प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी न सिर्फ़ एक कुशल प्रशासक बल्कि एक अनुभवी सफल और दक्ष राजनीतिज्ञ भी हैं। पीएम जब जनता के लिए बोल रहे होते हैं, चुनावी भाषण दे रहे होते हैं या किसी जनसभा अथवा रोड शो को संबोधित कर रहे होते हैं, तब उनका टोन अलग होता है। वहीं अगर वह रेडियो के माध्यम से मन की बात कर रहे होते हैं, टीवी के माध्यम से राष्ट्र को संबोधित कर रहे होते हैं, तो उनका अंदाज़ अलग होता है। दूसरी तरफ़ भाजपा के वे सांसद हैं, जिन्होंने पीएम मोदी की ‘आदर्श ग्राम योजना’ का कचरा कर दिया। कई सांसदों ने इस ऐसी योजना को सड़क पर ला दिया, जिससे देश की सूरत बदल सकती थी। अव्वल तो यह कि वीआईपी कल्चर ख़त्म करने के लिए मोदी ने लाल बत्ती पर लगाम लगाई, जिसके बाद इसका प्रयोग बंद हुआ।
सांसदों को पीएम की महत्वपूर्ण सलाह
सबसे बड़ी बात तो यह है कि ये सांसद पीएम का अनुकरण तो दूर, उनकी बातों तक पर ध्यान नहीं देते। आज के दौर में जब मीडिया के एक बड़े भाग का उद्देश्य सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रोपगंडा फैलाना जानता है, विवादित बयान देने एवं ख़ासकर भाजपा नेताओं के सेलेक्टिव बयानों के सहारे भारत की एक ख़ास किस्म की छवि का निर्माण करना चाहता है, पीएम ने अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करने से पहले संसद में राजग के नव निर्वाचित सांसदों को संबोधित करते हुए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए। इसमें सबसे चर्चित उनका ‘छपास और दिखास’ वाला बयान रहा। हालाँकि, यह नया नहीं है।
जैसा कि ख़ुद नरेन्द्र मोदी ने कहा, ये चीजें भाजपा के अन्दर वाजपेयी काल से चली आ रही है। मोदी ने बताया कि जब वे लोग नए-नए आए थे, तब भाजपा के पितामह अटल बिहारी वाजपेयी ने उन सभी को एक महत्वपूर्ण सलाह दी थी। उस दौरान अटल-आडवाणी ने नेताओं को सलाह देते हुए कहा था कि वे ‘छपास और दिखास’ से बचें। इसका अर्थ हुआ कि अखबार में छपने और टीवी पर दिखने से बचें। मोदी ने अटल-आडवाणी की इसी सलाह को आगे बढ़ाया। 5 वर्षों में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस न कर के लुटियंस गैंग को परेशान करने वाले मोदी ने चुनाव परिणाम आने से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस तो की लेकिन एक भी सवाल का जवाब न देकर ‘खान मार्किट’ के लोगों को उन्हीं के बीच आकर ट्रोल किया।
बिना लुटियंस के डिज़ाइनर पत्रकारों के बीच गए और बिना प्रेस कॉन्फ्रेंस किए मोदी ने जनता से सीधे जुड़े रहने के कई तरीके विकसित किए हैं और उनका उन्हें फायदा भी मिला। पीएम मोदी की सलाह की बात हम इसीलिए कर रहे हैं क्योंकि उनके द्वारा उपर्युक्त सलाह दिए अभी एक सप्ताह भी नहीं हुए हैं, तब भी उसके भीतर भाजपा सांसद फँसने लगे हैं। इसकी शुरुआत क्रिकेट सेलेब्रिटी से नेता बने गौतम गंभीर ने की। गौतम गंभीर भारत के अव्वल सलामी बल्लेबाजों में से एक रहे हैं और हो सकता है कि सेलेब्रिटी होने के कारण ‘छपास और दिखास’ से उनका ख़ास लगाव हो। गंभीर के इस लगाव और नए विवाद की चर्चा करेंगे, लेकिन उससे पहले गुरुग्राम की उस घटना को समझते हैं, जिसके कारण यह सारा विवाद शुरू हुआ।
गुरुग्राम की घटना और ‘भेड़िया आया’ वाली कहानी
गुरुग्राम में एक युवक ने कुछ दावा किया। ध्यान दीजिए, दावा किया। वह युवक मुस्लिम है। उसका नाम है- बरकत अली। बरकत अली ने शिकायत दर्ज कराई कि उसे कुछ लोगों ने ‘जय श्री राम’ बोलने को मजबूर किया और ऐसा न करने पर उसके साथ मारपीट की गई। इतना ही नहीं, उनके द्वारा पहने गए इस्लामी स्कल कैप को हवा में उछल कर फेंक दिया गया। उसनें आरोप लगाया कि आरोपितों ने उसकी शर्ट भी फाड़ दी। पुलिस ने तत्काल एक्शन लिया और इस मामले में 15 लोगों को गिरफ़्तार किया गया और 50 से भी अधिक सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए, इसके बाद जो सामने आया वह चौंकाने वाला था। इसमें क्या आया, उससे पहले जानिए कि इस बीच क्या सब हुआ?
