2018 का साल शुरू होते ही माहौल बनाया जाने लगा था कि मंदिरों में बलात्कार होते हैं क्योंकि जम्मू के कठुआ में एक मामले में मंदिर के पुजारी और उसके बेटे-भतीजे पर एक 8 साल की लड़की के रेप का आरोप लगा। हालाँकि, इस केस का एक आरोपित विशाल जंगोत्रा निर्दोष पाया गया। ग्रामीणों का कहना था कि लड़की के अपहरण के बाद मंदिर में छिपाया ही नहीं जा सकता। लेकिन, तब तक मंदिरों को बदनाम करने वाले इस काम में आगे निकल चुके थे।
हाल ही में मायावती की अनधिकृत बायोपिक कही जा रही फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ में ऋचा चड्ढा के मुख्य किरदार के माध्यम से दिखाया गया है कि मंदिरों में दलितों को प्रवेश नहीं दिया जाता है।अब जब देश के लाखों मंदिर बर्बाद हो चुके हैं, कइयों की मरम्मत के लिए रुपए नहीं हैं और जिनके पास हैं वो सरकार के पास चले जाते हैं – वामपंथी-इस्लामी गठजोड़ ने बचे-खुचे मंदिरों को बदनाम करने का ठेका ले लिया है।
बस यही ‘सॉरी आसिफ’ प्रकरण का सार है। बच्चे की जिस तरह से पिटाई की गई, उसका कोई समर्थन नहीं कर सकता। उसे डाँट कर वहाँ से भगाया जा सकता था या फिर पुलिस को सूचित किया जा सकता था। दो लोगों ने उसकी पिटाई कर दी और वीडियो वायरल हो गया। मामला गाजियाबाद के डासना स्थित देवी मंदिर का है। वीडियो वायरल होने के बाद स्वरा भास्कर सरीखे सेलेब्रिटीज ने इस ट्रेंड में भागीदारी सुनिश्चित की।
कठुआ वाले मामले के बाद भगवान शिव के त्रिशूल पर कंडोम की तस्वीर बना कर वायरल किया गया था। अबकी बाबासाहब भीमराव आंबेडकर द्वारा एक बच्चे को चुल्लू से पानी पिलाने की तस्वीर वायरल कर लिखा गया कि यहाँ पानी पीने का संघर्ष पुराना है। इसकी तुलना कथित जमींदारी प्रथा से कर के दलितों को हिन्दुओं से अलग दिखा कर मुस्लिमों के साथ उनकी एकता प्रदर्शित की है। ‘भीम आर्मी’ जैसे दलों के नेता आसिफ से मिलने पहुँचने लगे।
‘भीम आर्मी’ वाले मीडिया के सामने आकर बोलने लगे कि दलितों का मंदिरों में प्रवेश पहले से ही वर्जित है। जबकि वहाँ के स्थानीय लोगों का कहना है कि नाबालिग आसिफ मंदिर के भीतर पानी पीने क्यों आया जब बाहर आसपास कई नल थे? मंदिर में कई बार डकैती हो चुकी है। एक हिन्दू नेता की हत्या हो गई थी। एक महंत को जान की धमकी मिलती रहती है। ऐसे में एक मुस्लिमों के प्रभाव वाले इलाके में एक भी ऐसी मस्जिद नहीं थी, जहाँ आसिफ पानी पी पाता?
क्या मंदिर प्याऊ हैं, जहाँ कोई भी आकर पानी पी ले? मंदिर में आने के कुछ तय नियम-कानून होते हैं। वहाँ लोग स्नान करने के बाद भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं। मंदिर प्रशासन के कायदों के हिसाब से चीजें होती हैं। क्या कल को आसिफ को शौच लग जाए तो वो किसी दूसरे मजहब या धर्म के पवित्र स्थल में कर देगा और बाद में इसे ‘स्वच्छ भारत’ से जोड़ दिया जाएगा? आसिफ को अगर किसी ने भेजा था, तो उसका पता लगाया जाना चाहिए।
एक नाबालिग के नाम पर राजनीति नई नहीं है। शाहीन बाग़ आंदोलन के समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस तरफ लोगों का ध्यान दिलाया भी था कि कैसे पुरुष खुद रजाई में सो रहे हैं और महिलाओं को सड़क पर भेज दिया गया है। बिलकिस दादी से लेकर कई महिलाओं की तस्वीरें वायरल की गईं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी तस्वीरें बिकती हैं। महिलाओं, खासकर बुजुर्गों, के नाम पर सहानुभूति आती है।
JNU में ऐसे ही एक दिव्यांग छात्र को आगे कर के पोस्टर बॉय बना दिया गया था और उसके बहाने दिल्ली पुलिस पर निशाना साधा गया था। हाल ही में हजारीबाग की तस्वीर वायरल हुई, जहाँ करीब एक दर्जन बच्चों को सड़क पर नमाज पढ़ने भेज दिया गया और उनका स्पीड ब्रेकर की तरह उपयोग किया गया। बसों से लेकर बाइक्स तक रुके रहे। अगर बच्चों की गलती नहीं है तो उन्हें आगे कर के कौन प्रोपेगंडा की फसल काटना चाह रहा है?
