नमस्कार, मैं भारत का वामपंथ हूँ, सल्फेटिया वामपंथ! भले ही दक्षिणपंथी ट्रम्प के समर्थकों ने अमेरिकी संसद पर हमला कर दिया, पर आज मैं आह्लादित हूँ कि उनमें से एक के हाथों में तिरंगा भी था। अब मैं आराम से उस तिरंगाधारी को RSS का ब्राह्मणवादी, पितृसत्तात्मक, भगवा आतंकी बोल कर, अपने लिब्रांडू समाज के व्हाट्सएप्प ग्रुपों में छा जाऊँगा। वैसे भी किसान आंदोलन में मेरे इच्छाधारी प्रदर्शनकर्मी योगेन्द्र यादव के दाने के बाद भी, कुछ खास होता नहीं दिख रहा।
पर मैं तो भारत का सल्फेटिया वामपंथ हूँ, मुझे तो चाहिए आग, रक्त, चिंगारी और बारूद ताकि मैं उनसे अपना पोषण पाता रहूँ। मैं ही तो अपनी दिमागी लकवाग्रस्त संतान ‘द वायर’ की वो दोगली पत्रकारिता हूँ जहाँ मैं कैपिटोल अटैक पर यह कहता पाया जाता हूँ कि तैयारी महीनों की थी, और पुलिस हाथ मलती रह गई, लेकिन मैं सारे सबूतों के मेरे चश्मे के शीशों के भीतर तक सटा कर दिखाने के बाद भी दिल्ली के हिन्दू विरोधी दंगों की प्लानिंग में ताहिर हुसैन, फारूक फैजल की मौजूदगी, मुस्लिम घरों और मस्जिद की छतों के ऊपर पत्थरों का ढेर कभी देख नहीं पाता।
मैं भारत का ‘दो रुपिया दे दो न कामरेड, बीड़ी पीनी है कामरेड’ कह कर गिड़गिड़ाता जेएनयू का वो नालायक माओवंशी हूँ जो ब्लैक लाइव्स मैटर पर घंटे में सात बार स्खलित हो रहा था, और अमेरिकी संसद पर हुए इस प्रदर्शन को देख कर अलीगढ़ के लाल कुआँ वाले हकीम उस्मानी के दवाखाने की तरफ भागता पाया जाता हूँ।
मैं वो फेसबुकिया वामपंथन भी हूँ, जो ब्लैक लाइव्स मैटर के दंगों और लूट को सिर्फ इसलिए जस्टिफाय कर रही थी क्योंकि उसे कूल माना जा रहा था। मैं वो फेसबुकिया वामपंथन हूँ जो ब्लैक लाइव्स मैटर पर रंगभेद का ज्ञान देती हूँ, जबकि मेरी पूरी उम्र फाउंडेशन मार कर चेहरे को गोरा करने में सिर्फ इसलिए चली गई क्योंकि सॉफ्टवेयर इंजीनियर के प्रेम का और बैंक पीओ से विवाह के दोहरे आनंद का कोई जोड़ा नहीं है। मेरी सारी एक्टिविज्म तब गायब हो जाती है जब मैं सोशल मीडिया पर अपने साँवलेपन को फिल्टर के गोरेपन में छुपा लेती हूँ क्योंकि बैंक पीओ को गोरी लड़की चाहिए, और मुझे बैंक पीओ चाहिए!
मैं वो फेसबुकिया चिरकुट हूँ जिसे यह नहीं पता कि दूध जानवर से मिलता है न कि मदर डेयरी से, पर मैं वैश्विक मुद्दों पर सबसे पहले प्रोफाइल पिक्चर बदल कर काला कर लेता हूँ। मेरी वामपंथी ठरक मुझे वामपंथनों की कविताओं पर “आ हा हा! क्या लिखा है आपने… आप बस प्रेम लिखती हैं… आपके शब्द जैसे कि भोर की पहली किरण, जैसे कि घास पर टिकी ओस की बूँद, जैसे शांत नदी की सतह से उठती धुंध… आपने जो लिखा, उससे बेहतर क्या लिखा जाएगा!” जैसी बातें लिखने को मजबूर करती हैं, और इसी चक्कर में मैं इन्स्टाग्राम पर अमेरिकी लड़कियों के पोस्ट के नीचे ट्रम्प को गरियाता नजर आता हूँ कि कहीं उनकी निगाहों में आ जाऊँ। लेकिन खराब अंग्रेजी के कारण ‘नाइस मीटिंग यू, कीप इन टच’ को ‘नाइस मीटिंग, कीप टचिंग’ लिख कर वैसी गालियाँ सुनता हूँ जिसका अर्थ मुझे अर्बन डिक्शनरी पर खोजना पड़ता है, जिसे पढ़ कर मैं आह्लादित होता हूँ कि ‘चलो, गाली भी तो इंग्लिश में दी है लड़की ने, नोटिस तो किया कम से कम!’