आजकल के डिज़ाइनर पत्रकारों को ऐसी ख़बरों को सांप्रदायिक रंग देने में आता है, जो सामान्य आपराधिक घटनाएँ होती हैं। चोरी-चकारी, आपसी विवाद और लूट तक की घटनाओं को सांप्रदायिक रंग देने वाला मीडिया यह भूल रहा है कि इस चक्कर में ऐसी कई घटनाएँ मुख्यधारा का हिस्सा बन ही नहीं पातीं, जो असल में सांप्रदायिक होती है। जहाँ सम्प्रदाय, जाति और धर्म का कोई मामला ही नहीं हो वहाँ इसे जबरन जोड़ा जा रहा है, वहीं जहाँ सच में सांप्रदायिक वारदातें हो रही हैं, उसे छिपा दिया जा रहा है।
गौतम का बिना सोचे-समझे दिया गया गंभीर रिएक्शन
इस ट्रेंड की ख़ासियत यह है कि ध्रुव त्यागी की हत्या कर के मस्जिद भागने वाले आरोपित को लेकर तो कुछ नहीं कहा जाता लेकिन गुरुग्राम जैसी घटनाओं पर खुल कर बोला जाता है। गुरुग्राम की घटना में तमाम छानबीन का बाद पुलिस को जो पता चला, उसकी चर्चा करने से पहले जानते हैं कि इस बीच क्या सब हुआ? इस दौरान गौतम गंभीर ने 2 ट्वीट किए। इसमें उन्होंने भारत के सहिष्णु और धर्मनिरपेक्ष होने की दुहाई देते हुए ‘गुरुग्राम जैसी घटनाओं’ की निंदा करने की बात कही। गौतम को ये घटना अमेठी में भाजपा कार्यकर्ता की हत्या से भी ज्यादा गंभीर लगी। संसद में पीएम के ‘छपास और दिखास’ वाली सलाह को भूल चुके गंभीर ने अपने बयान को सही ठहराने के लिए मोदी के ही ‘सबका साथ-सबका विकास’ वाले मन्त्र की दुहाई भी दी।
गौतम की इस गंभीर ग़लती पर लोगों ने उन्हें घेरा। अभी-अभी ईस्ट दिल्ली सीट से कॉन्ग्रेस नेता अरविंदर सिंह लवली और आम आदमी पार्टी की आतिशी को हरा कर संसद पहुँचे गंभीर से लोगों ने पूछा कि क्या जिस मामले पर वह कमेन्ट कर रहे हैं, उसकी तह तक वो गए हैं? क्योंकि, आज की मीडिया जिस तरह से ऐसे मामलों को रिपोर्ट करती है, बिना उसकी तह तक गए या उसके बारे में अतिरिक्त जानकारियाँ जुटाए, उसपर कमेन्ट कर देना लापरवाही नहीं है? ये मामला तब और गंभीर हो जाता है जब इसमें गौतम जैसे बड़े सेलेब्स फँस जाते हैं। गंभीर मीडिया के उसी जंजाल में फँसे, जिसे लेकर उन्हें व अन्य सांसदों को प्रधानमंत्री मोदी ने आगाह किया था। वो ख़ूब छपे, ख़ूब दिखे और सोशल मीडिया पर भी ख़ूब ट्रेंड हुए।
गौतम गंभीर से लोगों का यह पूछना लाजिमी था क्योंकि हाल के कुछ सालों में जिस भी घटना को सांप्रदायिक बोल कर मीडिया ने हंगामा किया, पत्रकारों ने भारत के असहिष्णु होने की बात कही, लिबरलों ने देश में नेगेटिविटी होने की बात कही और कथित सेकुलरों ने मुस्लिमों व अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की बात कही, वो घटनाएँ अंत में सांप्रदायिक नहीं निकलीं। ट्रेन में सीट को लेकर हुए विवाद में अगर किसी मुस्लिम की मौत हो गई, उसे भी सांप्रदायिक रंग दिया गया। एक लॉ छात्र ने मुस्लिम होने के कारण ख़ुद पर अन्य छात्रों द्वारा अत्याचार किए जाने की बात कही, बाद में यह भी झूठ निकली। 