आखिर क्यों सॉरी आसिफ? ये बात उसके अम्मी-अब्बू कहें, जिन्होंने उसे सिखाया नहीं कि मंदिर में बिना मतलब घुस कर कुछ भी नहीं शुरू कर देते। ये बात वहाँ का मुस्लिम समाज कहे जिन्होंने मस्जिदों में पानी पीने की व्यवस्था नहीं की। अगर की, तो आसिफ को बताया नहीं। आसिफ को सॉरी वो सेलेब्रिटीज बोलें, जिन्हें लगता है कि मंदिरों ने उनकी कमाई खा ली है और उन्हें वही सब करना चाहिए, जैसा बॉलीवुड के लोग चाहते हैं।
मैं किसी को पीटने के पक्ष में बिल्कुल नही हूँ किंतु ये सत्य है कि विशेष धर्म के 14-20 साल के लड़के मंदिरो में चोरी करने , मंदिरो पर पेशाब करने , मंदिर जाने वाली लड़कीयो के साथ छेड़छाड़ करने के लिए जाते .. मैं इसकी प्रत्यक्ष दर्शी हूँ pic.twitter.com/MQ36HgYLAp
— Dr. Richa Rajpoot (@doctorrichabjp) March 15, 2021
हिन्दू शर्मिंदा नहीं होगा क्योंकि ये मामले प्यास और पानी से जुड़ा ही नहीं हुआ है। हिन्दू सॉरी इसीलिए नहीं बोलेंगे, क्योंकि कश्मीर में उनके नरसंहार के बाद भी बॉलीवुड का एक डायरेक्टर कहता है कि अपना नरसंहार करने वालों को ही सॉरी बोलो। हिन्दुओं को कोई सॉरी बोलने को इसीलिए न कहे, क्योंकि डासना में जो हुआ वो एक स्थानीय मारपीट थी जिसे सांप्रदायिक रंग देकर मंदिर को बदनाम करने वाला नैरेटिव गढ़ा गया।
उस मंदिर में अक्सर मुस्लिम समाज के लोग आते हैं और हिन्दू बहू-बेटियों के साथ छेड़खानी करते हैं – ऐसा वहाँ के स्थानीय लोगों और महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती का भी कहना है। जब निर्भया मामले में एक नाबालिग बलात्कार कर सकता है तो फिर क्या जहाँ इस तरह की घटनाएँ आम हैं, वहाँ के लोग ऐसे किसी लड़के पर उसकी हरकतों को देख कर शक नहीं कर सकते? 15 साल का लड़का पढ़ा-लिखा भले न हो, उसे आसपास की समझ तो होती है।
दोनों पक्षों के सामने आने से पहले ही ‘सॉरी आसिफ’ ट्रेंड होने लगता है, मीडिया उसका इंटरव्यू लेने लग जाता है, ‘भीम आर्मी’ उसके घर पहुँच जाती है और मंदिरों के विरोध में प्रोपेगंडा फैलाया जाता है – क्या ये सब कुछ ही देर में अचानक हो गया? इस पूरे प्रकरण में दूसरे पक्ष की एक ही गलती है कि उसने लड़के की पटाई की। ये नहीं होना चाहिए था। जैसा कि महंत यति ने सवाल पूछा – मंदिरों में डकैती होती थी तब वामपंथी मीडिया पोर्टल्स कहाँ थे?
ऐसे कृत्यों से सांप्रदायिक तनाव बढ़ता है। राम मंदिर को उन्होंने घृणा का प्रतीक साबित करने की लाख कोशिशें की, लेकिन जनभावनाओं के आगे सफल नहीं हो पाए। इसीलिए, अब किसी भी मंदिर, संत या हिन्दू एक्टिविस्ट को लेकर पूरे समुदाय को शर्मिंदा महसूस करने का ज्ञान दिया जा रहा है। नहीं, हिन्दू सॉरी नहीं बोलेगा। हिन्दू समुदाय शर्मिंदा नहीं है। आसिफ को उसके परिवार और मुस्लिम समाज सॉरी कहे, जिन्होंने उसे सिखाया नहीं कि मंदिर के नियम-कायदे क्या होते हैं।