कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी की न्याय यात्रा में सामान्य लोगों के साथ कैसा व्यवहार हो रहा था इसकी जानकारी हाल में यात्रा में शामिल नितिन परमार नाम के दलित व्यक्ति ने दी। उन्होंने ऑर्गनाइजर को दिए इंटरव्यू में बताया कि वो कॉन्ग्रेस की न्याय यात्रा में शामिल होने स्विटजरलैंड से आए थे लेकिन 91 दिन यात्रा में साथ रहने के बाद उन्हें समझ आया कि कॉन्ग्रेस को किसी के जीने-मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
उन्होंने बताया कि इस यात्रा में सामान्य लोगों के साथ भेदभाव होता था। कॉन्ग्रेस नेता से लेकर कार्यकर्ता तक सब तैश में रहते थे। वीआईपी लोगों के लिए फाइव स्टार जैसा प्रबंध होता है। वहीं यात्रा में शामिल हो रहे सामान्य लोगों को पता भी नहीं होता वो कहाँ रहेंगे क्या खाएँगे।
नितिन ने अपना एक अनुभव साझा करते हुए बताया कि जब यात्रा पंजाब पहुँची तो वहाँ मंच पर उन लड़कियों और महिलाओं को डांस करने के लिए बुलाया गया जिन्होंने सेलिब्रिटियों की तरह कपड़े पहने हुए थे। नितिन के अनुसार, उन्हें इस दौरान वहाँ एंट्री तक नहीं मिली थ इसलिए वो ये नहीं कह सकते कि डांस के समय राहुल गाँधी थे या नहीं।
#Exclusive: "Live or die they don't care, this is the policy of Congress," a Dalit man who returned from Switzerland to join Rahul Gandhi's Bharat Jodo Yatra told me.
— Subhi Vishwakarma (@subhi_karma) May 16, 2024
Nitin Parmar who spent 91 days in the yatra told how arrogant were Congress leaders and workers at the yatra.… pic.twitter.com/hYxvb32XGj
नितिन अपना दुख साझा करते हुए कहते हैं, “हम अछूत हैं, झोपड़ी से आते हैं, इसलिए हमें उन्होंने सिर्फ भीड़ की तरह इस्तेमाल किया। वो हमें निर्देश देते थे- साथ में आओ, रैली में शामिल हो और रैली के बाद वो ऐसा करते थे जैसे हम लोग कौन हैं, कहाँ से आ गए हैं… हमें इन सबकी आदत है।” नितिन परमार ने कहा कि जनता की भावनाओं का ऐसा दुरुपयोग ब्रिटिश काल में होता होगा जहाँ जनता को भीड़ बनाकर इस्तेमाल किया जाता था और भीड़ के बाद उन्हें तितर-बितर कर दिया जाता था।
बता दें कि राहुल गाँधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा 23 अगस्त 2022 को शुरू हुई थी, जो 12 राज्य और दो केंद्र शासित प्रदेशों से होते हुए गुजरी। इसी यात्रा के लिए नितिन परमार स्विट्जरलैंड से अपना बिजनेस और काम छोड़कर आए, लेकिन यहाँ उनके साथ जो हुआ उसने उनकी उम्मीदों को तार-तार कर दिया। परमार बताते हैं कि शुरू में वह यूट्यूबरों की बातें सुन प्रभावित हुए। ध्रुव राठी समेत अन्य यूट्यूबर कहते थे कि कॉन्ग्रेस मोदी शासन के तहत लड़खड़ा जाएगा। ऐसे में वो राहुल गाँधी की ओर आकर्षित हो गए। न्याय यात्रा हुई तो उम्मीदें बढ़ गईं और इसीलिए वह भारत आ गए। लेकिन यहाँ आने के बाद वह ब्यूरोक्टे्स के चक्कर में पँस गए। तेलंगाना और कर्नाटक में कॉर्डिनेटर्स ने उन्हें यात्रा में शामिल होने पर साफ साफ कुछ नहीं बताया। बाद में उन्हें महाराष्ट्र में जाकर इस यात्रा में प्रवेश मिला।
नितिन परमार के अनुसार, यात्रा में शामिल होने के बाद उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ा। न रहने की व्यवस्था पता चल रही थी न खाने-पीने की। भाषायी अंतर की वजह से कोई उनसे पूछ भी नहीं था। इसके अलावा वॉशरूम की स्थिति भी खराब थी। परमार के अनुसार इस 91 दिन की यात्रा में उनके 2 लाख से ज्यादा रुपए खर्च हुए लेकिन उन्हें इसका गम नहीं है। उनके लिए असली मुद्दा सम्मान का था जो उन्हें इस यात्रा में नहीं हुआ।
उन्होंने यह भी शिकायत की कि राहुल गाँधी कभी आम जनता से नहीं मिलने आते थे। जब उन्होंने खुद मिलने की इच्छा जताई तो उनसे पैसे माँगे गए। हर राज्य में ये दर अलग अलग थी। कहीं 20 हजार रुपए माँगे जा रहे थे, कहीं 10 हजार और कहीं तो 35 हजार रुपए भी। यात्रा के दौरान कैंप में दो खेमे थे। वीआईपी के लिए स्टैंडर्ड व्यवस्था थी, वहीं आमजन को पकाने के लिए भी घटिया तेल दिया जाता था। परमार ने यहाँ तक बताया कि राजस्थान के दौसान गाँव में तो वो एक बार बेहोश तक हो गए थे, उन्हें अस्पताल में भर्ती भी किया गया, मगर जब वो वापस कैंप पहुँचे तो किसी ने उनके स्वास्थ्य के बारे में भी नहीं पूछा।