कहते हैं राजनीति में कोई किसी का मित्र या शत्रु नहीं होता। यह भी कहा जाता है कि शब्द दोधारी तलवार होते हैं जिसे लिखने वाला अपने हिसाब की बातें लिखने के लिए मनचाहे तरीके से इस्तेमाल कर सकता है। कई बार आदमी सही बात लिखते हुए एक दो शब्द छुपा जाता है जिससे दो विपरीत अर्थ सामने आते हैं।
एक व्यक्ति हैं संजय झा। कॉन्ग्रेस प्रवक्ता हैं। प्रवक्ता का मतलब होता है पार्टी की आधिकारिक बात को जनता के सामने रखना। कॉन्ग्रेस के क़रीबी माने जाते हैं, पार्टी के बड़े नेता भी माने जाते हैं। मैंने ‘माने जाते हैं’ लिखा है क्योंकि आज कल जिस तरह की बातें लिख रहे हैं, वो कॉन्ग्रेस के क़रीबी या नेता तो नहीं ही लिखेंगे। जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल संजय झा कर रहे हैं, उससे लगता है कि वो नाराज हैं, वो भी बहुत ज़्यादा।
हाल ही में नरेन्द्र मोदी ने मंच से एक सत्य बोला। सत्य यह था कि राजीव गाँधी भ्रष्ट व्यक्ति थे। इससे किसी को क्या आपत्ति होगी! राजीव गाँधी न सिर्फ भ्रष्ट थे, जो कि बोफ़ोर्स घोटालों से एक्सपोज हुए बल्कि अपनी माताजी की हत्या का बदला लेने के लिए पार्टी काडरों को सिखों के नरसंहार के लिए उकसाने वाले हत्यारे भी कहे जा सकते हैं। इसके अलावा भोपाल गैस कांड की लाशों का ख़ून भी राजीव गाँधी के शरीर पर नहीं तो हाथ पर तो ज़रूर है क्योंकि एंडरसन को देश से बाहर भागने का सरकारी मौका उन्होंने ही उपलब्ध कराया। समुदाय विशेष की महिलाएँ अगर हाल के दिनों तक तीन तलाक के कुत्सित परम्परा का भार उठाती घूम रही थीं, तो उसमें भी राजीव गाँधी ही केन्द्र में आते हैं।
जिस पार्टी का नारा ही प्रधानमंत्री को चोर कहते हुए लोकसभा चुनाव में जाने का है, वो अपने इतिहास को भूल कर मर्यादा और पद की गरिमा, मृतक को सम्मान आदि की बात कैसे कर सकती है। प्रधानमंत्री मोदी पर अपराध साबित होना तो छोड़िए, आरोप पर केस तक दर्ज नहीं हुआ है, लेकिन कॉन्ग्रेस के मुखिया, राजीव गाँधी के लाड़ले और लाडली के लिए ‘चौकीदार चोर है’।
ये बड़े घरों में पलने वाले लोग हैं। इन्हें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले इनके पिता ने पलट दिए थे, तो इस माहौल की परवरिश पाकर बड़े हुए बच्चे तो अपने हर शब्द को कानून ही समझेंगे। भले ही राजीव के 410 को राहुल ने 44 पर पहुँचा दिया, पर ऐंठन तो वही रहेगी न! आखिर, ये बच्चे अपने हर शब्द को सत्य क्यों नहीं मानेंगे? ये तो इनका विशेषाधिकार है क्योंकि इन्होंने न सिर्फ भारत को तीन (+१) प्रधानमंत्री दिए हैं, बल्कि चोरों को भारत रत्न तक से नवाज़ा है और डकैती को जस्टिफाय कर दिया है।
बाद में भारत की इमोशनल जनता कहने लगती है, “लेकिन यार वो मर गया, अब उसको घेरने से क्या फायदा!” वाह! मतलब लाखों-करोड़ों की दलाली, लाखों करोड़ों के घोटाले, हजारों सिखों की हत्या, विदेशी अपराधियों को मामा-चाचा समझ कर देश से बाहर निकलने का मौका देना और सिर्फ राजीव गाँधी की मौत से वो हर अपराध से मुक्त हो जाएँगे!
