कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के निधन के बाद आज मीडिया में उन्हें लेकर तरह-तरह की खबरें चल रही हैं। कहा जा है कि वह अकेले इतनी बड़ी शख्सियत थे कि उन्होंने गाँधी परिवार से रिश्ता न होने के बाद भी पार्टी पर राज किया।
अब सवाल उठता है कि क्या वाकई ऐसा हो सकता है कि नेहरू-इंदिरा-राजीव की पीढ़ियों के अलावा किसी में इतना दम है कि वो कॉन्ग्रेस पर राज कर पाए?
आज अहमद पटेल के इंतकाल के बाद न जाने वो कौन से सूत्र हैं जो मीडिया को इतनी लिबर्टी दे रहे हैं कि वह ये दावा कर दें कि कॉन्ग्रेस पर कोई नॉन गाँधी भी कभी राज कर सकता है। पिछले दिनों सिर्फ पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाने पर कपिल सिब्बल का क्या हाल हुआ यह किसी से छिपा नहीं है। क्या ऐसी स्थिति में किसी की हिम्मत होगी कॉन्ग्रेस पर राज करने की?
अहमद पटेल को लेकर सुबह से हर कॉन्ग्रेसी नेता अपना दुख प्रकट कर रहा है। सोनिया गाँधी खुद उनके निधन को अपने लिए एक बड़ा नुकसान बता रही हैं। उनका कहना है कि उन्होंने एक वफादार सहयोगी और दोस्त खोया है। लेकिन, क्या यह शब्द काफी हैं इस कथन को साबित करने के लिए कि वरिष्ठ नेता अहमद पटेल की कॉन्ग्रेस में गाँधी परिवार के सदस्यों जितनी पैठ थी?
इसे समझने के लिए तो पार्टी के ऑफिशियल अकॉउंट पर किए गए ट्वीट पर नजर डालनी पड़ेगी। दरअसल, अहमद पटेल की मृत्यु की जानकारी आज सुबह 4 बजे उनके बेटे फैसल खान ने ट्विटर पर दे दी थी। इसके बाद कई कॉन्ग्रेसी नेता भी इसे लेकर अपना शोक प्रकट करने लगे। मगर कॉन्ग्रेस के आधिकारिक अकॉउंट के लिए अपने इतने बड़े नेता की खबर पर दुख जताना सुबह का पहला काम नहीं था।
पहला काम था- राहुल गाँधी का संदेश शेयर करना ताकि किसी मायने में उसकी गंभीरता सोशल मीडिया यूजर्स के सामने न दब जाए और लोग अहमद पटेल के गम में राहुल गाँधी के कोट को पढ़ना न भूल जाएँ।
कॉन्ग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर आज सुबह ठीक 8:00 बजे पहले राहुल गाँधी का संदेश शेयर किया गया। इसमें उन्होंने कहा था, “महिलाओं के खिलाफ हिंसा कई रूपों में सामने आती है और जिसे एक ऐसी संस्कृति द्वारा पोषित किया जाता है जो स्त्रित्व के चिह्नों का महिमामंडन करती है और साथ में महिलाओं की निंदा और अनादर भी करती हैं।”
इसके बाद कॉन्ग्रेस के आधिकारिक अकॉउंट से राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी जैसे नेताओं के ट्वीट को रीट्वीट किया गया, और पहले ट्वीट के करीब 22 मिनट बाद सुबह के 8:22 पर जाकर लिखा जाता है, “श्री अहमद पटेल के अचानक निधन के बाद कॉन्ग्रेस पार्टी ने अपना एक मजबूत स्तंभ और राष्ट्र ने एक समर्पित नेता खो दिया। भारी मन के साथ हम उनके परिवार और समर्थकों के प्रति इस दुख की घड़ी में संवेदना व्यक्त करते हैं।”
हो सकता है कॉन्ग्रेस पार्टी के आलाकमान के प्रति अंधभक्ति को कई लोगों ने गौर किया हो। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि दूसरी ही ओर कॉन्ग्रेस समर्थक होने के नाम पर संवेदनाओं को मार चुके कई लोगों ने कॉन्ग्रेस के ट्वीट में हाँ में हाँ मिलाना सही समझा, उनसे ये सवाल पूछना जरूरी नहीं समझा कि आखिर अहमद पटेल की मृत्यु से बड़ा राहुल गाँधी के कोट में क्या है?
महिला की सुरक्षा और उनकी समानता पर बात करना एक ऐसा विषय है जो हमेशा प्रासंगिक रहता है लेकिन गुलामी में जकड़े कॉन्ग्रेसियों को मालूम है कि गाँधी परिवार के किसी भी सदस्य के मुख से निकलने वाली बात अहमद पटेल की मृत्यु से ज्यादा बड़ी सूचना है।
भले ही अहमद पटेल के पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी के साथ करीबी रिश्ते हों। वो उनके अच्छे दोस्त हों, अच्छे सहयोगी हों। राहुल गाँधी भले ही उन्हें स्तंभ मानते हों। प्रियंका गाँधी उन्हें सलाहकार मानती हों, वफादार मानती हों। मगर, इसका मतलब ये नहीं है कि वो पार्टी पर राज कर पाए। मीडिया में किए जा रहे दावे अतिश्योक्ति से अधिक कुछ भी नहीं हैं।
आज अगर अहमद पटेल के जीवित रहते ये माँग उठा दी जाती कि वह इतने बड़े नेता हैं उन्हें पार्टी कमान सौंपी जाए, तो शायद कपिल सिब्बल की तरह कॉन्ग्रेसी उन्हें भी उनकी जगह दिखा देते। मात्र गाँधी परिवार का करीबी होना उन्हें कॉन्ग्रेस पर राज करने का अधिकार नहीं देता। बिलकुल वैसे ही जैसे कोई भी फैमिली फ्रेंड चाहे कितना भी खास, वफादार, समझदार हो लेकिन व्यक्ति फैमिली फ्रेंड को उसे नहीं सौंपता, उसे अपने बच्चों के लिए बचाए रखता है।