पश्चिम बंगाल में सूबे की सरकार ने ख़ुफ़िया एजेंसियों को एक नया कार्यभार सौंपा है, जो अटपटा होने के साथ-साथ थोड़ा हास्यास्पद भी है। पिछले काफ़ी समय से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ‘जय श्रीराम’ के नारे से काफ़ी आहत हैं। हद तो अब यह हो गई है कि ममता सरकार ने ख़ुफ़िया एजेंसियों को उन स्थानों का पता लगाने को कहा है जहाँ उन्हें देखकर ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाए जाते हैं। अपने इस चिड़चिड़ेपन के इलाज के लिए ममता दीदी ने ख़ुफ़िया एजेंसियों का दरवाज़ा खटखटाया है।
टेलीग्राफ़ की ख़बर के अनुसार, ममता बनर्जी ऐसा मानती हैं कि उन्हें देखकर जो लोग ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाते हैं वो उन्हें उकसाने के लिए लगाते हैं। हालाँकि, अभी यह बात साफ़ नहीं हो सकी है कि ख़ुफ़िया एजेंसियों को सौंपा गया यह काम ज़मीनी तौर पर कैसे क्रियान्वित किया जाएगा। ख़बर के अनुसार, ममता बनर्जी अब जहाँ से भी गुज़रेंगी हो सकता है कि उस स्थान को अब पूरी तरह से खाली करा लिया जाए। आमतौर पर उस स्थान को पहले से ही खाली करा लिया जाता है जहाँ नेताओं के विरोध में नारेबाज़ी होने की गुंजाइश हो या फिर उन्हें काले झंडे दिखाए जाने की संभावना हो।
वहीं, दूसरी तरफ़ भाजपा ने ममता सरकार द्वारा ख़ुफ़िया एजेंसियों को सौंपे गए इस काम का कड़ा विरोध किया है। भाजपा, पश्चिम बंगाल सरकार के इस रवैये को दमनकारी नीतियों से प्रेरित मान रही है। शनिवार (1 जून) को भाजपा के सांसद अर्जुन सिंह ने तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आवास पर 10 लाख ‘जय श्रीराम’ लिखे कॉर्ड भेजने की बात कही थी।
वैसे तो ‘जय श्रीराम’ बोलना कोई अपराध नहीं है और इसलिए यह ग़ैर-क़ानूनी भी नहीं है। लेकिन, ममता बनर्जी इस नारे से वो इस क़दर आहत हैं कि ‘जय श्रीराम’ बोलने वालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई करने से भी नहीं चूकतीं। इतना ही नहीं उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से फोन पर ‘हैलो’ बोलने की बजाए ‘जय बांग्ला’ और ‘जय हिंद’ बोलने का फ़रमान भी जारी किया था। ममता बनर्जी को ‘जय श्रीराम’ का नारा इतना नागवार लगता है कि वो तुरंत अपनी गाड़ी से उतरती हैं और नारा लगाने वालों को ख़ूब डाँटती-फटकारती हैं। कहने को तो ममता ने यह बात स्वीकारी थी कि वो बंगाली और बिहारी में कोई भेदभाव नहीं करतीं, लेकिन असलियत इससे परे है।
पश्चिम बंगाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या की ख़बर लगातार सामने आती रहती हैं। 30 मई को 52 वर्षीय बीजेपी कार्यकर्ता सुशील मंडल की हत्या सिर्फ़ इसलिए कर दी गई थी क्योंकि वो प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण के एक दिन पहले पार्टी के झंडे सजा रहे थे और ‘जय श्रीराम’ का नारा लगा रहे थे।