Friday, November 15, 2024
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जो नेहरू की नज़र में हिंसक और कट्टरपंथी, उसे राहुल गाँधी अमेरिका में बैठ कर बता रहे सेक्युलर: केरल वाले ‘मुस्लिम लीग’ का जिन्ना से कनेक्शन

आज केरल और तमिलनाडु की राजनीति में IUML की मजबूत पकड़ है। इसे केरल में राज्यस्तरीय पार्टी का भी दर्जा प्राप्त है। केरल में वह कॉन्ग्रेस की सहयोगी पार्टी भी है। केरल में केरल विधानसभा में IUML के 15 विधायक और 4 लोकसभा सांसद हैं।

कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी 10 दिवसीय यात्रा पर अमेरिका में हैं। वहाँ पर दिए गए उनके बयान के कारण देश में राजनीति चरम पर है। पीएम पर बयान देने के साथ-साथ राहुल गाँधी ने मुस्लिम लीग को धर्मनिरपेक्ष पार्टी बता दिया। दरअसल, उसी मुस्लिम लीग की एक शाखा से कॉन्ग्रेस का केरल में गठबंधन भी है।

राहुल गाँधी मुस्लिम तुष्टिकरण में भले ही मुस्लिम लीग को सेक्युलर बता रहे हों, लेकिन सच्चाई यही है कि जिन्ना की यह पार्टी देश के बँटवारे के लिए पूरी तरह जिम्मेदार थी। जब मुस्लिम लीग की माँग पर पाकिस्तान बन गया, तब जिन्ना वाली मुस्लिम लीग भारत में खत्म हो गई। हालाँकि, इसके सदस्य और तमिल नेता मोहम्मद इस्माइल पाकिस्तान जाने के बजाय भारत में ही रह गए।

भारत में रहकर मोहम्मद इस्माइल ने फिर से मुस्लिम लीग बनाने की घोषणा की। इसका बड़े पैमाने पर विरोध हुआ। मुस्लिम लीग के इतिहास और खून-खराबे को देखते हुए उस समय के प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू ने भी मुस्लिम लीग बनाने का विरोध किया था। नेहरू ने कहा था कि सांप्रदायिक और कट्टरपंथी आंदोलन भारत की एकता के लिए सही नहीं है।

हालाँकि, मोहम्मद इस्माइल नहीं माने और जिन्ना के मुस्लिम लीग से जुड़े उन नेताओं के साथ मिलकर एक बैठक की, जो भारत में ही रह गए थे। इस्माइल ने मद्रास में 1948 में जिन्ना की मुस्लिम लीग से जुड़े रहे लोगों की बैठक बुलाई। उस वक्त देश में मुस्लिम लीग की नेशनल काउंसिल से जुड़े 100 से ज्यादा सदस्य थे, लेकिन बैठक से 33 लोग पहुँचे।

बैठक में मुस्लिम लीग से जुड़े उत्तर भारतीय नेता इस बैठक से दूर रहे, लेकिन मद्रास, मैसूर और बॉम्बे क्षेत्र के लीगी नेता इसमें पहुँचे। बैठक में सबसे ज्यादा मद्रास प्रांत से लगभग 15 सदस्य थे। यह इलाका देश का एकमात्र ऐसा इलाका था, जिसने देश के बँटवारे के समय सबसे कम परेशानी झेली थी। बैठक में मालाबार के प्रतिनिधियों में से एक और कालीकट के व्यवसायी एवं मद्रास प्रांतीय असेंबली के सदस्य पीपी हसन कोया भी मौजूद थे।

बैठक में कोया ने एक प्रस्ताव पेश किया कि मुस्लिमों के लिए एक नए राजनीतिक दल का विरोध करते हुए कहा कि यह समुदाय के हितों के लिए सही नहीं है। हालाँकि, कुछ नेता नई पार्टी के समर्थन में थे और कुछ विरोध में। इसमें एक प्रस्ताव पारित किया गया कि नया संगठन बनाया जाएगा, जो मुस्लिम समुदाय की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक प्रगति के लिए काम करेगा।

सन 1948 में इस संगठन का नाम इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) रखा गया। इसका झंडा पाकिस्तान के झंडे से मिलता-जुलता रखा गया। इसकी राजनीतिक भूमिका 1951 में शुरू हुई। इसके पहले अध्यक्ष जिन्ना की मुस्लिम लीग से जुड़े मुहम्मद इस्माइल को बनाया गया। हालाँकि, बाद में मुस्लिम लीग से जुड़े संगठन बनाने का विरोध करने वाले अधिकांश नेताओं ने पार्टी छोड़ दी या राजनीति से अलग हो गए।

IUML की स्थापना के बाद पंडित नेहरू ने इसे डेड हॉर्स कहा था और प्रतिज्ञा ली कि कॉन्ग्रेस इसे खत्म कर देगी। नेहरू ने कहा था, “मुझे नहीं पता कि मुस्लिम लीग विभाजन के दौरान दुखद के अलावा और क्या प्रतिनिधित्व करती है। केरल को छोड़कर, मुस्लिम लीग के झंडे भारत में कहीं भी नहीं देखे जाते हैं। मुस्लिम लीग और कुछ नहीं बल्कि दंगों की पार्टी है।”

सन 1958 में अपनी केरल यात्रा के दौरान अलाप्पुझा में एक भाषण में IUML की आलोचना करते हुए नेहरू ने इसे दंगों की पार्टी कहा, जो दुनिया में मौजूद सभी बुराइयों का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने विभाजन के दौरान हुई दुखद घटनाओं के लिए भी पार्टी को जिम्मेदार ठहराया।

आज केरल और तमिलनाडु की राजनीति में IUML की मजबूत पकड़ है। इसे केरल में राज्यस्तरीय पार्टी का भी दर्जा प्राप्त है। केरल में वह कॉन्ग्रेस की सहयोगी पार्टी भी है। केरल में केरल विधानसभा में IUML के 15 विधायक और 4 लोकसभा सांसद हैं।

IUML कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली UPA में भी शामिल रही है। केरल में कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी UDF का हिस्सा मुस्लिम लीग है। हालाँकि, साल 2012 में नागपुर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनाव में मेयर बनाने के लिए भाजपा ने भी IUML के दो पार्षदों का समर्थन लिया था।

 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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