Saturday, November 2, 2024
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तमिलनाडु: नई शिक्षा नीति के खिलाफ कैथोलिक संस्थाओं का अभियान, लोगों ने बताया खतरनाक ट्रेंड

इस अभियान की शुरुआत तब हुई जब मद्रास और मल्लापोर के आर्कबिशप जॉर्ज एंटनी सैमी ने कैथोलिक शिक्षण संस्थाओं, शिक्षकों और छात्रों को नई शिक्षा नीति का बहिष्कार करने के लिए कहा। उन्होंने इस अभियान की शुरुआत फेसबुक से की इसके बाद कई सोशल मीडिया माध्यमों पर अपना विरोध दर्ज कराया।

तमिलनाडु में रोमन कैथोलिक संस्थानों ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP) के विरोध में अभियान शुरू किया है। डीएमके समेत कई विपक्षी राजनीतिक दल और गैर सरकारी संगठन इस अभियान में उनका साथ भी दे रहे हैं। बीते दिन (30 अगस्त 2020) रोमन कैथोलिक संस्थानों ने इस अभियान की शुरुआत सोशल मीडिया पर की और कहा कि तमिलनाडु में NEP 2020 न लागू की जाए। इंटरनेट यूज़र्स ने इस अभियान को ‘खतरनाक ट्रेंड’ बताते हुए इसकी खूब आलोचना की है।  

इस अभियान की शुरुआत तब हुई जब मद्रास और मल्लापोर के आर्कबिशप जॉर्ज एंटनी सैमी ने कैथोलिक शिक्षण संस्थाओं, शिक्षकों और छात्रों को नई शिक्षा नीति का बहिष्कार करने के लिए कहा। उन्होंने इस अभियान की शुरुआत फेसबुक से की इसके बाद कई सोशल मीडिया माध्यमों पर अपना विरोध दर्ज कराया। इस अभियान की अगुवाई तमिलनाडु कैथोलिक एजुकेशनल एसोसिएशन (TANCEAN) ने की। यह संस्था NEP का विरोध उस वक्त से कर रही है, जब केंद्र सरकार ने साल 2016 में इसका पहला ड्राफ्ट जारी किया था।

इसके पहले 16 अगस्त को भी इन संस्थाओं ने NEP के विरोध में अभियान चलाया था। इसमें तमाम राजनीतिक दल भी शामिल थे, उनका कहना था कि नई शिक्षा नीति को लागू करना बेहद निराशाजनक है। TANCEAN ने इस बारे में स्पष्ट राय नहीं दी थी कि उन्हें नई शिक्षा नीति के किस पहलू से परेशानी है। TANCEAN ने बिना कोई तार्किक आलोचना किए कहा कि NEP हिंदुत्व को बढ़ावा देती है।   

तमिलनाडु में नई शिक्षा नीति का विरोध
आर्कबिशप जॉर्ज एंटनी सैमी (साभार: यूट्यूब)

एंटनी सैमी ने मीडिया से बात करते हुए कहा टीएसआर कमेटी के 4 से 5 नौकरशाह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से थे। उनकी माँग थी कि NEP को फिर से ड्राफ्ट किया जाए। ख़ास तौर पर इन्होंने योग और वैदिक शिक्षा दीक्षा को शामिल किए जाने पर भी विरोध जताया। NEP का ड्राफ्ट तैयार होने के बाद से ही डीएमके समेत तमिलनाडु के कई विपक्षी दल इसका विरोध करने में जुट गए थे। विरोध करने वाले राजनीतिक दलों का यह भी आरोप था कि इसमें देश के सभी लोगों पर हिंदी थोपी जा रही है।

केंद्र सरकार इस मामले में पर अपना स्पष्ट मत रख स चुकी है। उनका कहना है कि NEP में एक व्यक्ति को बहुभाषीय बनाने पर ज़ोर दिया गया है। जिससे वह ज़्यादा से ज़्यादा भाषा सीख और समझ सके, यानी उस पर कोई एक भाषा थोपी नहीं गई है। TANCEAN के नेतृत्व में तमाम ईसाई समूहों ने सीएए का भी विरोध किया था।

स्वराज्य में प्रकाशित ख़बर के अनुसार जब इस संस्था के सदस्य से संपर्क करने की कोशिश की गई तब उसने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से मना कर दिया। जब उनसे यह पूछा गया कि उनके हिसाब से NEP 2020 में क्या दिक्कत है? तब उसने कहा ‘भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव एच राजा जैसे नेता गोपनीय मुद्दों को ट्विटर पर सार्वजनिक बना देते हैं। जिसके बाद बेमतलब के विवाद पैदा होते हैं।’ 

इसके बाद उनसे यह भी पूछा गया कि आखिर क्यों चर्च केंद्र सरकार के प्रस्ताव (सीएए) का विरोध कर रहे थे, जिसका फायदा खुद ईसाई समुदाय को भी मिलना है। इस पर संबंधित व्यक्ति ने कहा, “मैं किसी भी तरह की बहस में नहीं पड़ना चाहता हूँ। हमने यूट्यूब में इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखा है आप वहाँ से जानकारी ले सकते हैं।”

इस मुद्दे पर कुछ लोगों का यह भी कहना है कि तमिलनाडु में अगले साल मई महीने में चुनाव होने हैं। इसलिए हर संगठन केंद्र सरकार से जुड़े किसी भी मुद्दे पर राजनीति करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ना चाहते। सोशल मीडिया पर आर्कबिशप द्वारा NEP के विरोध में चलाया गया अभियान उसका ही एक उदाहरण था।   

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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