मैं भारत का वो लम्पट पत्रकार हूँ जो सीलमपुर, मौजपुर, जाफराबाद, मेरठ, लखनऊ, फुलवारीशरीफ आदि में हो रही पत्थरबाजी, आगजनी, इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दुओं को जिंदा जला दिए जाने की घटनाओं को छिटपुट और प्रोपेगेंडा तक कहता हूँ, लेकिन अमेरिका में हो रहे प्रदर्शन को इसलिए हिंसक बताता हूँ क्योंकि वो तो ट्रम्प के समर्थक थे, तो उन्हें विरोध का अधिकार कैसे दे दिया जाए!
मैं बंगाल का वो मंत्री हूँ जो धूलागढ़, मुर्शिदाबाद, मालदा, बर्धमान आदि के दंगों और आगजनी को सिर्फ इसलिए होने देता रहा क्योंकि मुझे एक समुदाय का वोट चाहिए, लेकिन अमेरिकी संसद पर हुए प्रदर्शन में मैं RSS की साजिश सिर्फ इसलिए देख लेता हूँ क्योंकि छः दिसम्बर को बाबरी ध्वस्त की गई थी, और यह हमला छः जनवरी को हुआ था।
After demolishing 𝘀𝗲𝗰𝘂𝗹𝗮𝗿𝗶𝘀𝗺 on 𝟲𝘁𝗵 𝗗𝗲𝗰 in India, the covert force of Reserved Secret Service (RSS) went to Capitol Hill, with Indian flag 🇮🇳 on 𝟲𝘁𝗵 𝗝𝗮𝗻 to reece how to demolish 𝗱𝗲𝗺𝗼𝗰𝗿𝗮𝗰𝘆#Shameful
— Md Ghulam Rabbani (রাব্বানী) (@GhulamRabbani_) January 7, 2021
⑥𝘿𝙚𝙘 ⑥𝙅𝙖𝙣 pic.twitter.com/qTJ8pQOsri
आज मैं सिर्फ इसलिए खुश हूँ क्योंकि उस तिरंगे वाले के कारण मैं खुल कर कह सकता हूँ कि वो मोदी का समर्थक था जो कि स्वभाववश स्वतः हिंसक होते हैं। मैं अपने किसी छुटभैया फेसबुक मित्र को वीडियो पर बुला कर इस बात पर चर्चा कर सकता हूँ कि कैसे भारत की मोदीवादी जनता के भीतर के फासीवाद ने राम मंदिर निर्णय पर ह्वाइट हाउस के सामने भगवा झंडा लहराने से ले कर छः जनवरी को हुए अमेरिकी संसद पर हमले में तिरंगा लहराने तक एक प्रमुख भूमिका निभाई है। मैं किसी रैंडम बयान को निकाल कर उसे मोदी से जोड़ सकता हूँ कि ऐसे ही बयानों के कारण इस तरह की हिंसा होती है।
मैं वो विलक्षण वामपंथी हूँ जो ‘साड्डा कुत्ता कुत्ता, त्वाड्डा कुत्ता टॉमी’ की अवधारणा से चलते हुए भारत के आतंकवादियों को उनके मुस्लिम होने के कारण, कभी हेडमास्टर का बेटा तो कभी धोनी का फैन बताता फिरता हूँ, लेकिन अमेरिका में हुए एक प्रदर्शन से मेरी अधोजटाएँ ऐसी सुलगती हैं, और अंग विशेष में ऐसा मीठा दर्द उठता है कि मुझे वो शेर याद आ जाता है:
बैठता हूँ तो दर्द उठता है,
दर्द उठता है बैठ जाता हूँ
मैं भारत का सल्फेटिया वामपंथ हूँ जो लड़कियों के खड़े हो कर मूत्र त्याग करने के अधिकार के लिए चर्चा करता है और पुरुषों को गर्भवान बनाने की वकालत करता है। क्या ये तर्क आपको नहीं बताता कि आज मैं इस प्रदर्शन को हिंसा और तिरंगे झंडे की उपस्थिति को ट्रम्प के तख्तापलट की साजिश में मोदी का सायलेंट सहयोग क्यों कह रहा हूँ?
नमस्कार