2016 में बरुन कश्यप नाम के निर्देशक ने आरोप लगाया कि उनके बैग को गाय की चमड़ी से बना समझ कर गौरक्षकों ने उन्हें धमकी दी। बाद में उन्होंने ख़ुद स्वीकार किया कि हिन्दुओं से घृणा के कारण उन्होंने ख़ुद से यह कहानी गढ़ी।
गुरुग्राम की घटना का पूरा सच अब आया सामने
गौतम गंभीर सेलेब्रिटी हैं। उन्हें इन सब से कुछ लेना-देना नहीं है। उन्हें तो ट्विटर पर कुछ फैंसी शब्दों का प्रयोग कर मीडिया में छपना है और दिखना है। इससे उनकी वाहवाही होगी, उनके बारे में लेख लिखे जाएँगे, उन्हें भाजपा के भातर रह कर भी सेक्युलर विचारधारा का वाहक बताया जाएगा इत्यादि-इत्यादि। गंभीर को भी इसी सेकुलर कीड़े ने काटा और कूल बनने के चक्कर में उनकी किरकिरी भी हुई। अब वापस गुरुग्राम की घटना पर आते हैं। पुलिस की छानबीन और प्रशासन की त्वरित कार्रवाई के बाद पता चला कि न तो उक्त मुस्लिम युवक बरकत अली की इस्लामी स्कल कैप उछली गई और न ही उसकी शर्ट फाड़ी गई।
पुलिस ने साफ़-साफ़ कहा है कि यह कोई सांप्रदायिक घटना नहीं है बल्कि इसे जबरन सांप्रदायिक रंग दिया गया। पुलिस ऐसा यूँ ही नहीं कह रही, 15 लोगों की गिरफ़्तारी और 50 से भी अधिक सीसीटीवी खंगालने के बाद पुलिस ने यह निष्कर्ष निकाला। 24 घंटे तक पुलिस और प्रशासन द्वारा लगातार जाँच करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया। विडियो फुटेज के अनुसार, यह एक सामान्य मारपीट की घटना थी, जिसे पास ही झाड़ू लगा रहे किसी व्यक्ति ने देखा और बीच-बचाव किया। यह घटना शराब के नशे में अंजाम दी गई, जिसमें मारपीट तो हुई लेकिन इसमें कुछ भी सांप्रदायिक नहीं निकला।
अगर गौतम गंभीर ने सूरत अग्निकांड ट्रेजेडी को लेकर गुजरात सरकार पर निशाना साधा होता तो समझ में आता। अगर उन्होंने अमेठी में सुरेन्द्र हत्याकांड की निंदा की होती तो भी चलता, लेकिन उन्होंने सत्यता से परे एक ऐसी घटना को लेकर व्याख्यान दिया, जिसके कारण वह ख़ुद फँस गए। उक्त मुस्लिम युवक की टोपी को किसी ने हाथ तक नहीं लगाया था, ऐसा सीसीटीवी फुटेज में दिखा है। मारपीट के दौरान उसकी टोपी गिर गई, जिसके बाद उसनें उसे ख़ुद उठा कर अपने जेब में डाल लिया। लेकिन, मारपीट की इस घटना में इस्लामी स्कल कैप और ‘जय श्री राम’ का छौंक लगाते ही यह सांप्रदायिक घटना हो गई, जिसके आधार पर गिरोह विशेष ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल से भी जोड़ा।