Friday, April 26, 2024
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भयंकर आर्थिक संकट से जूझ रही कॉन्ग्रेस: बैठकों में चुनाव की जगह फंड इकट्ठा करना पार्टी के लिए बना बड़ा सिरदर्द

कॉन्ग्रेस की पिछली कुछ बैठकों में आर्थिक मुद्दा चिंता का विषय बना रहा। बैठक में शामिल होने वाले नेताओं और पदाधिकारियों को कहा गया कि वह आर्थिक संकट से निपटने की जिम्मेदारी को गम्भीरता से लें। कॉन्ग्रेस नेताओं का कहना है कि पार्टी के आर्थिक विकल्प पिछले कुछ समय में सीमित हुए हैं इसलिए बैठकों में उन पर चर्चा ज़रूरी हो गई थी।

देश के इतिहास के सबसे पुराने राजनीतिक दलों में से एक कॉन्ग्रेस ने पिछले कुछ समय में शायद ही कोई अच्छी ख़बर सुनी हो। इस तरह की तमाम बुरी ख़बरों के बीच कॉन्ग्रेस से जुड़ी एक और बुरी ख़बर सामने आई है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़ पार्टी गम्भीर आर्थिक संकट से जूझ रही है। यहाँ तक दावा किया जा रहा है कि ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमेटी की प्रदेश ईकाईयों की बैठकों में आर्थिक संकट चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा है। संगठन के तमाम शीर्ष नेताओं ने इस आर्थिक संकट से निपटने के लिए पिछले महीने महाराष्ट्र, झारखंड और पंजाब के नेताओं से मुलाक़ात की थी। 

अमूमन इन बैठकों में संगठन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होती है, जिसमें प्रदेश अध्यक्ष का चयन और अन्य पदों का वितरण शामिल है। लेकिन कॉन्ग्रेस की पिछली कुछ बैठकों में आर्थिक मुद्दा चिंता का विषय बना रहा। बैठक में शामिल होने वाले नेताओं और पदाधिकारियों को कहा गया कि वह आर्थिक संकट से निपटने की जिम्मेदारी को गम्भीरता से लें। रिपोर्ट के मुताबिक़ कॉन्ग्रेस नेताओं का कहना है कि पार्टी के आर्थिक विकल्प पिछले कुछ समय में सीमित हुए हैं इसलिए बैठकों में उन पर चर्चा ज़रूरी हो गई थी।

कॉन्ग्रेस के लिए यह आर्थिक संकट बड़ा इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं, केरल, असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और पुदुचेरी। इस पर पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना था कि 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में संगठन की प्रबंधन क्षमता की परीक्षा होगी। इस बात को मद्देनज़र रखते हुए प्रदेश संगठन से मदद माँगी गई है। इसी दौरान राजधानी दिल्ली स्थित पार्टी का नया मुख्यालय भी एक चर्चा का विषय है। आगामी कुछ समय तक उसका निर्माण कार्य जारी रहेगा। 

2014 के आम चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद से ही कॉन्ग्रेस के लिए फंड इकट्ठा करना चुनौती से कम नहीं है। इस दौरान देश के कई बड़े राज्यों में भाजपा ने चुनाव जीत कर सत्ता हासिल की है। पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान ही तीन ऐसे राज्य हैं जहाँ कॉन्ग्रेस की सरकार बची है। बाकी महाराष्ट्र और झारखंड में कॉन्ग्रेस सहयोगी दल की भूमिका में है, जहाँ बड़े चेहरे शिवसेना, एनसीपी और जेएमएम हैं।

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि फंडिंग एक राजनीतिक दल के लिए अहम बिंदुओं में से एक है। रिपोर्ट के मुताबिक़ कॉन्ग्रेस आर्थिक सहयोग इकट्ठा करने के लिए प्रतिनिधि नियुक्त करने की योजना पर काम कर रही है। इस आर्थिक संकट की वजह से पार्टी के सांसद और विधायक भी काफी दबाव में हैं।  

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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