बिहार दिवस (Bihar Diwas) के दिन जरा दिमाग पर जोर डालिए। याद करिए अगस्त 2022 में नीतीश कुमार के पलटी मारने के बाद से बिहार राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में किन कारणों से रहा है। शायद ही कोई अच्छा कारण आपको याद आए। हाल के दिनों में तो और भी बुरी हालत रही है। पहले शिक्षा मंत्री ने रामचरितमानस के जरिए जातीय फसाद खड़ा करने की कोशिश की, फिर तमिलनाडु में बिहार के श्रमिकों के साथ कथित हिंसा के दावे और उसके बाद पटना रेलवे स्टेशन पर ब्लू फिल्म चलने से मिला इंटरनेशल फेम। उससे थोड़ा पीछे चले जाएँ तो जहरीली शराब से मौतें जैसी वजहें राज्य के लिए सुर्खियाँ लेकर आईं थीं।
यही कारण है कि 22 मार्च 2023 को 111 साल के हुए राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के पास गौरवशाली अतीत की दुहाई देने के अलावा कुछ नहीं बचा था। नीतीश ने ट्वीट कर कहा, “बिहार दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ। बिहार का इतिहास गौरवशाली है और हम वर्तमान में अपने निश्चय से बिहार का गौरवशाली भविष्य तैयार कर रहे हैं। विकसित बिहार के सपने को साकार करने में भागीदारी के लिए मैं आप सभी का आह्वान करता हूँ। हम सब मिलकर बिहार के गौरव को बढ़ाएँगे।”
#बिहार_दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। बिहार का इतिहास गौरवशाली है और हम वर्तमान में अपने निश्चय से बिहार का गौरवशाली भविष्य तैयार कर रहे हैं। विकसित बिहार के सपने को साकार करने में भागीदारी के लिए मैं आप सभी का आह्वान करता हूं। हम सब मिलकर बिहार के गौरव को बढ़ाएंगे।
— Nitish Kumar (@NitishKumar) March 22, 2023
उनके कथित भतीजे तेजस्वी यादव (जिन्हें उनके समर्थक मुख्यमंत्री के तौर पर देखने को उतावले हुए हैं) ने लिखा, “बिहार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। गौरवशाली अतीत, समृद्ध विरासत, विभिन्न धर्मों की उद्गमस्थली, महापुरुषों की जन्मस्थली, लोकतंत्र की जननी, वीरों की कर्मभूमि, ज्ञान, सद्भावना और समरसता की पावन धरा बिहार का हम अपने निश्चय व जन भागीदारी से सुनहरा भविष्य तैयार कर रहे हैं।”
बिहार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) March 22, 2023
गौरवशाली अतीत,समृद्ध विरासत,विभिन्न धर्मों की उद्गमस्थली,महापुरुषों की जन्मस्थली,लोकतंत्र की जननी,वीरों की कर्मभूमि,ज्ञान,सद्भावना और समरसता की पावन धरा #बिहार का हम अपने निश्चय व जन भागीदारी से सुनहरा भविष्य तैयार कर रहे है।
जय हिंद,जय बिहार! pic.twitter.com/LV13km9Af9
बिहार के ही रहे ‘राष्ट्रकवि’ रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है;
तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के
पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के
पर जब दिखाने को कुछ न हो तो बड़े-बड़े तेजस्वी भी इतिहास का सहारा लेने लगते हैं। ये तो सामान्य मानव नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव हैं। लिहाजा येन केन प्रकारेण 2005 से बिहार की सत्ता में जमे हुए नीतीश कुमार ने बिहार दिवस पर अपने संदेश को बिहार के उस अतीत तक समेटकर रखा जो आज के बिहार के किसी व्यक्ति ने शायद ही देखा हो। वे बखूबी जानते होंगे कि अब उनकी साख भी नहीं बची, इसलिए भविष्य को लेकर भी उन्होंने गोलमोल ही बातें की। उनके डिप्टी के साथ तो खैर जंगलराज वाली विरासत ही है तो उनसे कुछ उम्मीद रखना भी बेमानी है।
भले राज्य सरकार ने बिहार दिवस पर तीन दिन का जलसा रखा हो, लेकिन भविष्य को लेकर नेतृत्व में जो शून्यता दिखती है, वह बिहार के आम लोगों के लिए भयावह है। यही कारण है कि 22 मार्च को बिहार से ज्यादा सोशल मीडिया में बिहार बंद (#23_मार्च_बिहार_बंद) चर्चा में रहा। बिहार के एक हिस्से से अलग मिथिला राज्य (Mithila Rajya) की माँग जोर पकड़ती जा रही है। बिहार दिवस के दिन कुछ लोग बिहारी आइडेंडिटी को खारिज करते हुए कह रहे हैं #MaithilNotBihari।
आखिर वह कौन सी वजह है कि राज्य का एक हिस्सा बिहार की पहचान से अलग होने को छटपटा रहा है। इस अभियान को आगे बढ़ा रहे संगठनों में से एक मिथिला स्टूडेंट यूनियन (MSU) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अनूप मैथिल ने ऑपइंडिया को बताया, “1912 में बिहार बनने से पहले मिथिला में कई चीनी मिल, जूट मिल, पेपर मिल एवं उद्योग-धंधे थे। मिथिला के पास अपनी विमानन कंपनी थी। दो एयरपोर्ट थे। बिहार बनने के बाद सभी चीजें एक-एक कर बंद कर दी गई और मैथिलों को मजदूर बनकर पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया गया। बिहार में रहकर मिथिला के साथ सौतेला व्यवहार हुआ है। हमारी भाषा मैथिली अष्टम अनुसूची में शामिल बिहार की एकमात्र भाषा है। लेकिन आज तक इसे द्वितीय राजभाषा नहीं बनाया गया है और न ही प्राथमिक शिक्षा में इसे शामिल किया गया। एक शब्द में कहें तो ‘जहिया से बिहार बनल, मिथिला के बहार घटल’।” अनूप मैथिल के अनुसार, “देश में बिहारी आइडेंटिटी एक गाली बन चुकी है, जबकि मैथिली आइडेंटिटी बताने पर हमें देश में सम्मान मिलता है।”
उल्लेखनीय है कि एक तबका ऐसा भी है जो मानता है कि अलग राज्य मिथिला की समस्याओं का समाधान नहीं है। लेकिन राज्य के नेतृत्व की दशा और दिशा ऐसी है कि बिहार के साथ जुड़े रहने पर भी उन्हें अपनी समस्याओं का समाधान होता नहीं दिखता। यह दशा और दिशा ही है, जिसके कारण बिहार पर अमेरिकी पोर्न स्टार केंड्रा लस्ट का ट्वीट तो चर्चा पा जाता है, लेकिन बिहार बोर्ड की टाॅपर बेटियाँ आयुषी नंदन और सौम्या शर्मा की बात नहीं होती।
तीन दशक से भले बिहार की बागडोर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नीतीश कुमार और लालू यादव के हाथों में रही है। लेकिन बिहार को इस स्थिति में पहुँचाने में अन्य राजनीतिक दल भी जिम्मेदार हैं। जेपी की वह संपूर्ण क्रांति भी, जिसका विष बिहार के हिस्से आया। यही कारण है कि बिहार दिवस आज बिहार बंद और मिथिला राज्य जैसे अभियानों में कहीं खो गया लगता है।