Sunday, October 6, 2024
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‘एक से ज्यादा क्यों करे कोई शादी, एक देश में क्यों चले दो विधान’: MP में UCC लाने का मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया ऐलान, कहा- कमेटी बन रही है

PESA कानून को लेकर मुख्यमंत्री चौहान ने कहा था, “कई बार धोखे से, छल-कपट से, हमारी जनजातीय बहनों-बेटियों को लालच देकर विवाह कर लिया जाता है, उनके नाम पर जमीन दे दी जाती है और वह जनजातीय भूमि कहलाती है। कभी-कभी धर्मांतरण का भी उपयोग किया जाता है। अब हम मध्य प्रदेश में ऐसा नहीं दिया जाएगा।”

उत्तराखंड (Uttarakhand) और गुजरात (Gujarat) के बाद अब मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में भी ‘समान नागरिक संहिता’ (Uniform Civil Code) लागू होगी। इसकी घोषणा प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (CM Shivraj Singh Chouhan) ने गुरुवार को की और कहा कि राज्य सरकार इसके लिए एक कमिटी बनाएगी।

सीएम चौहान ने कहा कि देश में अब समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बार बड़े खेल हो जाते हैं। खुद जमीन नहीं ले सकते तो किसी आदिवासी के नाम से जमीन ले ली जाती है। कई बदमाश तो आदिवासी बेटी से शादी करके जमीन उसके नाम से ले लेते हैं।

बड़वानी के सेंधवा में आयोजित एक रैली में बोलते हुए मुख्यमंत्री चौहान ने कहा, “मैं अलख जगाने आया हूँ। बेटी से शादी की और जमीन ले ली। एक से ज्यादा शादी क्यों? एक देश में दो विधान क्यों चले? नियम एक ही होना चाहिए। इसलिए अब देश भर में समान नागरिक संहिता लागू होना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि राज्य की भाजपा सरकार समान नागरिक संहिता के लिए एक कमिटी बना रही है। उन्होंने कहा कि अगर समान नागरिक संहिता में एक पत्नी का अधिकार है तो यह सबके लिए लागू होना चाहिए।

बता दें कि इससे पहले उत्तराखंड और गुजरात ने भी एक कमिटी की घोषणा की है। उत्तराखंड में तो इसका फाइनल ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है। इसकी जानकारी प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) ने खुद दी थी।

वहीं, राज्य में वनवासी महिलाओं से दूसरी-तीसरी शादी और धर्मांतरण को रोकने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में PESA कानून लागू करने की घोषणा की थी। इसमें वनवासी समुदाय की ग्राम सभा को सशक्त बनाया गया है।

PESA कानून को लेकर मुख्यमंत्री चौहान ने कहा था, “कई बार धोखे से, छल-कपट से, हमारी जनजातीय बहनों-बेटियों को लालच देकर विवाह कर लिया जाता है, उनके नाम पर जमीन दे दी जाती है और वह जनजातीय भूमि कहलाती है। कभी-कभी धर्मांतरण का भी उपयोग किया जाता है। अब हम मध्य प्रदेश में ऐसा नहीं दिया जाएगा।”

क्या है समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता को सरल शब्दों में समझा जाए तो यह एक ऐसा कानून है, जो देश के हर समुदाय पर समुदाय लागू होता है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो, जाति का हो या समुदाय का हो, उसके लिए एक ही कानून होगा। अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से जुड़े कानूनों को भारतीय दंड संहिता 1860 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872, भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872, विशिष्ट राहत अधिनियम 1877 आदि के माध्यम से सब पर लागू किया, लेकिन शादी, विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति आदि से जुड़े मसलों को सभी धार्मिक समूहों के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया।

इन्हीं सिविल कानूनों को में से हिंदुओं वाले पर्सनल कानूनों को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने खत्म किया और मुस्लिमों को इससे अलग रखा। हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं के तहत जारी कानूनों को निरस्त कर हिंदू कोड बिल के जरिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू नाबालिग एवं अभिभावक अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 लागू कर दिया गया।

वहीं, मुस्लिमों के लिए उनके पर्सनल लॉ को बना रखा, जिसको लेकर विवाद जारी है। इसकी वजह से न्यायालयों में मुस्लिम आरोपितों या अभियोजकों के मामले में कुरान और इस्लामिक रीति-रिवाजों का हवाला सुनवाई के दौरान देना पड़ता है।

इन्हीं कानूनों को सभी धर्मों के लिए एक समान बनाने की जब माँग होती है तो मुस्लिम इसका विरोध करते हैं। मुस्लिमों का कहना है कि उनका कानून कुरान और हदीसों पर आधारित है, इसलिए वे इसकी को मानेंगे और उसमें किसी तरह के बदलाव का विरोध करेंगे। इन कानूनों में मुस्लिमों द्वारा चार शादियाँ करने की छूट सबसे बड़ा विवाद की वजह है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी समान नागरिक संहिता का खुलकर विरोध करता रहा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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