पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में ‘खेला होबे दिवस’ मनाने का निर्णय लिया है। बता दें कि हालिया विधानसभा चुनाव के दौरान तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) का नारा ‘खेला होबे’ ही था। TMC नेताओं ने इसे भाजपा के लिए धमकी के रूप में प्रयोग में लाया था। अब लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी ने राज्य में विभिन्न क्लबों को 50,000 फुटबॉल बाँटने की घोषणा की है।
इस नारे को लेकर TMC के ही नेता देबांग्शु भट्टाचार्य ने जनवरी में मूल रूप से यह गीत लिखा था और उसके बाद से विभिन्न पार्टी कार्यक्रमों में इसका इस्तेमाल किया गया। ये एक धमकी भरा नारा बन गया। अंडरवर्ल्ड में भी पहले ‘गेम बजा डालने’ की बातें की जाती थीं, जिसका अर्थ होता था किसी की हत्या करना। TMC ने अब स्पोर्ट्स को बढ़ावा देने के नाम पर अपने इस धमकी भरे चुनावी नारे का प्रयोग शुरू किया है।
‘खेला होबे’ को और डरावना बनाने के लिए अणुब्रत मंडल ने एक रैली में ‘भयंकर खेला होबे’ का नारा दिया था। एक तरह से ये भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए सीधी धमकी थी। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन खेल मंत्री मदन मित्र ने भी नॉर्थ 24 परगना जिले की कमरहटी से चुनाव लड़ते हुए ‘खेला होबे’ को अपना नारा बनाया था। वही मदन मित्रा, जिन्हें हाल ही में नारदा घोटाले में CBI ने गिरफ्तार किया था।
फ़िलहाल वो जमानत पर बाहर चल रहे हैं। TMC इस किस्म के नेताओं से भरी पड़ी है, क्योंकि उनके साथ तीन अन्य मंत्री/पूर्व मंत्री गिरफ्तार किए गए थे, जो इसी पार्टी के थे। ममता बनर्जी अक्सर अपनी रैलियों में ‘खेला होबे! अमी गोलकीपर। देखी के जेते (खेल होगा। मैं गोलकीपर हूँ। देखती हूँ कौन जीतता है।) कहती थीं।’ इसी गीत में भाजपा के नेताओं को लुटेरा कहा गया था। भाजपा नेताओं का सामना करने की बात की गई थी।
पश्चिम बंगाल में ‘खेला होबे दिवस’ का स्पोर्ट्स से कोई लेनादेना नहीं है। असल में ये चुनाव में TMC की जीत का जश्न मनाने से भी ज्यादा राज्य में मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं/समर्थकों के परिजनों के साथ एक क्रूर मजाक है। उनके साथ, जिनके अपनों की हत्या का आरोप TMC पर लगा। उनके साथ, जो घर-बार छोड़ कर पड़ोसी राज्यों में शरणार्थी बन कर रहने को मजबूर हैं। उनके साथ, जिनके घरों को जला दिया गया और तहस-नहस कर दिया गया।
इसीलिए, तृणमूल कॉन्ग्रेस के किस्म के ही राजनीतिक दलों को ये नारा पसंद भी आ रहा है। तभी तो समाजवादी पार्टी के एक नेता ने आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ‘खेला होबे’ को नारा बनाने को कहा। सपा के बारे में तो खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी एक वाकया सुना चुके हैं कि कैसे लाल टोपी वालों को देख कर एक बच्चे ने कहा था – ‘वो देखो, गुंडा।’ इस किस्म के दलों और संगठनों के लिए ये एक अच्छा स्लोगन है।
वाराणसी की दीवारों पर ‘2022 में खेला होई’ भी लिखवा दिया गया था। पश्चिम बंगाल में ‘खेला’ का स्तर अब इतना नीचे गिर चुका है कि वहाँ जाँच के लिए जाने वाले संवैधानिक संस्थानों के पदाधिकारियों तक को नहीं बख्शा जाता है। इसके लिए आम लोगों को भड़काया जाता है। महिलाओं को भी गुंडों की भीड़ में घुसा दिया जाता है। बस अंतर इतना है कि ये सब कुछ होने के बावजूद मीडिया चूँ तक नहीं करता।
खुद कलकत्ता हाईकोर्ट कह चुका है कि 2 मई के बाद हुई हिंसा में कई लोग मारे गए, गंभीर रूप से घायल हुए। कई पीड़ितों को यौन उत्पीड़न भी झेलना पड़ा, यहाँ तक कि नाबालिग लड़कियों को भी नहीं बख्शा गया। लोगों की संपत्ति को नष्ट किया गया और कई लोगों को अपना घर छोड़कर पड़ोसी राज्यों में शरण लेने के लिए मजबूर कर दिया गया। इसके बाद भी राज्य ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
लेकिन, इन सभी घटनाओं को ममता बनर्जी का महिमामंडन कर के छिपाया गया। उन्हें ‘महिषासुर मर्दिनी’ बता कर, उनकी जीत को ‘केंद्र की तानाशाही’ पर विजय बता कर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ‘फासिज्म’ का आरोप लगा ममता बनर्जी को सराहा गया और साथ ही भाजपा की हर हार ‘हिंदुत्व की हार और सेक्युलर शक्तियों की जीत’ तो होती ही होती है। क्या पश्चिम बंगाल में चार-चार पाकिस्तान की बात करने वाले भी इस ‘खेला होबे’ का हिस्सा हैं?
