देश की सबसे ‘वरिष्ठ’ पार्टी, यानी कॉन्ग्रेस ने अब अपनी घटिया मानसिकता का परिचय देते हुए निर्दोषों को अपराधी घोषित करने का बीड़ा उठाया है। कॉन्ग्रेस के इस कुकृत्य में कुछ ऐसे लिबरल और वामपंथी भी शामिल हैं, जो ‘Cyber Bullying’ में दक्ष हो गए हैं। इन्होंने इसके लिए एक नायाब तरीका अपनाया है। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए, अगर शशि (बदला हुआ नाम) किसी के बगीचे से चोरी-छिपे आम तोड़ कर खा जाता है और उसके नाना की बहन के दामाद के भांजे के पास जियो (Reliance Jio) का सिम है, तो आम की चोरी का दोष मुकेश अम्बानी पर मढ़ दिया जाता है।
हमने देखा है कि किस तरह से एक गिरोह विशेष स्क्रीनशॉट्स शेयर कर के किसी भी अपराधी के भाजपाई होने का दावा सिर्फ़ इसीलिए कर देता है, क्योंकि उसने 2 साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई पोस्ट लाइक किया था। अगर किसी पर कुछ आरोप भी हों, तो उसके भाई-भतीजे और फूफे की फेसबुक प्रोफाइल खंगालने के बाद मिले लेख के आधार पर उस पर भाजपाई या संघी होने का ठप्पा लगा दिया जाता है। इस खेल के ये माहिर खिलाड़ी हो चुके हैं।
ताजा मामला भी कुछ ऐसा ही है। हालाँकि, जरा अजीब है। गुरुग्राम में हुई एक घटना में जबरदस्ती पीएम मोदी, भाजपा और रिलायंस को ठूँस देने की कोशिश की गई है। कॉन्ग्रेस ने क्या किया, इसे समझने से पहले गुरुग्राम में हुई उस घटना को जान लेना आवश्यक है, जो तेज़ी से यूट्यूब और सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इस वीडियो के अनुसार, गुरुग्राम में कुछ युवतियों ने मिलकर एक महिला की खिंचाई की। उनका आरोप था कि उक्त महिला ने युवतियों के छोटे कपड़ों पर तंज कसते हुए, वहाँ उपस्थित लोगों से उनका रेप करने को कहा था। ये घटना का एक पक्ष है। उक्त युवतियों ने महिला की खिंचाई करने के बाद वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। साइबर वर्ल्ड में जैसा कि आम है, उस महिला को गालियाँ पड़ीं, उसकी सोच को ‘हीन’ बताते हुए युवतियों के साथ सहानुभूति जताई जा रही है।
हालाँकि, अगर उस महिला ने ऐसा कुछ भी कहा है, जैसा युवतियों ने दावा किया है, तो इस बयान की जितनी भी निंदा की जाए कम है। लेकिन उसी समय युवतियों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए था कि जिस महिला का चेहरा वो सोशल मीडिया पर वायरल कर रही हैं। अगर, उस के साथ इसी आधार पर भविष्य में कुछ गलत होता है, तो उसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा? यदि राह चलते हुए लोग उसे पहचान कर इसी तरह की ‘Bullying’ करने लगें, तो क्या यह गलत नहीं है? यहाँ इस घटना के अलग-अलग पक्ष हो सकते हैं और सही-गलत का निर्णय उसी आधार पर किया जा सकता है, लेकिन इस मामले में एक अन्य महिला भी कूदीं हैं और उनके बारे में ये कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि उन्होंने इस घटना को राजनीतिक रंग से पोत दिया।
‘Rape Supporter Aunty’ ‘s husband is a Modi supporter , follows various sanghi FB pages , shares posts by hate mongers & fake news pedlars like Anshul Saxena & has a Reliance Connection !
— Pankhuri Pathak پنکھڑی (@pankhuripathak) May 1, 2019
Understandable what gave ‘Rape Supporter Aunty’ the guts to do what she did . pic.twitter.com/ScHnjL5b7X
यह भी जानने लायक बात है कि क्या एक परिवार में सभी सदस्यों की विचारधारा, राजनीतिक रुझान और पसंद-नापसंद समान हो सकती हैं? अगर किसी घर में पति भाजपा समर्थक है, तो क्या पत्नी कॉन्ग्रेस समर्थक नहीं हो सकती है? अगर एक भाई मुंबई इंडियंस का फैन है, तो दूसरा कोलकाता नाइट राइडर्स का फॉलोवर क्यों नहीं हो सकता है?