हिटलर, स्टैलिन, माओ, चर्चिल, ओबामा, बुश आदि में से कोई भी नरसंहारों के ख़ून से अपने आप को मुक्त नहीं कर सकता। इन सब ने राजनैतिक या निजी कारणों से जर्मनी, रूस, चीन, बंगाल, सीरिया, इराक़, अफ़ग़ानिस्तान आदि में नरसंहार किए हैं। इन्हें जो भी कारण देकर जस्टिफाय किया जाए, भले ही ओबामा को शांति का नोबेल दे दिया जाए, लेकिन तथ्य यही है कि किसी एक देश की जनता को खुश करने के लिए बंगाल के अकाल के दौरान बुद्धिमान माना जाने वाला चर्चिल लाखों बंगालियों की मौत का ज़िम्मेदार रहेगा।
ओबामा के हाथ में भी सीरयाई आबादी का रक्त है, बुश के हाथों पर भी लाखों निर्दोषों का ख़ून है। उसी तरह सत्ता का गलत इस्तेमाल करके 1984 के सिख हत्याकांड का, जिसे दंगा कह कर उसके दुष्प्रभाव को कम करने का नैरेटिव बनाया जाता है, रक्त राजीव गाँधी के हर लिबास पर रहेगा जो संग्रहालयों में टँगे हुए हैं। माता की हत्या का बदला पूरे समुदाय से लेना, एक राजनैतिक पार्टी द्वारा एक धर्म के लोगों को निशाना बनाना, और हत्यारों को मुख्यमंत्री, सांसद, कैबिनेट मंत्री बनाना, उन लाखों सिखों की सिसकती घावों में नमक छिड़कने जैसा है।
मोदी ने क्या गलत कहा? मोदी को भी तो हर न्यायालय से छूट मिलने के बावजूद चोर और हत्यारा कहने वाले वही लोग हैं जो अपने पिता का नाम उसके मुँह से सुन कर बिलख रहे हैं। राजीव गाँधी भले ही राहुल और प्रियंका के पिता हैं, तो एक पिता के तौर पर तो बच्चों को हमेशा परिवार के साथ खड़े रहना चाहिए, लेकिन वो पिता प्रधानमंत्री भी था, और दुर्भाग्य से चोर और हत्यारा भी। देश उनके पिता से बड़ा है और अगर ये दोनों देशभक्त हैं तो राहुल या प्रियंका को मोदी की बात सुन कर चुपचाप रोने के बाद, आँसू के घूँट पीकर, रैली में किसी और विषय पर भाषण देते रहना चाहिए था।
उन्होंने क्या किया? उन्होंने ट्वीट लिख कर समर्थन जुटाने की बात सोची, और सोशल मीडिया इन दोनों डिम्पलधारियों को उनके पिता का वह इतिहास भी बता रहा है, जो उन्हें याद भी नहीं होगा।
दूसरी बात यह है कि किसी की मृत्यु, चाहे जैसे भी हुई हो, उसके कारनामों को पब्लिक चर्चा में लाना तब तक सही है जब तक वो एक पब्लिक व्यक्ति था। अगर आप किसी के निजी संबंधों पर, उसकी पत्नी पर, उसकी माँ पर हमले करेंगे, जो किसी भी तरह से राजनीति से जुड़े नहीं; आप उन पर चोरी का आरोप लगाएँगे जो हर तरह से ईमानदार है, फिर तो वो भी आप के बाप, दादी और परनाना तक जाएगा ही। ये तो सीधा गणित है कि पोलिटिकल कैम्पेन में कीचड़ उछालने का हक़ सिर्फ एक पार्टी को नहीं है।
चूँकि राजीव गाँधी की हत्या राजनैतिक कारणों से हुई, तो इससे उनके पाप तो नहीं धुलते। हाँ, उनकी मृत्यु का मजाक नहीं बनाया जा सकता, लेकिन इतिहास में दर्ज ग़लतियाँ तो उन्हें हमेशा बुलाती रहेंगी। उन्हें तो उनके असामयिक मृत्यु ने कई फजीहतों से बचा लिया और कोर्ट के चक्कर काटने से वो बच गए, लेकिन उनके सर पर तमाम अपराध तो रहेंगे ही।
अब बात संजय झा जैसे नेताओं की जो अंग्रेज़ी में ट्वीट करते हुए ‘डेस्पिकेबल डेस्पराडो’ लिखते हैं। इसमें अनुप्रास अलंकार है। शायद इसीलिए भी संजय जी लिखते-लिखते नाम लिखना भूल गए कि आखिर वो घेर किसको रहे हैं। उनका ट्वीट कहता है, “जर्मनी में लोगों ने हिटलर को भुलाया नहीं है। लेकिन वो हिटलर और उसने जो मानवता के साथ किया, उस पर शर्मिंदा होते हैं। ऐसा ही प्रारब्ध इस नीच डकैत का भी इंतजार कर रहा है।”
In Germany, they have not forgotten Adolf Hitler. But they are ashamed of him and what he did to humanity.
— Sanjay Jha (@JhaSanjay) May 5, 2019
A similar fate awaits this despicable desperado.
