प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ़ासिस्ट (फासीवादी) हैं।
महाराष्ट्र सरकार की सत्तारूढ़ पार्टी शिवसेना ने केबल ऑपरेटरों को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का अपमान करने के लिए रिपब्लिक भारत चैनल को गुरुवार (10 सितंबर, 2020) को बंद करने के लिए कहा। उन्होंने शिवसेना के सहयोगी शिव केबल सेना द्वारा एक पत्र के माध्यम से केबल ऑपरेटरों को इस बात का निर्देश दिया।
इतना ही नहीं शिवसेना ने केबल ऑपरेटरों को अर्णब गोस्वामी के नेतृत्व वाले मीडिया नेटवर्क पर प्रतिबंध लगाने या फिर परिणामों को भुगतने की खुली धमकी भी दी है। शिवसेना वर्तमान में सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के साथ महाराष्ट्र की सत्ता में है।
लेकिन, मोदी आलोचना नहीं कर सकते।
वहीं तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने सितंबर 2014 में, तेलंगाना का अपमान करने के आरोपों पर केबल ऑपरेटरों को धमकी दी थी। उन्होंने कहा था कि अगर केबल ऑपरेटरों ने हाल ही में बने राज्य का अपमान करना जारी रखा तो वे उन्हें जमीन के 10 फीट नीचे गाड़ देंगे।
लेकिन लिबरल गिरोह की मानें तो जाहिर है, मोदी प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा रहे हैं।
पश्चिम बंगाल सरकार ने इस साल मई में राज्य सरकार पर सवाल उठाने के कारण केबल नेटवर्क पर एक समाचार चैनल का प्रसारण रोक दिया था। यह प्रसारण कोलकाता और आसपास के क्षेत्रों में रोका गया था।
लेकिन नहीं… हम मोदी शासन के तहत अघोषित आपातकाल की स्थिति में रह रहे हैं।
आपातकाल से याद आया! क्यों न हम अब आपातकाल की बात करते हैं। आइए हम अपने इतिहास के बारे में जानते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 25 जून 1975 को, भारत में आपातकाल की स्थिति घोषित की थी। यह आपातकाल 21 मार्च 1977 को वापस लिया गया था। यह कुल 21 महीने तक चला था।
फ्रीडम ऑफ प्रेस सहित नागरिक स्वतंत्रता को तब निलंबित कर दिया गया था। इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा पत्रकारों, विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। प्रिंटिंग प्रेसों पर छापे मारे गए और समाचार पत्रों को बंद करा दिया गया था।
मीडिया को अनुसरण करने के लिए ‘दिशा-निर्देश’ दिए गए थे। मुख्य प्रेस सलाहकार के अप्रूवल के बाद ही कोई खबर प्रकाशित की जाती थी। सरकार के खिलाफ खबरों को सेंसर कर दिया जाता था। सिर्फ देश ही नहीं विदेशी प्रकाशनों के पत्रकारों को निष्कासित कर दिया गया था। और धमकियाँ मिलने के बाद कुछ विदेशी अपने देश वापस लौट गए थे।
गृह मंत्रालय के अनुसार, 1976 के मई में लगभग 7,000 पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को गिरफ्तार भी किया गया था।
लेकिन, इन सब के बावजूद मोदी फ़ासिस्ट (फासीवादी) हैं।