने में सरकार का ही हाथ है।
जैसा कि हमारे राजनीतिक विमर्श में होता है, तथ्यों के आधार पर बहुत कम बातें हुई। शोर में यह प्रश्न दब गया कि माल्या को राजनीतिक संरक्षण किसने दिया? सरकारी बैंकों से उसे लोन किसके कहने पर दिया गया? उसके बिजनेस से किसे लाभ हुआ? ये ऐसे प्रश्न थे जो सार्वजनिक मंचों पर इसलिए दब गए क्योंकि हमारे राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विमर्श शोर प्रधान होते हैं।
यह वर्तमान सरकार द्वारा लगातार की गई कोशिशों का ही नतीजा है कि पहले वेस्टमिनिस्टर कोर्ट से और उसके पश्चात यूके के हाई कोर्ट द्वारा माल्या का प्रत्यर्पण तय किया गया। यही नहीं, यह भी तय हुआ कि वह अपने प्रत्यर्पण के विरुद्ध यूके के सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं कर सकता। ऐसे में यह माल्या को भारत लाया जाना तय है जो आज नहीं तो कल होकर रहेगा। इन सब के बीच जो बात सबसे दिलचस्प रही वह माल्या द्वारा सार्वजनिक मंचों पर की गई अपील थी, जिसमें वह बार-बार बैंकों का बकाया देने के लिए तैयार दिखा। माल्या के विरुद्ध सरकार की लड़ाई और मेहनत यह बताती है कि आर्थिक अपराध को लेकर सरकार की सोच और उसकी नीयत साफ़ है।
नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के खिलाफ सरकार ने 2018 में जाँच शुरू की। स्कैम सार्वजनिक होता उसके पहले ही दोनों भारत से भाग गए। दोनों के खिलाफ इंटरपोल का रेड कॉर्नर नोटिस जारी हुआ और नीरव मोदी को यूके में गिरफ्तार कर लिया गया। आर्थिक अपराध के खिलाफ सरकार की गंभीरता का ही नतीजा है कि नीरव मोदी 2019 से जेल में है और वहाँ की अदालतों में प्रत्यर्पण का केस भी हार चुका हैं। उसको भी भारत लाया जाना तय है।
नीरव मोदी के मामले में जो सबसे दिलचस्प बात रही वह थी दो भूतपूर्व न्यायाधीशों का नीरव मोदी को बचाने का प्रयास। सुप्रीम कोर्ट से रिटायर्ड जस्टिस मार्कण्डेय काटजू और मुंबई हाई कोर्ट से रिटायर्ड जस्टिस एएम थिप्से ने नीरव मोदी के इस दलील के पक्ष में गवाही दी कि यदि उसका प्रत्यर्पण हुआ तो उसके मामले की भारत में निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो सकेगी।
यह किसी भी भारतीय के लिए कल्पना से परे है कि वर्षों तक सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जज रह चुके लोग विदेशी अदालतों में भारतीय अदालतों के खिलाफ गवाही दे रहे थे। वहाँ की अदालत ने दोनों न्यायाधीशों द्वारा दी गई दलीलों को रद्दी की टोकरी में भले ही डाल दिया पर प्रश्न यह उठता है कि उनका इस भगोड़े से कैसा सम्बन्ध होगा जिसकी वजह से ये माननीय उसके पक्ष में विदेशी अदालत में गवाही दे आए? ऐसी क्या मज़बूरी रही होगी? बात यह भी नहीं है कि नीरव मोदी का अपराधी साबित होना बाकी था। यूके की अदालत में वह अपराधी साबित हो चुका था और ये माननीय केवल यह तय करना चाहते थे कि उसे भारत न भेजा जाए। ऐसे में यह प्रश्न सार्वजनिक विमर्शों में पूछा जाना चाहिए कि दोनों माननीय उसे बचाने का प्रयत्न कर रहे थे या किसी ने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा था?
मेहुल चोकसी इस समय डोमिनिका की जेल में है। उसे भारत लाने में सरकार के प्रयास कितने गंभीर रहे हैं वह हम सब देख चुके हैं। आर्थिक अपराधों और अपराधियों से निपटने की वर्तमान सरकार की कोशिश और मंशा संतोषप्रद रही हैं, इस बात को कोई नकार नहीं सकता। ऐसे में आशा करनी चाहिए कि जैसे-जैसे कानून मज़बूत होंगे, मामले अदालत में उठेंगे और उन पर त्वरित फैसले होंगे, आर्थिक वातावरण और पारदर्शिता न केवल बढ़ेगी बल्कि मज़बूत होगी और हमारी अर्थव्यवस्था, उद्योग और व्यापार के प्रति देशी विदेशी लोगों का विश्वास सुदृढ़ होगा।