संजय झा ने नाम तो नहीं लिखा, जबकि उस ट्वीट में अभी जगह और कैरेक्टर बचे हुए थे। संजय झा पढ़े-लिखे व्यक्ति की तरह नज़र आते हैं जिनकी शब्दावली में ‘डेस्पिकेबल’ और ‘डेस्पराडो’ जैसे शब्द हैं। फिर वो नाम लिखना क्यों भूल गए। पढ़े-लिखे लोग भूलते नहीं, जानबूझकर छोड़ देते हैं बातों को। जिस पार्टी ने मोदी को नाम लेकर दिन में दस बार कोसा हो, उसके संजय को नाम लिखने के लिए दिव्य दृष्टि की ज़रूरत नहीं।
फिर थोड़ा गणित का हिसाब लगाते हैं तो पता चलता है कि हिटलर से उनका मतलब राजीव गाँधी से है जिसने मनमानी भी की, और मानवता उसके कृत्यों से लज्जित भी है। कॉन्ग्रेस के अलावा पूरा देश इस बात से शर्मिंदा है कि बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है, और उस धरती के हिलने का मतलब होता है हजारों सिखों को काटना, मारना और ज़िंदा जलाना।
इसके बाद उन्होंने उस समय के आने की भविष्यवाणी की है जब इस ‘डेस्पिकेबल’ (जिसका मतलब होता है नीच, घटिया, निंदनीय, घृणित, तिरस्कार योग्य, नाली का कीड़ा, अधम, घिनौना, नफ़रत पैदा करने वाला आदि) ‘डेस्पराडो’ (जिसका मतलब होता है डकैत, लुटेरा, शोहदा, गुंडा, ठग, बदमाश, दुष्ट, शठ, गलाकाटू आदि) को भी वैसे ही याद किया जाएगा।
इन दोनों शब्दों के मैंने जितने भी मतलब लिखे हैं, उसके दायरे में कॉन्ग्रेस का लगभग हर बड़ा नेता आ जाएगा। इन दोनों शब्दों के अर्थों पर राजीव गाँधी बिलकुल सटीक उतरते हैं। उन्होंने समाज में घृणा भी फैलाई, निंदनीय कार्य भी किए, घिनौने नरसंहार को अपनी ‘अध्यक्षता’ में संचालित किया और डकैती तो इतनी की है कि अभी तक नई बातें सामने आ ही रही हैं।
संजय झा को ऐसी बातें नहीं लिखनी चाहिए थीं। वो अभी भी पार्टी में ही हैं, और उन्हीं राजीव गाँधी के परिवार की छत्रछाया में उनके जैसे लोग अपना भरण-पोषण कर रहे हैं। संजय झा के इस ट्वीट से पता चलता है कि वो जिस थाली में खाते हैं, उसी की क्वालिटी पर नकारात्मक ट्वीट लिखते हैं। उनकी यह चालाकी अभी तो किसी की पकड़ में नहीं आ रही क्योंकि मंदबुद्धि लोग कॉन्ग्रेस के शीर्ष पर आसीन हैं, लेकिन पता चलते ही इन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों को कारण निकाला जाएगा।
अब राजीव गाँधी को भ्रष्ट कहने पर दुःखी और नैतिकता का लबादा ओढ़े भारत की आम जनता को भी यह बताना ज़रूरी है कि हाल ही में अटल बिहारी बाजपेयी की मृत्यु पर इन्हीं कॉन्ग्रेसियों और उनके समर्थक पार्टियों के कार्यकर्ताओं से लेकर कई बड़े लोगों ने ज्ञान दिया था कि उनकी मौत से उनके पिछले कर्मों का हिसाब नहीं होता।
यही तर्क राजीव से लेकर नेहरू तक लगेगा। उनकी मृत्यु हो गई लेकिन उनकी हरकतों और नीतियों का परिणाम पूरा भारत आज भी भुगत रहा है। उनकी असमय हत्या उनकी गलत नीतियों, भ्रष्टाचार या नरसंहारों के पाप से उन्हें मुक्त नहीं करती। बल्कि ऐसी बातें तो नैतिक शिक्षा की किताबों में पढ़ाई जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने ही देश के साथ किए गए अपराधों के ज़िम्मेदारों को सरकारी गाड़ी में बिठाकर भगाना कितना गलत है।
अंत में संजय झा जी को नमन रहेगा कि उन्होंने सैम पित्रोदा की तरह चाटुकारिता नहीं दिखाई और राजीव गाँधी को ‘ग्रेट लीडर’ कह कर राहुल गाँधी के क़रीबी होने का दावा नहीं किया। सत्य बोलने वाले को डराया जा सकता है, लेकिन ज़्यादा समय तक चुप नहीं रखा जा सकता। संजय झा इस कार्य के लिए सराहना के पात्र हैं, देश को उन पर गर्व है और इसीलिए संजय झा जी को ‘नमन रहेगा’।