कोलकाता से मुंबई तक INDI गठबंधन जो कभी एक मजबूत विकल्प के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा था, वो पूरी तरह से टूट चुका है। केरल से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र से लेकर पश्चिम बंगाल तक गठबंधन के परखच्चे उड़ चुके हैं। पश्चिम बंगाल में टीएमसी ने कॉन्ग्रेस की सभी उम्मीदों को धराशाई करते हुए सभी 42 सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है।
राजनीति में खास तौर से चुनावों के पहले बहुत कुछ उलटफेर देखा जाता है। पार्टियाँ अपनी सुविधा के हिसाब से पाले बदलती हैं। एक तरफ तो एनडीए दिन प्रतिदिन मजबूत होता जा रहा है, और इंडी गठबंधन के ही साथियों को तोड़ता जा रहा है, तो दूसरी तरफ इंडी गठबंधन अपने साथियों को संभाल नहीं पा रही है। इंडी गठबंधन की ममता बनर्जी ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि वो सभी 42 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगी। कॉन्ग्रेस उम्मीद लगाए बैठी थी कि आखिर तक वो ममता बनर्जी को मना ही लेगी। लेकिन ममता बनर्जी ने कॉन्ग्रेस के आखिरी सपने को भी ध्वस्त कर दिया है।
वैसे, ममता बनर्जी ने कॉन्ग्रेस के अधीर रंजन चौधरी की सीट पर स्टार पॉवर उतारा है। एक तरफ तो आईपीएल चल रहा है, तो दूसरी तरफ केकेआर के लिए लंबे समय तक खेले क्रिकेटर यूसुफ पठान को अधीर रंजन की सीट पर उतार दिया गया है। वहीं, महुआ मोइत्रा को एक बार फिर से ममता बनर्जी ने मैदान में उतारा है, जो कुछ माह पहले ही घूसकांड के चलते लोकसभा की सदस्यता गवाँ बैठी थी।
TMC announces the names of 42 candidates for Lok Sabha elections.
— ANI (@ANI) March 10, 2024
Former cricketer Yusuf Pathan and party leader Mahua Moitra among the candidates. pic.twitter.com/vfmb7alfbx
इंडी गठबंधन में आज का सच यह है कि लोकसभा चुनाव सामने है और बड़े हिस्सेदार सीटों पर बातचीत को अंतिम रूप नहीं दे पाए हैं। वे इस मामले पर एकमत भी नहीं दिखते। एक भी दल अपने प्रभाव वाले इलाके में गठबंधन के किसी दूसरे सहयोगी को एक भी सीट देने को राजी नहीं दिखाई दे रहे हैं। लोक सभा में मुख्य विपक्षी दल कॉन्ग्रेस को गठबंधन से जुड़े दल बहुत भाव नहीं दे रहे हैं। महाराष्ट्र में भी यही हाल है। एनसीपी आगे बढ़ती दिखाई दे रही है, तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना एनसीपी और कॉन्ग्रेस पर आँखे तितेर रही है। कुल मिलाकर परसेप्शन बन चुका है कि इंडी गठबंधन खंड-खंड होकर बिखर गया है।
इंडी गठबंधन की हालत ये है कि वो आपस में ही लड़कर चूर-चूर हो जा रहे हैं। उसी का नतीजा है कि नीतीश फिर से एनडीए गठबंधन का हिस्सा बन बैठे हैं। इसी का परिणाम है कि बाला साहब ठाकरे की शिवसेना फाड़ हो गई तो शरद पवार की बनाई पार्टी एनसीपी आज उन्हीं के सामने उनकी नहीं रही।
महाराष्ट्र में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी भले ही नहीं है, लेकिन वो अपने सहयोगियों को साधना जानती है, यही वजह है कि देवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम होकर भी महाराष्ट्र में एनडीए को संभाले हुए हैं, तो बिहार में राम विलास पासवान की पार्टी दो फाड़ होकर भी एनडीए का ही हिस्सा है। वहीं, एनडीए ने आँध्र प्रदेश में सीटों का बंटवारा कर लिया है।
इंडी गठबंधन का सनातन विरोध से लेकर हर पैंतरा फेल
इंडी गठबंधन के नेता एनडीए और बीजेपी को रोकने के लिए हर रोज ऊल-जलूल बयानबाजी पर उतर आए हैं। भगवान राम से लेकर हिंदुत्व तक को निशाना बनाया जा रहा है। इसके बावजूद एनडीए लगातार न सिर्फ मजबूत होती जा रही है, बल्कि जनता में भी सकारात्मक मैसेज जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी विकास की भी बातें कर रही है, तो चुनावी मैदान में सबसे अहम बात अपने सहयोगियों को साधे रखने की कला में भी बीजेपी अपनी ताकत दिखा रही है। उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार में आधा दर्जन से अधिक सहयोगियों के होने के बावजूद एनडीए में सबकुछ सही दिख रहा है।
वहीं, इंडी गठबंधन में शामिल दल अपने निहित स्वार्थों के चक्कर में न सिर्फ ऊल-जलूल फैसले कर रहे हैं, बल्कि अपनी माँगों को लेकर एकजुट भी होते नहीं दिख रहे हैं। अब ये साफ हो चुका है कि पंजाब में इंडी गठबंधन आपस में ही लड़ रहा है। केरल में भी इंडी गठबंधन का यही हाल है। पश्चिम बंगाल में भी सबकुछ साफ हो चुका है, तो महाराष्ट्र में भी कमोवेश स्थिति ज्यादा सीटों पर कब्जे की लड़ाई में टूट की ही दिख रही है।
ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए के लिए 400 से अधिक सीट और बीजेपी के लिए 370 सीटों का जो लक्ष्य रखा है, उसके सामने इंडी गठबंधन की कोई हैसियत ही नजर नहीं आ रही है। संसद में यह नारा देने के बाद पीएम मोदी इसी लक्ष्य को पूरा करने को अपनी ओर से अनेक प्रयास करते देखे जा रहे हैं। वह चाहे मंदिर-मंदिर जाना हो या फिर यूएई की धरती से केरल और देश के मुसलमानों को साधने की कोशिश। देश के अंदर उनके काम का आँकड़ा उनके साथ पहले से ही है। वहीं, इंडी गठबंधन कहीं से भी टक्कर देने की हैसियत में भी नहीं दिख रही है।