Friday, November 15, 2024
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नाम टाइम्स ऑफ ‘इंडिया’ लेकिन काम ‘पाकिस्तान’ वाला; लानत है!

आप अपना नाम बदल कर 'टाइम्स ऑफ पाकिस्तान' कर लीजिए, क्योंकि भारत सरकार, भारतीय सुरक्षा बल, भारतीय सेना और भारत की जनता की भावनाओं के ख़िलाफ़ लिख कर आपने अपने नाम में भारत का नाम रखने का हक़ खो दिया है।

हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया तंत्र की हमारे देश में मज़बूत उपस्थिति है। सैंकड़ों अख़बार, न्यूज़ चैनल, न्यूज़ पोर्टल से लेकर रेडियो और यूट्यूब तक मीडिया हर जगह उपस्थित है। मीडिया से अपेक्षा की जाती है कि वो राष्ट्रहित की बात करे, जनता से जुड़े मुद्दों को उठाए और जनहित की बात करे। लेकिन हमारे देश में स्थिति उलट गई है। ऐसा लगता है कि मीडिया के एक गिरोह विशेष का भारतीय सुरक्षा बलों के ऊपर से भरोसा उठ गया है। ताज़ा मामला टाइम्स ऑफ इंडिया का है।

पुलवामा में हुए त्रासद आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तान परस्त आतंकियों का हाथ है। सर्वविदित है कि पाकिस्तान इन आतंकी संगठनों का पोषक है, उनका अभिभावक है। अपनी सुविधा के हिसाब से पाकिस्तान इन आतंकियों का इस्तेमाल करता रहा है ताकि भारतीय सरज़मीं पर आतंक फैलाया जा सके। अब जब सिर्फ़ भारत में ही नहीं, भारत के बाहर भी पाकिस्तान पर उन आतंकी संगठनों पर कड़ी कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है तब देश के सबसे बड़े मीडिया संस्थान में से एक ने ऐसी ही भाषा अपनाई है, जो पाकिस्तान से मिलती-जुलती है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की भाषा, जो पाकिस्तान के बयान से काफ़ी मिलती जुलती है (साभार: TOI)

सिद्धू जैसे नेता पाकिस्तान के गुण गाते नहीं थकते। कश्मीर के अलगाववादियों का तो जीवन-यापन ही पाकिस्तान के पैसों से चलता है। कश्मीरी नेतागण का पाकिस्तान प्रेम जगज़ाहिर है। मीडिया के एक गिरोह का तो कहना ही क्या! टाइम्स ऑफ इंडिया ने पुलवामा हमले को लेकर जो हैडिंग बनाई है, वो शहीदों का अपमान है। जहाँ हमें उन रक्तपिपासु आतंकियों की निंदा करनी चाहिए जिन्होंने हमे इतना बड़ा घाव दिया है, यहाँ हमारे ही देश का मीडिया उन्हें आतंकी कहने में शर्म महसूस कर रहा है।

आतंकी को आतंकी कहना सीखिए जनाब

अब, टाइम्स ऑफ इंडिया के हैडिंग पर ग़ौर फरमाएँ। इसने अपने प्रमुख पृष्ठ की हैडिंग में लिखा है कि भारत सरकार ने पुलवामा हमले के लिए पाकिस्तान पर ‘आरोप’ मढ़ा है। देश की जनता TOI से पूछना चाहती है कि क्या यह सिद्ध नहीं है कि पाकिस्तान अपने आतंकियों को भेज कर कश्मीर में ख़ून का रमज़ान खेलता रहा है? क्या TOI को भी कुछ नेताओं की तरह आतंकी घटनाओं में पाकिस्तान का हाथ होने के सबूत चाहिए? प्रत्यक्ष के प्रमाण को देख कर भी इस प्रकार की अनर्गल बातें करना, क्या यह देश की प्रमुख मीडिया नेटवर्क को शोभा देता है?

TOI मानता है कि भारत सरकार पाकिस्तान पर आरोप लगा रहा है। इस मामले में पाकिस्तान का जो बयान आया है उस पर भी ग़ौर करना चाहिए। पाकिस्तान ने कहा कि वह बिना जाँच के भारतीय मीडिया और सरकार द्वारा हमले का लिंक पाकिस्तान से जोड़ कर तमाम आरोपों को सिरे से ख़ारिज करता है। पाकिस्तान इसे आक्षेप बताता है, टाइम्स ऑफ इंडिया इसे आरोप कहता है- दोनों में अंतर क्या है? हमारे देश का मीडिया देश के दुश्मनों की भाषा में बात करे, यह देश और देश का लोकतंत्र- दोनों के लिए ही ख़तरनाक है।

