भारत सरकार के ‘कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority)’ या APEDA ने अपने रेड मीट मैन्युअल में से ‘हलाल’ शब्द को ही हटा दिया है और इसके बिना ही दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसके लिए लम्बे समय से अभियान चला रहे हरिंदर एस सिक्का ने सोशल मीडिया पर इस सम्बन्ध में जानकारी दी।
GREAT NEWS: THANKS🙏@narendramodi @PiyushGoyalOffc
— Harinder S Sikka (@sikka_harinder) January 4, 2021
Govt removes word HALAL from @APEDADOC
Now all are eligible to register. Halal certification NOT mandatory.
No discrimination. One country, One Law.
It’s message to all hotels, restaurants others serving Halal on Sly. Jai Hind pic.twitter.com/LpjPBG3135
उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल को धन्यवाद दिया। सरकार के इस कदम के बाद अब ‘हलाल’ सर्टिफिकेट की ज़रूरत समाप्त हो जाएगी और सभी प्रकार के वैध मीट कारोबारी अपना पंजीकरण करा सकेंगे। हरिंदर सिक्का ने इसे बिना किसी भेदभाव के ‘एक देश, एक नियम’ के तहत लिया गया फैसला बताया और कहा कि ये ‘हलाल’ मीट परोस रहे रेस्टॉरेंट्स के लिए भी एक संदेश है।
APEDA ने अपने ‘फूड सेफ्टी मैनेजमेंट सिस्टम’ के स्टैंडर्ड्स और क्वालिटी मैनेजमेंट के डॉक्यूमेंट में बदलाव किया है। पहले इसमें लिखा हुआ था कि जानवरों को ‘हलाल’ प्रक्रिया का कड़ाई से पालन करते हुए जबह किया जाता है, जिसमें इस्लामी मुल्कों की ज़रूरतों को ध्यान में रखा जाता है। अब इसकी जगह लिखा गया है, “मीट को जहाँ आयात किया जाना है, उन मुल्कों की ज़रूरतों के हिसाब से जानवरों का जबह किया गया है।”
ये बदलाव इस डॉक्यूमेंट के पेज संख्या 8 में किया गया है। वहीं दूसरी तरफ पेज 30 पर जहाँ पहले लिखा था, “इस्लामी संगठनों की मौजूदगी में जानवरों को हलाल प्रक्रिया के तहत जबह किया गया है। प्रतिष्ठित इस्लामी संगठनों के सर्टिफिकेट लेकर मुस्लिम मुल्कों की जरूरतों का ध्यान रखा गया है”, वहाँ अब लिखा है, “आयातक देश के ज़रूरतों के अनुसार जानवरों को जबह किया गया है।” पेज संख्या 35, 71 और 99 पर भी बदलाव किया गया है।
पेज संख्या 35 पर पहले लिखा था कि इस्लामी शरीयत के हिसाब से पंजीकृत इस्लामी संगठन की कड़ी निगरानी में हलाल प्रक्रिया के तहत जानवरों को जबह किया गया है और उनकी निगरानी में ही इसका सर्टिफिकेट भी लिया जाता है। इस पूरी पंक्ति को ही हटा दिया गया है।
वहीं पेज संख्या 71 पर जेलेटीन बोन चिप्स को स्वस्थ भैंस को हलाल प्रक्रिया के तहत जबह किए जाने के बाद तैयार किए जाने की बात लिखी थी। इसे बदल कर भी ‘आयातक देश की ज़रूरतों के अनुरूप’ कर दिया गया है। साथ ही ‘हलाल’ शब्द को हटा कर लिखा गया है कि पोस्टमॉर्टम जाँच के बाद ही इसे तैयार किया गया है।
पेज संख्या 99 पर पूरी प्रक्रिया का फ्लो चार्ट था, जहाँ ‘हलाल’ शब्द को ‘Slaughter’ (जबह) से रिप्लेस कर दिया गया है। अब APEDA के रेड मीट मैन्युअल में आपको कहीं ‘हलाल’ शब्द नहीं मिलेगा। सिर्फ एक मीट प्रोसेसिंग कम्पनी ‘हलाल इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड’ नाम से रजिस्टर्ड है, जिसका जिक्र है।
हलाल पर बवाल
करीब 6 महीने पहले सोशल मीडिया पर सरकारी दस्तावेजों में हलाल शब्द को लेकर बवाल हुआ था। तब सरकारी विभाग को इस पर आकर सफाई भी देनी पड़ी थी।
कब APEDA को ऊपर वायरल हुए इमेज पर सफाई देते हुए कहना पड़ा था कि हलाल मीट के निर्यात को लेकर भारत सरकार की ओर से कोई जबरन नियम नहीं था बल्कि यह आयात करने वाले देशों (जो ज्यादातर मुस्लिम देश हैं) के नियमों के अनुरूप था। हालाँकि APEDA के रेड मीट मैन्युअल को कुछ ऐसे लिखा गया था, जिससे भ्रम की स्थिति पैदा होती थी और यह लगता था कि भारत सरकार ही मीट को हलाल तरीके से प्रोसेस करने के लिए बाध्य करती है। इसी भ्रम को दूर करने के लिए भारत सरकार ने उपरोक्त बदलाव किया है।
क्या होगा बदलाव
APEDA के रेड मीट मैन्युअल के कारण मीट व्यापार में धार्मिक भेदभाव होता था। हलाल प्रक्रिया का पालन करने के कारण हिंदू नाम के बिजनेसमैन चाह कर भी इसमें आगे नहीं बढ़ पाते थे। हलाल सर्टिफिकेशन की आड़ में भी उनका शोषण होता था। रोजगार में गैर-मुस्लिमों के साथ भेदभाव होता था।
इसका कारण था हलाल के लिए थोपे गए इस्लामी नियम। इसके सबसे आपत्तिजनक शर्तों में से एक है कि हलाल मांस के काम में ‘काफ़िरों’ (‘बुतपरस्त’, गैर-मुस्लिम, जैसे हिन्दू) को रोज़गार नहीं मिलेगा। यह आर्थिक पक्ष हलाल को केवल एक भोजन पद्धति ही नहीं, एक पूरी समानांतर अर्थव्यवस्था बना देता है, जो गैर-मुस्लिमों को न केवल हाशिये पर धकेलती है, बल्कि परिदृश से ही बाहर कर देती है।
हाल ही में ये भी खबर आई थी कि दिल्ली के ऐसे होटल या मीट की दुकान जो SDMC (दक्षिण दिल्ली म्युनिशपल कॉर्पोरेशन) के अंतर्गत आते हैं, उन्हें अब हलाल या झटका बोर्ड टाँग कर रखना जरूरी होगा। SDMC की सिविक बॉडी की स्टैंडिंग कमिटी ने यह प्रस्ताव गुरुवार (24 दिसंबर 2020) को पास कर दिया। इस प्रस्ताव में यह भी लिखा है कि हिंदू और सिख के लिए हलाल मीट खाना वर्जित है।