किसी परिवार के एक सदस्य की विचारधारा के आधार पर ही उसी परिवार के दूसरे सदस्य को दोषी ठहरा देना किस प्रकार का चलन है? वो भी तब, जब कि उस घटना में उस विचारधारा का कुछ योगदान ही न हो। एक झूठ होता है, किसी को जबरन संघ, भाजपा और रिलायंस समर्थक घोषित कर देना। दूसरा झूठ हुआ, इन तीनों में लिंक ढूँढ कर, इसे बलात्कारी मानसिकता से जबरन जोड़ देना। इन सबसे ऊपर, तीसरा झूठ हुआ यह मान लेना कि परिवार में सबकी विचारधारा समान है।
समाजवादी पार्टी से कॉन्ग्रेस में आईं पंखुड़ी पाठक वर्तमान में कॉन्ग्रेस पार्टी की मीडिया पैनलिस्ट हैं। ‘लड़के हैं, ग़लती हो जाती है’ से लेकर ‘लड़की है, ग़लती हो जाती है’ तक के उनके सफ़र में उन्होंने कॉन्ग्रेस की मानसिकता को सिरे से आत्मसात किया है। अब जानते हैं कि पंखुड़ी पाठक ने आखिर किया क्या है? दरअसल, उन्होंने एक ट्वीट किया, जिसमें गुरुग्राम प्रकरण वाली महिला की इस कथित सोच के लिए उनके पति को ज़िम्मेदार ठहराया है। उन्होंने उस महिला के पति का सोशल मीडिया एकाउंट खंगाला और फिर ये साबित करने की कोशिश की है कि इस महिला ने अपने पति की सोच के कारण उन युवतियों से कथित तौर पर ऐसा कहा। पंखुड़ी पाठक ने अपने ट्वीट में लिखा:
“बलात्कार समर्थक आंटी के पति मोदी समर्थक हैं। वह फेसबुक पर विभिन्न प्रकार के संघी पेजों को फॉलो करते हैं। घृणा फैलाने वालों के पोस्ट्स शेयर करते हैं, फेक न्यूज़ फैलाने वाले अंशुल सक्सेना के पोस्ट शेयर करते हैं और हाँ, रिलायंस के साथ भी उनके कुछ कनेक्शन हैं। अब पता चलता है कि ‘बलात्कार समर्थक आंटी’ के अंदर ऐसा बोलने की हिम्मत कहाँ से आई।”
पंखुड़ी पाठक ने अपनी ट्वीट्स के साथ कुछ स्क्रीनशॉट्स भी शेयर किए, जिसमें उक्त महिला के पति शांतनु चक्रवर्ती ने ‘जन औषधि योजना’ का पोस्टर लगा रखा था और उनकी पिछली जॉब्स की मदद से यह दिखाया कि वो कभी रिलायंस के डिस्ट्रीब्यूशन में कार्य करते थे। इसके अलावा, पंखुड़ी पाठक ने एक स्क्रीनशॉट के माध्यम से दिखाया है कि उन्होंने अंशुल सक्सेना का पोस्ट शेयर किया था।
इन सब बातों से तीन चीजें पता चलती है। पहली, अब तक इस मामले में उक्त महिला के पति शांतनु पर किसी भी तरह का कोई आरोप नहीं लगा है, फिर भी जबरदस्ती उनका नाम इसमें घसीटा जा रहा है। दूसरी, क्या इस तरह से किसी के प्रोफाइल पर बेवजह जाकर स्क्रीनशॉट्स लेना और फिर उसे वायरल कर लोगों को उनके खिलाफ उकसाना तार्किक है? अगर वह महिला कुछ बोलने की दोषी हैं भी, तो इसमें भाजपा, आरएसएस और रिलायंस का मनगढंत सम्बन्ध जोड़कर, उन्हें किस तरह से दोषी ठहरा दिया गया है?
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा के 11 करोड़ सदस्य हैं। अगर इन सबके रिश्तेदारों को भी मिला दें, तो इस परिभाषा के हिसाब से देश का हर व्यक्ति किसी न कसी तरह से भाजपा समर्थक निकल आएगा। यदि कॉन्ग्रेस नेता राजीव शुक्ला पर कोई आरोप लगता है, तो क्या उसके लिए भाजपा को इस वजह से ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है कि केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद उनके क़रीबी रिश्तेदार हैं? क्या तहसीन पूनावाला पर लगे आरोपों के लिए भी भाजपा को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, क्योंकि उनके भाई शहजाद पूनावाला भाजपा नेताओं के साथ दिखते हैं और उनका पक्ष लेते रहे हैं? हर चीज में भाजपा का हाथ दिखाने के लिए किसी की ‘Stalking’ करना क्या उसकी सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं है?
जिस तरह से इस प्रकरण में कुछ युवतियों व एक महिला के बीच हुई बहस के लिए भी मोदी और रिलायंस को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की गई है, उससे पता चलता है कि मुद्दों के अभाव से जूझता विपक्ष, बीच चुनाव में अब बौखलाहट के मारे इसी तरह के हथकंडों के सहारे प्रचार अभियान चला रहा है। पंखुड़ी पाठक ने यह भी साबित करने की कोशिश की है कि बलात्कार के लिए उकसाना संघी और भाजपाई सोच है। उनसे पूछा जाना चाहिए कि यह निष्कर्ष उन्होंने किन तथ्यों के आधार पर निकाला है? क्या केंद्र सरकार की जनहित में जारी योजनाओं के बारे में जागरूकता फैलाना भी बलात्कारी सोच की श्रेणी में आता है? पंखुड़ी पाठक जैसी युवा राजनीतिज्ञों से इस तरह की अपेक्षा नहीं थी, लेकिन वोट कटवा कॉन्ग्रेस की सोच आज इसी प्रकार के ‘भटके हुए’ मासूम नेताओं के सहारे अपना अस्तित्व तलाश रही है।