सबसे अव्वल तो यह कि टाइम्स ऑफ इंडिया को आतंकी को आतंकी कहने में भी शर्म महसूस हो रही है। पाकिस्तान की वास्तविकता को ‘आरोप’ कहने वाले TOI के लिए 40 से भी अधिक भारतीय जवानों की जान लेने वाला आत्मघाती हमलावर आतंकी नहीं है। वह ‘कश्मीर का स्थानीय युवा’ है। अब तो बस कीजिए जनाब। आपको करोड़ों लोग रोज पढ़ते हैं। आपके इस हैडलाइन से देश की जनता के दिल और दिमाग पर क्या प्रभाव पड़ेगा- कम से कम इसका तो ध्यान रखा कीजिए।

क्या पाकिस्तान जैश और अज़हर का पोषक नहीं है?

अपनी हैडलाइन के नीचे सबटाइटल के रूप में TOI ने लिखा है- ‘भारत ने पाकिस्तान पर जैश-ए-मोहम्मद’ और अज़हर मसूद का समर्थन करने के आरोप लगाए।’ अख़बार ने जैसी भाषा का प्रयोग किया है, उसे पढ़ कर पाकिस्तान और पाकिस्तान में पल रहा हर आतंकी ख़ुश होगा। जैश-ए-मोहम्मद एक आतंकी संगठन है, जो पाकिस्तान की धरती पर फलता-फूलता है। सर्वविदित है कि पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई ने उसे भारत में आतंक फ़ैलाने के लिए तैयार किया था। आतंकी संगठन जैश का आका अज़हर पाकिस्तान की छत्रछाया में पालते हैं।

जहाँ भारत सरकार अज़हर को गिरफ़्तार करना चाहती है, उसके ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया जा रहा है (उस अभियान के इस हमले के बाद और प्रबल होने की ज़रूरत है), उसे भारत के ही मीडिया का एक वर्ग पाकिस्तान पोषित नहीं मानता। अगर जनाब ऐसा है, तो आप अपना नाम बदल कर ‘टाइम्स ऑफ पाकिस्तान’ कर लीजिए, क्योंकि भारत सरकार, भारतीय सुरक्षा बल, भारतीय सेना और भारत की जनता की भावनाओं के ख़िलाफ़ लिख कर आपने अपने नाम में भारत का नाम रखने का हक़ खो दिया है।

भारत के भीतर भी ज़रूरी है सर्जिकल स्ट्राइक

पाकिस्तान के आतंकी आकाओं का सफ़ाया तो आवश्यक है ही, साथ ही ज़रूरी है देश के भीतर पनप रहे राष्ट्र-विरोधी मानसिकता वाले लोगों का सफ़ाया। हमने देखा कि कैसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से निकला छात्र आतंक का दामन थाम लेता है। हम देखते हैं कि अलगाववादी भारत का नमक खा कर भारत-विरोधी कार्यकलाप में व्यस्त रहते हैं। कुछ नेताओं का भारतीय सुरक्षा बलों को सवालों के घेरे में खड़ा करना भी हमें दिखता है। हमारी नज़र के सामने ही कश्मीरी नेतागण पाकिस्तानपरस्ती वाली भाषा बोलते हैं। हम कुछ नहीं कर पाते।

सब कुछ सरकार नहीं करेगी। कुछ ज़िम्मेदारियाँ आम लोगों को भी लेनी होगी। जब हमारे सुरक्षा बल पाकिस्तान पोषित आतंकियों को सीमा पर मार गिरा रहे हों, हमे अपने देश-समाज में ऐसे पाकिस्तान परस्तों का बहिष्कार करना चाहिए। जो अख़बार भारत में व्यापार चला कर भारत के दुश्मनों की भाषा बोलता है, उसे बहिष्कृत कर उस से सवाल पूछे जाने चाहिए। उसे माफ़ी माँगने को मजबूर किया जाना चाहिए। तब वो ऐसी ग़लती दोबारा नहीं करेंगे।

जो नेता सुरक्षा बलों को कटघरे में खड़ा करता है, अपनी जान पर खेल कर हमारी जान की रक्षा करने वाले जवानों के ख़िलाफ़ -बोलता है- वो नेता जब चुनावों के दौरान वोट माँगने आए तो जनता द्वारा उसे राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए। भारत में रह कर पाकिस्तान की भाषा बोलने वालों को यह बताने का समय आ गया है कि आप ऐसी घटिया हरक़त कर के देश की जनता को और उस जनता की मदद से चला रहे अपने व्यापार को ग्रांटेड नहीं ले सकते। अब समय आ गया है। सीमा को सेना दुरुस्त करेगी, देश को हम और हमारा समाज ठीक करेगा।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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