तमाम देश हैरान हैं। अमेरिका, इजराइल, ब्रिटेन, जैसी शक्तियाँ भी कोरोना वायरस की महामारी के सामने नतमस्तक हैं। लेकिन एक खास समुदाय है, जो स्वयं को इस वायरस से अजेय समझते हुए चल रहा है। अगर ऐसा ना होता तो भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण का ग्राफ अचानक से इस तरह उछाल भी नहीं मारता।
दिलचस्प बात यह है कि इस समुदाय विशेष ने नागरिकता कानून, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर आदि चीजें महज चंद फेसबुक और ट्विटर पोस्ट से समझकर इसके खिलाफ देशव्यापी धरने का हल्ला बोल दिया था। संविधान, शासन, व्यवस्था, सत्ता सबको नकारते हुए इस विशेष वर्ग ने दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देशभर में उत्पात मचाए रखा। और ऐसा करने के लिए उन्हें सत्ता विरोधियों का बस एक इशारा ही काफी था।
लोग हैरान रह गए कि जिस नागरिकता कानून को समझने में बड़े-बड़े राजनीतिशास्त्री, कानून के ज्ञाता और कानून निर्माताओं ने अच्छा-खासा समय लगा दिया, आखिर उसे शाहीनबाग़ में बैठी बिरियानी के साथ अचार माँगने वाली 75 साल की बुजुर्ग महिलाओं ने बस एक झटके में कैसे समझ लिया?
फिर भी, कुणाल कामरा, अनुराग कश्यप, स्वरा भास्कर के ट्वीट पढ़कर नागरिकता कानून की बारीकियाँ समझ लेने की इस अनोखी क्षमता के आगे देश तीन महीने से ज्यादा समय तक नतमस्तक रहा। लेकिन सवाल यह है कि इस उन्नत IQ क्षमता के लोगों को प्रधानमंत्री मोदी की मात्र 21 दिन तक अपने-अपने घर पर रहने की यह अपील समझने में आखिर इतनी मशक्कत क्यों करनी पड़ रही है?
21 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन के बावजूद मुस्लिम समुदाय निरंतर नमाज पढ़ने से लेकर अपनी सामान्य दिनचर्या में नजर आ रहा है। इसी बीच दिल्ली में तबलीगी जमात के मरकज की सबसे बड़ी नौटंकी का दृश्य भी सामने आ गया। लेकिन मुस्लिम समुदाय अभी तक अपनी हठ पर नजर आ रहा है। मौलवी ही लोगों को नमाज अदा करने लिए मस्जिद में एकत्रित होने और 21 दिन के लॉकडाउन के नियमों को तोड़ने के लिए लोगों को भड़काते हुए नजर आ रहे हैं।
होली के दौरान जब देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने लोगों से अनावश्यक रूप से बाहर ना निकलने जैसी अपील की थी, उसके ठीक बाद कुछ वीडियो सामने आए। नमाज के लिए जुटी हुई भीड़ से टीवी एंकर यह सवाल करते हुए देखे गए कि क्या उन्हें डर नहीं लगता वायरस के संक्रमण से? इसके जवाब में कई प्रकार के मजहबी कारण, जो कि निसंदेह बेहद बेवकूफाना थे, सुनने को मिले। कुछ नमाजियों ने कोरोना को अल्लाह का अजाब बताया, जिसे आज नहीं तो कल आना ही था, तो कुछ ने कहा कि यह ताबीज पहनने से भाग जाएगा। यहाँ तक कि शाहीनबाग के बुद्धिजीवी वर्ग ने भी कोरोना पर अपनी राय रखते हुए कहा कि मौत तो एक न एक दिन आनी ही है।
लेकिन कोरोना के बढ़ते हुए मामलों के साथ मजहब का सबसे वाहियात चेहरा अब सामने आ रहा है। इंदौर जैसी घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं। संवेदनशील इलाकों में डॉक्टर और पुलिसकर्मियों पर थूका जा रहा है। तबलीगी जमात के क़्वारंटाइन किए गए लोग अधिकारी और डॉक्टर्स पर थूक रहे हैं, उनसे बदसलूकी कर रहे हैं। आइसोलेशन के दौरान लजीज पकवान की शिफारिश कर तंत्र की कार्यशैली में बाधा डाल रहे हैं।
सोचिए, यदि यही डॉक्टर, जो बिना अपनी जान की परवाह किए लोगों की जाँच के लिए उनके पीछे भाग रहे हैं, आज ही इस बर्ताव से नाराज होकर काम करने से मना कर दें तो पूरे भारत को इटली और चीन बनते कितना टाइम लगेगा?
कोरोना वायरस किसी का मजहब नहीं देखता है, यह एकदम सेक्युलर प्रकृति का वायरस है। लोगों पर थूककर यदि यह वायरस सिर्फ एक धर्म के लिए संकट खड़ा करता, तब भी इन नमाजियों का तर्क समझा जा सकता था लेकिन यह वायरस हर प्रकार की सीमा से परे है। यह जितना जानलेवा ‘काफिरों’के लिए हो सकता है, उतना ही नमाजियों के लिए भी है।
वायरस के प्रकोप की गंभीरता यदि इटली, स्पेन और अमेरिका जैसे देशों में बढ़ती हुई लाशों की संख्या देखकर भी समझ नहीं आती है, तो भारत सरकार को फिलीपींस के राष्ट्रपति का बयान चप्पे-चप्पे पर चिपका देना चाहिए। फिलीपींस के राष्ट्रपति रॉड्रिगो दुतेर्ते (Rodrigo Duterte) ने ऐलान किया है कि देश में अगर कोई व्यक्ति लॉकडाउन का उल्लंघन करेगा तो उसे गोली मार दी जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चाहिए कि 21 दिनों के लॉकडाउन की अपील को हाथ जोड़कर स्पेनिश भाषा में बोलने के बजाए फिलीपींस के राष्ट्रपति की भाषा में बोलना चाहिए। शायद यही एक तरीका है कि लोग लॉकडाउन के महत्व को समझें और स्वविवेक से फैसला ले सकें कि नमाज भी नामजियों से ही है, और उसे पढ़ने के लिए कोरोना वायरस से जीवित रहना जरूरी है।