पुरानी फ़िल्में अगर देखी होंगी तो विलन के चमचे हमेशा धारी वाली टी शर्ट और गले में रुमाल से लैस होते थे। इनका नाम भी हमेशा रंगा या बिल्ला हुआ करता था। ये मेन विलन का सबसे तगड़ा वाला गुंडा हमेशा एक ही हुलिए और एक ही नाम का क्यों होता था, ऐसा काफी दिन तक सोचते रहे हम भी। बहुत बाद में रंगा बिल्ला की कहानी सुनाई दी।
दोनों कार चोर थे। मुंबई में पुलिस से बचने के चक्कर में ये भाग कर दिल्ली आए थे और दिल्ली में एक कमरा किराए पर ले लिया था। एक फ़िएट कार चुरा कर उसका नंबर प्लेट दोनों ने बदला और सोचा कि किसी का अपहरण कर के उस से पैसे फिरौती के भी कमाएँ।
अगस्त, 1978 के आखरी दिन थे। एक नौसेना अधिकारी के दो बच्चे आकाशवाणी केंद्र में अपना कोई कार्यक्रम देने जा रहे थे। दोनों ने उनका अपहरण कर लिया, मगर टुच्चे कार चोरों से अपहरण जैसा बड़ा अपराध संभला नहीं। बेटा छोटा था, पकड़े जाने के डर से संजय चोपड़ा नाम के इस बच्चे की नृशंस हत्या कर दी दोनों ने मिलकर। बड़ी बहन गीता को भी बलात्कार के बाद मार डाला।
दोनों बच्चों ने इन अपराधियों से जमकर लड़ाई की थी। चलती कार में कई लोगों ने बच्चों को इनसे लड़ते देखा था। शवों पर भी रंगा बिल्ला के टूटे बाल पाए गए थे, अपराधियों को सर पर चोट भी लगी थी इस दौरान। अपने कुकृत्य को अंजाम देने के बाद दोनों दिल्ली से भागने लगे। मगर सफ़र में एक फौज़ी से झगड़ा हो जाने पर ये पुलिस के हत्थे चढ़ गए। चार साल मुक़दमा चलने के बाद दोनों को फाँसी हुई थी। बिल्ला शायद पहला फाँसी की सजा पाया अपराधी था, जिसका पत्रकारों ने इंटरव्यू लिया था। वो अंत तक कहता रहा कि सारा अपराध रंगा का है, उसने कुछ नहीं किया। उसे सेल से घसीट कर, छटपटाने, चीखने के बावजूद, फाँसी पर टांग दिया गया था।
इन दुर्दांत अपराधियों का नाम आज भी जिन्दा है। और इनका नाम इसलिए याद आया क्योंकि अशोक अचानक से कुशवाहा हो गए हैं, अम्बेदकर दलितों के नेता हैं, पटेल–गाँधी कॉन्ग्रेसी हो गए हैं, शिवाजी महाराष्ट्र के हैं और भी सारे लोग जाति, क्षेत्र, धर्म के नाम पर बाँटे जा रहे हैं। मेरे हिसाब से बँटवारा पूरा-पूरा होना चाहिए। ये आधा-अधुरा देना नहीं देने के बराबर है। मुंबई मिल कांड वालों का बंटवारा हो! निर्भया कांड वाले भी बाँटो!
क्या हुआ रंगा-बिल्ला नहीं बाँटेंगे? वो सबके हैं? और सबके क्यों हैं? क्योंकि अरुंधति ने कहा है!
अरुंधति ने तो सबको अपना पता 7-RCR बताने को कहा है। मुझे यकीन है कि सबको 7-RCR का मतलब भी नहीं पता होगा। मोदी हों या मनमोहन, यहाँ देश के प्रधानमंत्री रहते हैं। अरुंधति के कहने पर पूरा देश प्रधानमंत्री थोड़े न बन जाएगा। ठीक उसी तरह क्या आप अपना नाम किसी हत्यारे-बलात्कारी के नाम से जोड़ना चाहेंगे? शायद नहीं। और कोई ऐसा करे, उसके लिए जिस पागलपन की जरूरत होगी, वो खुद अरुंधति के अलावा शायद ही किसी के पास हो इस देश में!
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