भारत में भारतीय न्याय संहिता (BNS) लागू होते ही जो सबसे महत्वपूर्ण बात उठ खड़ी हुई है, वह है घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानूनों की समीक्षा। घरेलू हिंसा कानून इस आधार पर बना था कि चूँकि महिलाएँ कमजोर होती हैं, इसलिए वही हिंसा का शिकार होती हैं। हालाँकि, काफी समय से यह भी देखा जा रहा है कि घरेलू कलह के कारण जीवनलीला समाप्त करने वालों में पुरुष भी शामिल हैं।
घरेलू क्लेश कैसे भी हो सकते हैं? वे माता-पिता से लेकर पत्नी तक से संबंधित हो सकते हैं। ऐसे में जो पुरुष घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं, उनकी रक्षा या संरक्षण के लिए कोई कानून क्यों नहीं है? कानून का कोई भी पक्ष इस पर बात क्यों नहीं करता है? बार-बार जब यह प्रश्न उठता है। समाज में यह भी मानसिकता है कि पत्नी से प्रताड़ित पुरुष को सहानुभूति नहीं, बल्कि हिकारत की दृष्टि से देखा जाता है।
ऐसे पुरुष को अपमानित किया जाता है। सामाजिक अस्वीकृति तथा कानून की असंवेदनशीलता के चलते ऐसे कई पुरुष या तो अपराध की तरफ चले जाते हैं या फिर अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं। कई ऐसे भी होते हैं, जो घुट-घुटकर अपना जीवन बिताते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर ऐसे पुरुषों के साथ न्याय क्यों नहीं होना चाहिए?
एक बात समझना आवश्यक है कि जैसे महिला कानूनों की माँग करना पुरुष विरोध नहीं होता, वैसे ही पुरुषों के लिए न्याय की बात करना महिलाओं का विरोध नहीं होता है। न्याय लिंग निरपेक्ष होना चाहिए। घरेलू हिंसा का कानून लिंग निरपेक्ष होना चाहिए। शादी कभी भी दो लोगों के बीच न होकर दो परिवार का मामला होता है।
कई मामलों में देखा गया है कि पुरुष को उसकी पत्नी और ससुराल वाले प्रताड़ित करते हैं। आखिरकार पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार बन जाते हैं। कुछ दुष्ट और आपराधिक प्रवृत्ति की महिलाएँ महिलाओं की रक्षा के लिए बने कानूनों का दुरुपयोग करती हैं। ऐसे में झूठे मामले सिर्फ पुरुषों को फँसाने के लिए ही नहीं, बल्कि वास्तविक पीड़ित महिलाओं के लिए भी खतरा ही हैं।
भारतीय न्याय संहिता में घरेलू हिंसा को लेकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय भी चिंता जता चुका है। 12 सितंबर 2024 को शीर्ष न्यायालय ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 और 86 पर चिंता जताते हुए कहा कि ये कानून आईपीसी की धारा 498A से जस से तस लिए गए हैं। न्यायालय ने कहा था कि विवाहित महिलाओं की हिंसा से रक्षा के लिए बने कानूनों का दुरुपयोग कुछ महिलाएँ करती हैं।
ऐसे कई मामले आए हैं। लगभग हर न्यायालय का कहना है कि महिलाओं के लिए बने कानूनों का दुरुपयोग रोका जाए। पुरुष आयोग संस्था की अध्यक्ष होने के नाते मैं भी यही मानती हूँ कि इन कानूनों का दुरुपयोग रोका जाए, क्योंकि कानूनों के दुरुपयोग से पीड़ित महिलाओं के प्रति भी गुस्सा बढ़ता है। लोगों में यह धारणा बन जाती है कि हर पीड़ित महिला झूठ बोल रही है।
परिवार बचाने के लिए आवश्यक है कि इसमें परिवर्तन हो। केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने घोषणा भी की है कि भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 और 86 की समीक्षा की चर्चाएँ चल रही हैं। यही कारण है कि हमें अपने वोट पर गर्व होना चाहिए और मोदी जी और भाजपा को हमें धन्यवाद देना चाहिए कि कम-से-कम उन्होंने मामले को संज्ञान लिया। दूसरी सरकारें तो इस पर सोचा तक नहीं था। पुरुष आयोग संस्था के अध्यक्ष के रूप में मैं इस संबंध में कानून मंत्री से भी भेंट करने वाली हूँ।