Sunday, October 6, 2024
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नसबंदी के लिए 44 साल पहले पहुँच गए कमलनाथ: नौकरी जाने की धमकी का सुनाया फरमान

"यदि टारगेट के तहत काम नहीं किया तो अनिवार्य सेवानिवृत्ति के प्रस्ताव भेजेंगे।" - यह आदेश सुनकर कर्मचारियों में आक्रोश है और वो इसका विरोध कर रहे हैं।

परिवार नियोजन अभियान में पुरुषों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए कॉन्ग्रेस शासित राज्य मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए अजीब फरमान जारी हुआ है। इस फरमान के अनुसार हर स्वास्थ्य कर्मचारी को प्रति महीना 5 से 10 नसबंदी करने का लक्ष्य दिया गया है, जिसे पूरा न करने पर सरकार ने उन्हें नो-वर्क, नो-पे के आधार पर वेतन न देने की चेतावनी दी है। साथ ही कहा है कि जो भी हेल्थ वर्कर 2019-20 में नसबंदी के लिए एक भी आदमी को जुटाने में असफल पाया जाए, उससे उसका वेतन वापस ले लिया जाए, और उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्त दे दी जाए।

सरकार द्वारा आए इस फरमान को सुनने के बाद कर्मचारियों में रोष में है। उनका मत है कि वो जिले के हर घर-घर में जाकर जागरूकता अभियान चला सकते हैं, लेकिन किसी की जबरन नसबंदी नहीं कर सकते। जबकि एनएचएम की उप निदेशक डॉ प्रज्ञा तिवारी का कहना है कि परिवार नियोजन कार्यक्रम में पुरूषों की कोई भागीदारी नहीं है। उनके अनुसार, “हम यह नहीं कह रहे कि आप पुरूषों की नसबंदी के लिए जबरदस्ती करें। हम चाहते हैं कि वे लोगों को प्रेरित करें। ऐसे कई लोग हैं, जो अपने परिवार को सीमित करना चाहते हैं। लेकिन उनमें जागरूकता की कमी है। यदि आप पूरे एक वर्ष में एक व्यक्ति को प्रेरित नहीं कर सकते तो यह आपकी कार्य के प्रति लापरवाही को दर्शाता है। ऐसे में करदाताओं के पैसे को वेतन पर खर्च करने का क्या फायदा?”

बता दें कि वर्तमान में मध्य प्रदेश की आबादी 7 करोड़ से अधिक है। प्रदेश में 25 जिले ऐसे हैं, जहाँ टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) 3 से अधिक है, जबकि मप्र में 2.1 टीएफआर का लक्ष्य है। ऐसे में हर साल 6 से 7 लाख नसबंदी ऑपरेशन के टारेगट होते हैं, लेकिन पिछले साल ये संख्या सिर्फ 2514 रही। कोई भी जिला अपना टारगेट पूरा नही कर पाया। इसी आँकड़े के चलते राज्य सरकार ने कर्मचारियों को परिवार नियोजन के अभियान के तहत टारगेट पूरा करने के निर्देश दिए और इसे न पूरा किए जाने पर सेवानिवृत्त देने की चेतावनी दी।।

मध्य प्रदेश में इन आँकड़ों को देखते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की संचालक छवि भारद्धाज ने भी नाराजगी जताई है। भारद्वाज ने सभी कलेक्टर और सीएमएचओ को पत्र लिखकर कहा है कि प्रदेश में मात्र 0.5 प्रतिशत पुरुष नसबंदी के ऑपरेशन किए जा रहे हैं। अब ‌विभाग के पुरुषकर्मियों को जागरूकता अभियान के तहत परिवार नियोजन का टारगेट दिया जाए।

उनके इसी पत्र के बाद सीएमएचओ ने पत्र जारी कर कहा है कि यदि टारगेट के तहत काम नहीं किया तो अनिवार्य सेवानिवृत्ति के प्रस्ताव भेजेंगे। जिसे सुनकर कर्मचारियों में आक्रोश है और वो इसका विरोध कर रहे हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, प्रदेश में पिछले 5 वर्षों से नसबंदी के लिए पुरुषों की संख्या घट रही है। 2019-20 के लिए, संख्या 3.39 लाख महिलाओं की तुलना में 20 फरवरी, 2020 तक 3,397 थी। जबकि 2015-16 में, राज्य में 9,957 पुरुष नसबंदी की गई। बाद के तीन वर्षों में, संख्या क्रमशः 7270, 3719 और 2925 थी।

इंदौर की सीएम डॉ प्रवीण जदिया का कहना है कि यह पहली बार है कि सरकार द्वारा ऐसा कोई परिपत्र जारी किया गया है। इंदौर का कुल लक्ष्य 22,500 था और लगभग 19,500 नसबंदी की गई हैं, लेकिन जिले में 2,250 पुरुषों की नसबंदी के लक्ष्य को पूरा करने की संभावना नहीं है।

गौरतलब है कि आज कॉन्गेस के शासनकाल और कमलनाथ के मुख्यमंत्री होते हुए मध्यप्रदेश में नसबंदी को लेकर लिया गया ये फैसला आपातकाल के उस काले दौर की यादें ताजा करता है, जब इसी पार्टी के नेता, गाँधी परिवार के बेटे और कमलनाथ के स्कूली दोस्त संजय गाधी ने जनसंख्या रोकने के नाम पर पूरे देश में हाहाकार मचवा दिया था।

संजय गाँधी द्वारा इसका जिम्मा संभाले जाने के बाद घरों में घुसकर, बसों से उतारकर और लोभ-लालच देकर करीब 60 लाख लोगों की नसबंदी की गई थी। इसमें 16 साल के किशोर से लेकर 70 साल के बुजुर्ग तक शामिल थे। कई कुँवारे लड़कों की भी इस दौरान नसबंदी कर दी गई थी। इस दौरान गलत ऑपरेशन और इलाज में लापरवाही की वजह से करीब दो हजार लोगों को अपनी जान तक गँवानी पड़ी थी। कहा जाता है संजय गाँधी का ये मिशन जर्मनी में हिटलर के नसंबदी अभियान से भी ज्यादा कड़ा था, जिसमें करीब 4 लाख लोगों की नसबंदी ही की गई थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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