ऐसा नहीं है कि सिर्फ भाजपा ही इस क्रूर हिंसा का शिकार बनी है। वहाँ की इस्लामी पार्टी ISF (इंडियन सेक्युलर फ्रंट) और वामपंथी दलों तक के कार्यकर्ताओं तक को नहीं छोड़ा गया। वामपंथी नेताओं तक ने टीएमसी की हिंसा की बात की। भाजपा को खुन्नस में ये लोग झूठा बता सकते हैं, लेकिन क्या इनके ही गिरोह के वामपंथी नेता और इस्लामी दल भी झूठे हैं? हाँ, हिंसा का सबसे ज्यादा शिकार भाजपा कार्यकर्ता हुए क्योंकि भाजपा ने तृणमूल को कड़ी टक्कर दी।
People have appreciated ‘Khela Hobe’, so we will have ‘Khela Hobe Diwas’: West Bengal CM Mamata Banerjee in the Assembly (File Pic) pic.twitter.com/h1WClZj2dS
— The Times Of India (@timesofindia) July 6, 2021
पश्चिम बंगाल में फुटबॉल एक लोकप्रिय खेल है। सामान्यतः 90 मिनट के लिए खेला जाने वाला ये खेल आक्रामक होता है, लेकिन फिर भी खिलाड़ी एक दूसरे का सम्मान करते हैं और जरा सी भी गलती होने पर पेनल्टी लगती है। खिलाड़ी खेल से बाहर तक हो सकता है। लेकिन, ममता बनर्जी वाले ‘खेला होबे’ में ये संदेश निहित है कि फुटबॉल मैच जीतने वाली टीम हारने वालों को मैदान में दौड़ा-दौड़ा कर मारे।
‘खेला होबे’ का नारा लगाने वाले इसी TMC ने चुनाव के दौरान दिखाया था कि ममता बनर्जी फुटबॉल की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिर को मार रही हैं। यही बंगाल के असली ‘खेला होबे’ का संदेश था। क्या फुटबॉल का कोई खिलाड़ी इस तरह की चीजों को बरदाश्त कर सकता है? यही ‘खेला होबे’ है, जहाँ बंगाल में चुनाव के दौरान अर्धसैनिक बलों तक को निशाना बनाया गया। वो सुरक्षा बल, जो देश की रक्षा करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान देने तक से नहीं हिचकिचाते।
आँकड़ों की मानें तो 2 मई के बाद राज्य में हुई हिंसा की करीब 15 हजार घटनाएँ हुई। इसमें 25 लोगों की मौत हो गई और करीब 7000 महिलाओं के साथ बदसलूकी की गई। सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे प्रमोद कोहली की अगुवाई वाली फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट में ये पाया गया था। कुछ खतरनाक अपराधी, माफिया डॉन और आपराधिक गिरोह, जो पहले से ही पुलिस रिकॉर्ड में थे, ने राजनीतिक संरक्षण पाकर इन घातक हमलों को अंजाम दिया।